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भविष्य का बालक? बालक का भविष्य?

  • Oct 31
  • 10 min read

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सन् 2025, चेन्नई में मेरा चातुर्मास चल रहा है...।

कुछ दिन पहले एक श्राविका बहन वंदन करने के लिए आये थे। उन्होंने जो बात की, वह मुझे चौकाने के लिए काफी थी।

 

उन्हीं के शब्दों में कहूं तो... मेरी बेटी First Standard में पढ़ रही है, कुछ दिन पहले उसे बुखार आया था, तब उस की स्टडी ना रुके इसलिए मैंने जनरल नोलेज (GK) की बुक घर मंगवायी थी। जनरली सारी बुकें तो अपने घर पर ही होती है, लेकिन GK की बुक स्कूलवालों ने घर पर नहीं दी थी, अपने पास ही रखी थी। जब मैंने अपनी बेटी की GK की बुक देखी तो मैं चौकी, क्योंकि जनरल नोलेज की किताब में एक चेप्टर ऐसा था, जो हमारी संतानों को भटका सकता है।

 

जनरल नोलेज की बुक में 'The Legend' के चेप्टर में मदर टेरेसा की फोटू थी, जिसके बारें में हमने आप से जाना कि उन्होंने कोई सेवा के कार्य नहीं किये थे और 'Star Parade' नामक चेप्टर में हीरो-हीरोईन के फोटू दिखाये गये।

 

CBSE के सिलेबस में, चेन्नई की स्कूल में प्रथम कक्षा की General knowledge की किताब के Unit-7, lesson -21, Page No. 29 पर सात लोगों के चेहरे दिखाकर छोटे बच्चों को काम पर लगाने के अब काले काम शुरु हो चुके है।

 

जनरल नोलेज परोसने के नाम पर 'श्रद्धा कपूर, अक्षय कुमार, आयुष्मान खुर्राना, सोनाक्षी सिंहा जैसे चार बोलीवुड हीरो - हीरोईन और सोनू निगम, नेहा कक्कड, अल्का याज्ञिक जैसे तीन बोलीवुड सींगर को दिखाकर उन्हें महिमामंडित कर के, आदर्श के रूप में स्थापित किया जा रहा है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का सूचक है।

 

छोटे बच्चों के दिमाग कोमल होते है। कोरे कागज जैसे साफ और पवित्र होते है। कच्ची मिट्टी जो होती है, उसका घाट घडा जा सकता है, लेकिन उस मिट्टी को ही यदि बिगाड़ दिया जाये तो उस मिट्टी का घड़ा बनना असंभव हो जाता है।

 

GK की Book का हेडिंग है, 'Roots and Fruits of Knowledge’ उसके नीचे छोटे अक्षरों में लिखा है,

‘A New Generation: GK Series!’

 

हर जगह ये लोग, 'New' शब्द का प्रयोग कर रहे है। (अभी-अभी जो नोबेल प्राईज मिला है, वह भी नवाचार बतानेवाले वैज्ञानिकों को ही मिला है)

 

श्रमण जीवन में हमारे जैसे महात्माओं को तो इनमें से किसी का भी परिचय नहीं होता है, इसलिए हमारे टीम मेम्बर्स के पास से हमें जो जानकारी मिली वह मैं आप को बता रहा हूँ ।

 

जनरल नोलेज के नाम से 'स्टार परेड' के पाठ में जो चमकते चेहरे दिखाये गये है उनमें ‘श्रद्धा कपूर’ (पूर्व में पिक्चरों में खलनायक की भूमिका में रह चुके) शक्ति कपूर की बेटी है।

 

सोनाक्षी सिंहा, कि जो बिंदास विधर्मी के साथ शादी करके हमारी बेटियों को आंतर्जातीय, आंतर्धार्मिक (इन्टर कास्ट एण्ड इन्टर रीलीजन) विवाह के लिए मूक रूप से प्रेरित कर रही है और शत्रुघ्न सिंहा की बेटी है। इतना ही नहीं, वेश्याओं का महिमा मंडन करने वाली जो हीरांमंडी जैसी पिक्चर (मूवी) है, उसमें काम कर चुकी हीरोइन है, ऐसी हीरोईनों के चेहरे दिखाकर वे लोग हमारे बेटे-बेटियों को क्या बनाना चाहते है?

