चरण-स्पर्श का महत्व
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भारतीय परंपरा में ‘चरण-स्पर्श’ का इतना गहरा महत्व क्यों है?
चाहे परमात्मा हों, सद्गुरु हों,या माता-पिता जैसे हमारे बुज़ुर्ग हों — सबके ‘चरण-स्पर्श’ का उल्लेख हमारे कल्चर में बार-बार आता है।
दिवाली जैसे पर्वों पर माता-पिता के चरण स्पर्श कर उनके आशीर्वाद लेने की परंपरा होती है...
अंजनशलाका जैसे मंगल विधानों में “अनंत गुरुपादुकेभ्यो नमः” के माध्यम से सद्गुरु के ‘चरण-वंदन’ की ही बात आती है...
जब हम शत्रुंजय जाते हैं — पाँच चैत्यवंदन करते हैं, दादा आदिनाथ का चैत्यवंदन करते हैं, फिर भी अलग से दादा के ‘चरण-स्पर्श’ का रायणपगलिये पर चैत्यवंदन अवश्य किया जाता है...
प्रतिक्रमण में जब वांदणा की क्रिया करते है, तब 12-12 बार गुरु भगवंत के चरण के, प्रतीक के रूप में, चरवला की दशी में गुरु के चरणों की इमेजिन कर ‘चरण-स्पर्श’ की ही भावना आती है।
घर या दुकान के आँगन में कई जैन–अजैन भक्त ‘चरण–पादुका’ के स्टिकर लगाते हैं… ताकि नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिले, और सुख–शांति–समृद्धि में वृद्धि हो।
इस प्रकार धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक — सभी पहलुओं में देव, गुरु और माता-पिता के ‘चरण-स्पर्श’ का महत्व तो आता ही है, बार-बार आता है।
इतना सब कुछ महत्वपूर्ण क्यों है?
क्योंकि… किसी महापुरुष, साधक पुरुष या उनकी मूर्ति से प्राण-ऊर्जा सहस्रार चक्र आदि के माध्यम से उनके संपूर्ण देह में प्रवाहित होकर चरणों के द्वारा बाहर की ओर प्रसारित होती है...
और जब हम हृदय से सच्चे भाव से झुकते हैं — नमस्कार करते हैं,तो कुछ समय के लिए हमारे अंतःकरण से अहंकार दूर भाग जाता है,
or On That Same Time —
ऐसे उत्तम आत्माओं की पवित्र “प्राण ऊर्जा” हमारे भीतर प्रवेश करती है और रोम-रोम में व्याप्त हो जाती है…उसके प्रभाव से हमारे काम, क्रोध जैसे दुर्गुण,
दुःख, दर्द, रोग और जीवन के सभी अंतराय क्षीण हो जाते है!और कुछ ही क्षणों के लिए हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व में Positive Energy का शुभ संचार होता है!
हमारे रुके हुए कार्य सिद्ध होते हैं,हमारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
Let’s Start Now —
परमात्मा, सद्गुरु और माता-पिता (या उनकी छवि) के ‘चरण-स्पर्श’ करें...और चमत्कार का अनुभव करें...










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