पर्युषण पर्व और संवत्सरी महापर्व का सर्वोच्च महत्व क्यों?
- Aug 17
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Q: पर्युषण पर्व और उसमें संवत्सरी महापर्व का इतना अधिक महत्व क्यों है?
A: जैन धर्म की दृष्टि में, संसार का सर्वोत्तम सुख वीतरागता के अनुभव से ही मिलता है। इस अनमोल सुख को विश्व के सभी जीव प्राप्त कर सके, इसके लिए तीर्थंकर भगवान ने जैन धर्म में अनेक साधनाएँ, अनुष्ठान और पर्व बताए हैं।
ओली, दीपावली, मौन एकादशी, पोष दशमी जैसे अनेक पर्वों में से पर्युषण पर्व और उसमें भी “संवत्सरी महापर्व का महत्व सबसे अधिक है।” ऐसा तीर्थंकर प्रभु ने कहा है। क्योंकि इस दिन प्रत्येक छोटे-बड़े जैन को दो आराधनाएँ अवश्य करनी हैं—
प्रतिक्रमण
क्षमापना
एक प्रकार से यह पर्व जैन धर्म का “Spiritual March Ending” है।
· पूरे वर्ष में, जान-बूझकर या अनजाने में जो भी पाप हुए हों, उनका गुरु भगवंत के समक्ष स्वीकार कर, क्षमा माँगने की साधना को प्रतिक्रमण कहते हैं।
· पूरे वर्ष में, परिवार में या बाहर, व्यापार या Office पर, जिनसे भी कलह, झगड़ा, अणबोला, या मनमुटाव हुआ हो, उनसे दिल से क्षमा माँगना क्षमापना है।
- ये दोनों आराधनाएँ जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हैं।
- इनके बिना कोई भी जीव मोक्ष में न अतीत में गया है, न वर्तमान में जा सकता है, और न भविष्य में जाएगा।
- जिसे भी वीतरागता का सर्वोच्च सुख पाना है, उसे ये दोनों आराधनाएँ अवश्य करनी होंगी।
और चूँकि ये दोनों आराधनाएँ इस दिन सभी द्वारा की जाती हैं, इसलिए संवत्सरी पर्व का जैन धर्म में सर्वोच्च महत्व है।
क्षमापना के द्वारा संबंधों को मधुर बनाने वाला पर्व है संवत्सरी।
क्षमापना के द्वारा मन को सुकून प्रदान करने वाला पर्व है संवत्सरी।
क्षमापना के द्वारा परिवार में शांति और सौहार्द लाने वाला पर्व है संवत्सरी।
प्रतिक्रमण के द्वारा आत्मा पर चढ़े पाप कर्मों का भार कम करने वाला पर्व है संवत्सरी।
क्षमापना और प्रतिक्रमण के माध्यम से एक ना एक दिन में विश्व का सर्वोच्च सुख प्रदान करने वाला पर्व है संवत्सरी।










Thank you for explaining in detail importance of parushan and savantsari day