 

जो हीरो थर्ड जेन्डर (LGBTQ) को प्रमोट करने के लिए ही मानों बना हो, ऐसे आयुष्मान खुर्राना जैसे हीरो को क्यों स्टार दिखाकर हमारे बच्चों के दिमाग में फिट किया जा रहा है ?

 

जिसके कोई एथिक्स ना हो, मोरल वेल्यू ना हो, जो शराब-ड्रग्स जैसी नशाकारक चीजों का स्वयं सेवन करते हो, हमारी संतानों को जो इन नशाकारक चीजों की लत लगाने हेतु प्रेरित करता है, जो निकृष्ट से निकृष्ट दृश्य बता-बताकर हमारी नई पीढी को चरित्र से भ्रष्ट करते हो ऐसे हीरो-हीरोईनों को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने वाली पढ़ाई का इतना पागलपन पेरेंट्स को क्यों है?

 

दूसरा एक और किस्सा, जो शायद आपकी आँखें खोल देगा।

 

दक्षिण भारत के ही एक शहर का यह किस्सा है। छोटे बच्चों के लिए स्पेशल खोली गयी एक स्कूल, कि जिसमें जैन बंधुओं के ही अधिक बच्चे पढ़ रहे है। एक संस्कार प्रेमी पिता ने अपनी बेटी को वहाँ पर Pre. KG में पढ़ने के लिए रखी थी। Play Group. Pre KG, UKG; LKG इत्यादि के चक्र में अपने बच्चों को घूसा देने के बाद में, तमाशा देखने वाले अभिभावकों के लिए शायद आगे के शब्द असहनीय होंगे । विद्यामंदिर को वेश्यामंदिर बनता हुआ देखनेवाले या बनवाने के लिए सहर्ष तैयार रहने वाले माँ-बापो के लिए तो यह लेख भी नहीं है, लेकिन मैंने अपनी कलम उन अभिभावकों (माँ-बाप इत्यादि केरटेकर्स) के लिए उठायी है जिन बेचारों को पता तक नहीं है कि वे अपने बच्चों को किस खाई में धकेल रहे हैं। अपने बच्चों का भविष्य क्या बना रहे है.?

 

एक दिन किसी कारण से वह संस्कार प्रेमी पिता की बेटी स्कूल में नहीं जा पायी थी और संयोग से, उसी दिन स्कूल में छोटे-छोटे बच्चों का फेशन-शो रखा गया था। 3 साल और चार साल के लड़के-लड़कियाँ फेशन शो में क्या पर्फ़ॉर्म करेंगे ? पिताजी को जब समाचार मिले तो पहला विचार, पहला प्रश्न यह उठा और तुरन्त इस प्रश्न का जवाब भी अपने मोबाईल की स्क्रीन पर आ गया था। बेटी की स्कूल से ही बनाये गये वोटसेप ग्रुप में, स्कूल के मेनेजमेन्ट के द्वारा भेजे गये फेशन शो की अलग-अलग फोटू ने संस्कार प्रेमी पिता को अंदर से झकझोर कर रख दिया। तुरंत ही उन्होंने निर्णय किया और अपनी बेटी को स्कूल से उठा भी लिया। अपनी बेटी को घर पर ही पढाने का उन्होंने निर्णय लिया, क्योंकि बेटी उन्हें अपनी जान से भी प्यारी है और बेटी के संस्कारों की सुरक्षा उस संस्कारप्रेमी पिता की सर्वोच्च प्राथमिकता है।


स्कूल में से उठाने से पहले पिता ने, फेशन शो का आयोजन करने वाली मेडम को पूछा भी सही।

बहन! आप के बारे में, मैंने कल्पना नहीं की थी, क्योंकि इस स्कूल को खोलनेवाले आप एक संस्कार प्रेमी

जैन श्राविका हो। मेरी बेटी को आपकी स्कूल में रखते वक्त मुझे जो भरोसा था वह आज टूटा है। आप जैसी संस्कार एवं धर्मप्रेमी बहन भी फेशन-शो करवाने लगेगी तो और किस का भरोसा करेंगे?'

