परमात्मा की वीतरागता
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अन्य सभी दर्शनों की अपेक्षा, जिनशासन में एक अनुपम विशेषता देखने को मिलती है – जिन्हें परमात्मा माना गया है, उनमें कोई दोष दिखाई नहीं देता।
कईं दर्शनों में माने गए ईश्वर का पत्नी-पुत्र आदि परिवार होता है... और इसलिए, उस ईश्वर में "यह मेरी पत्नी है, मेरा पुत्र है..." ऐसा ममत्व, उनके प्रति आसक्ति, मालिकाना भाव (परिग्रह)... उन्हें परेशान करने वालों पर क्रोध, द्वेष... आदि दोष देखे जाते हैं।
जिनशासन जिन्हें परमात्मा मानता है, उन्होंने परिवार का त्याग कर के साधना द्वारा अपने दोषों का नाश किया है। परिवार आदि पर आसक्ति या ममत्व उनमें लेशमात्र भी नहीं दिखता।
अन्य दर्शनों में माने गए ईश्वर, अपनी भक्ति करने वालों पर प्रसन्न होकर उन्हें इच्छित वस्तुएँ देते हैं...और जो उनकी अवज्ञा करें, उन्हें सज़ा देते हैं, दंडित करते हैं।
लेकिन जिनशासन में माने गए परमात्मा अपनी भक्ति करनेवालों पर प्रसन्न नहीं होते... सभी को अपने कर्मों का फल मिलता है।
भगवान महावीर के परम भक्त श्रेणिक महाराज को भी, पूर्व में किए गए पापों के परिणामस्वरूप नरक में जाना पड़ा है।
जिनशासन के परमात्मा किसी को भी अपना शत्रु नहीं मानते।
स्वयं को पराजित करने आए इंद्रभूति गौतम के भी कल्याण की कामना प्रभु ने की...
उन्हें अपना प्रथम शिष्य बनाया..
अन्य दर्शनों के ईश्वर, अपने द्वारा स्थापित पंथ के प्रति ममत्व रखते हैं... उसका प्रचार करते हैं... और उसकी पराजय सहन नहीं कर सकते।
जिनशासन के परमात्मा सभी जीवों का कल्याण चाहते हैं... जो मार्ग किसी का कल्याण करे, वह मार्ग उन्हें स्वीकार्य है... ऐसा आग्रह नहीं रखते कि केवल अपने द्वारा स्थापित शासन से ही कल्याण होगा।
वास्तव में, जिस मार्ग से कल्याण होता हो, उस मार्ग को वे अपने शासन के अंतर्गत ही मानते हैं।
इसलिए वे आदिधार्मिक (मूलतः अन्य धर्म में आस्था रखने वाले) जीव को उसके ईश्वर की मान्यता से हटा कर अपनी बात करने का आग्रह नहीं करते।
जिनशासन के परमात्मा की प्रतिमा भी शांत होती है... उनके पास क्रोध-द्वेष जैसे दोषों के प्रतीक कोई शस्त्र नहीं होते... राग जैसे दोषों के प्रतीक कोई स्त्री, मिठाई (मोदक) आदि सामग्री नहीं होती... कोई वाहन भी नहीं होता...
जितने भी पहलुओं पर विचार किया जाए, हर पहलू में जिनशासन के परमात्मा की निर्दोषता (दोष-रहितता) स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
अहो ! जिनशासनम् !









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