अस्तित्व अपरिवर्तित होता है।
प्रभु का जन्म होते ही सृष्टि में आल्हाद हुआ, प्रकृति में स्वयंभू उत्सव होने लगा, जलवायु की चेष्टाएँ प्रसन्न नजर आने लगीं, दिशाएँ उद्योतमय...
अस्तित्व अपरिवर्तित होता है।
आत्मा स्वयं है, स्वयंभू है, वो ही प्रभु है।
प्रभु की शुद्ध चेतना……
प्रभु का जन्म : शरीर और आत्मा का मिलन
त्रिकाल प्रस्तुत जीवन
प्रभु का आध्यात्मिक जन्म
प्रयोजनशून्यता ही पूर्णता है।
सर्वस्वीकार की साधना
प्रभु की अंतर्लीन और औचित्यपूर्ण अवस्था
देहनिर्माण में दृष्टा भाव
आत्मजागृति का अखंड दीप
सत्य ध्रुव है
भक्ति की पात्रता विकसित करें
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