 

फेशन-शो के प्रोग्राम में छोटे बच्चे – बच्चियाँ के जिस पोज़ में फोटो लिये गये थे, वह हकीकत में बड़े युवाओं जैसे थे। तीन साल की छोटी उम्र में लडके को, विजातिय के शरीर के विभिन्न हिस्सों पर हाथ रखने को बोला जाये और चलाया जाये यह किसी भी संस्कार प्रेमी अभिभावकों के लिए झटके से कम नहीं है। तीन साल के बच्चों को इतनी समझ भी नहीं होती है, और ऐसे विचार भी नहीं आते है।


रेम्प वोक करवाकर फेशन शो हो उसके फोटू वायरल किए जाये। माँ – बाप के मोबाइल में फोटू आए और फिर भी एकाध – दो को छोडेकर किसी को भी इस बात का एतराज भी ना हो, विरोध शिकायत की बात तो छोड़ो, उल्टी खुशी हो तो आप क्या कहेंगे?

 

संस्कार प्रेमी मुख्य मैडम ने रोती सूरत में उस पिता को जवाब दिया, कि भाई! मैं क्या करू? मैंने भी बच्चों को शिक्षा के साथ- साथ संस्कार देने के लिए ही यह संस्था शुरु की थी लेकिन मेरी मजबूरी यही रही कि मुझे अभिभावकों के द‌बाव में झुकना पड़ा। मेरी स्कूल में अपनी संतानों को रखने वाले कुछ पेरेन्टस की ही यह मांग थी और अति आग्रह था कि, दूसरी स्कूलों में तो ऐसे (फैशन शो जैसे) आयोजन हो रहे है, आप की स्कूल में क्यों नहीं?

 

मेरी स्कूल में आये हुए बच्चे थोड़े-बहुत भी संस्कारी रहे, इसीलिए मैंने मर्यादा से भरे वस्त्रों में (फुली बोड़ी कवर करनेवाले वस्त्रों में) फैशन शो करवाया था, लेकिन यदि में वह भी ना करवाउ और यह देखकर पेरेन्टस अपनी संतानों को उठाकर दूसरी स्कूलों में रख दे तो बच्चों के बचे-खुचे संस्कार भी साफ हो जायेंगे, मैं क्या करू! मेरी हालत इघर खाई, उधर कुआँ जैसी हो गई थी। बच्चों के फेशन शो का आग्रह स्वयं अभिभावक ही जब रख रहे हो, तब संस्कारों की बातें करें कहाँ पर? करेंगे तो सुनेगा भी कौन?

 

संस्कार प्रेमी पिता ने निर्णय कर लिया कि मेरी बेटी को ज्यादा शिक्षा नहीं दे पाउं तो चलेगा, लेकिन बेटी के संस्कार बिगडने नहीं दूंगा। यदि दूसरी स्कूलों में भी संस्कारों की यही स्थिति रही या इससे भी ज्यादा बिगड़ी हुई रही तो अच्छा है कि मेरे घर पे ही मैं क्यों ना पढाउँ? स्पेशल टीचर घर पे बुलायेंगे, लेकिन इस बारे में कोई समझौता करने जैसा नहीं है।

 

जानकर आप आश्चर्य करेंगे, उस संस्कार प्रेमी युवा पिता ने अपनी छोटी बेटी को शिक्षा एवं संस्कार दोनों घर पे ही देने की शुरुआत कर दी और रिजल्ट अकल्पनीय आ रहा है। हिन्दी भाषा का वांचन, स्कूल में पढ़ रहे  बच्चें जो कर रहे है और घर में पढ़ रहीं बिटिया जो कर रही है, उस में जमीन-आसमान का अंतर है। तीन-चार साल के स्कूल अध्ययन के पश्चात जो ग्रीप के साथ वांचन हो रहा है, इस से अनेकगुणा बेहतर वांचन तीन-चार महिने के घर में अध्ययन के पश्चात् हो रहा है। स्कील डेवलपमेन्ट की दूसरी एक्टिविटीज तो अलग से... ही...

 

आज के पेरेन्ट्स की हालत ‘धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का..' जैसी हो रही है, स्कूल की कमरतोड़ फीस भर-भर कर खाली भी हो रहे है और स्कूल में बच्चे ज्ञान से भरे भी नहीं जा रहे है। उल्टा दूसरी ही फालतू चीजों से भरे जा रहे है, भ्रमित हो रहे है, भटक रहे है।

 

शुरू-शुरू में जिसका उदाहरण दिया था, उसी श्राविका बहन ने कही हुई और एक बात...

 

‘मेरी बेटी को एक बार टीचर्स की ओर से कहा गया की, क्रीसमस आ रही है, तो जिसस क्राइस्ट के फेस्टीवल में हिस्सा लेना है।’

 

मुझे जब इस बात का पता चला, मैंने इस का विरोध किया। जिसके चलते सान्ता कलोज़ जैसे ड्रेस पहनकर ड्रेस कोम्पीटीशन में मेरी बेटी ने हिस्सा नहीं लिया, और मेरे इस मजबूत निर्णय से टीचर्स मेनेजेटमेंट ने गाँठ बाँध ली। उस वक्त तो वो कुछ बोले नहीं, लेकिन अब वे कभी भी मेरी बेटी को किसी भी कम्पीटीशन में हिस्सा नहीं लेने देते हैं।

 

मैंने सोचा, यह तो सिर्फ शुरुआत है। एजुकेशन के नाम पर आज कितनी कितनी जगह पर अन्याय एवं अत्याचार खुलेआम हो रहे है और अपनी संतानों को इस आग में झोंकने वाले अभिभावक तमाशबीन होकर देख रहे हैं, चुपचाप...

 

कहीं पर अपने धार्मिक पर्व पर्युषण - ओली - ज्ञानपंचमी जैसे दिनों में भी छुट्टी नहीं दी जाती है, संवत्सरी महापर्व जैसे उत्कृष्ट पर्व के दिनों में उल्टी परीक्षा रख दी जाती है।

कहीं पर भगवान या अपने धर्म की मजाक भी उड़ायी जाती है।

कहीं पर खाने पीने में अभक्ष्य भक्षण, मीड-डे मील के नाम पर करवाया जा रहा है।

कहीं पर यूनिफार्म के नाम पर बड़ी लड़‌कियों को भी घुटने से उपर के स्कर्ट पहनने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

कहीं पर बच्चों को अपनी मातृभाषा बोलने पर भी दण्डित किया जाता है।

कहीं पर इतिहास के नाम पर मुघलों का महिमामंडन किया जा रहा है और झूठा भूगोल पढाया जा रहा है।

 

(पीरियड) अंतराय के तीन दिनों के दौरान बहन - बेटियों को छुट्टी मिलना तो अब एक भी स्कूल में संभव नहीं है।

 

कहीं पर टीचर्स परेशान करते है, तो कहीं पर स्कूल के नियम परेशान करते है, कहीं पर आजू-बाजू के बच्चे ही खुजली कर देते है, इरिटेट करते है, कभी टॉर्चर तो कभी कभी रेगिंग भी चल रहा है।

 

कोटा जैसे शहरों में तो अलग-अलग छात्रों की गेंग भी बनी हुई है, जो बड़े-बडे कांड को भी अंजाम दे देते है। बच्चों के कोमल दिमाग में मार्कस, नंबर्स और टोपर्स शब्दों का इतना प्रेशर बढ जाता है कि, कुछ बच्चे आत्महत्या कर लेते है, प्रेशर कुकर भी अत्यधिक प्रेशर से फट जाता है, तो ये तो मासूम बच्चा है।

 

आज जो शिक्षा पढाई जाती है, इसमें शुष्क, विकृत या फालतू पढाई का पार्ट इतना ज्यादा है कि बच्चे मजबूरी में मोबाईल की अंधेरी गलियों में मनोरंजन के नाम पर मटमैले कीचड़ में धंस जाते हैं।

 

पानी ढलान पर जाने के बाद जैसे ढल जाता है, पहलवान फिसलन भूमि पर पैर रखने पर जैसे फिसल जाता है, वैसे ही बोझिल शिक्षा के बोझ से हल्का होने के चक्कर में मासूम, गंदी आदतों में फिसल जाता है, गिर पड़ता है। फिर वो गंदी आदत अलग-अलग चीजों के नशे भी हो सकते है।

 

जेन्डर इक्वालिटी के नाम पर कुछ स्कूलों में लड़को के साथ लडकियों को या लड़कियों के बीच में लड़को को बैठने के लिए मजबूर भी किया जाता है। अरे, बैठने की बात छोड़ो, जयपुर में एक दंपति ने मुझे जो बात बताई, वो मेरे लिए अजीब ही थी, उन्होंने बताया कि, 'महाराज साहेब ! हाई-फाई स्कूल में तो अब अलग ही ट्रेण्ड चल रहा है, स्त्री-पुरुष समानता के नाम पर लड़के एवं लड़कियों के स्विमिंग पूल भी साथ में ही है, यानी स्नान भी अब साथ में ???

 

इस हद का पतन किसी ने भी आज से 60/70 साल पहले सोचा होगा? ऐसे विचार के लिए भी विचार नहीं आया होगा। एक जमाने में, गुजरात के वांकानेर में शादी के बाद भी दूल्हा -दुल्हन रास्ते पर जाहिर में साथ-साथ नहीं चल सकते थे, आगे-पीछे चलना होता था; हाथ पकड़कर चलने की बात तो दूर की है...

 

कुछ दिन पहले ही मेरे कान पर एक समाचार आये कि, ‘महाराष्ट्र में अब को-एजुकेशन को अनिवार्य किया जा रहा है।' मैं सुनकर चौका, क्योंकि यदि ऐसा कानून देश के हर एक राज्य में आ जायेगा तो तपोवन जैसी संस्थाओं का क्या होगा?

 

ब्रिटेन - अमेरिका की Top 30 स्कूलो में अच्छा रिजल्ट इसलिए आ रहा है, क्योंकि वहाँ से को-एजुकेशन हटा दिया गया है। ऐसा सायन्टीफीक सर्वे भी हुआ है कि, जहाँ पर लड़के लड़कियों की साथ-साथ पढाई नहीं होती है, वहाँ ध्यान ज्यादा नहीं भटकता और रिजल्ट अच्छा आता है।

 

गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल का इन्टरव्यू जब लिया गया था। 'आप को लोह पुरुष कहा जाता है, इसके पीछे का रहस्य?'

इस प्रश्न के उत्तर में (मेरे गुरुदेव श्री के पास मैंने सुना था) सरदार वल्लभभाई पटेल बोले थे कि, 'मेरी शक्ति का श्रेय मेरे घर के पवित्र संस्कारी वातावरण को जाता है।’

 

‘मेरे वडीलबंधु विट्ठलभाई पटेल की शादी होने के बाद भी मैंने मेरे भाई को मेरी भाभी के साथ दिन के उजाले में खुलेआम हँसी मजाक या लंबी – चौड़ी बातें करते हुए कभी देखा नहीं है। इस चारित्र की शक्ति से ही मेरे चरित्र का निर्माण हुआ है।’

आज B.F. और G.F. का कल्चर स्कूल के माहौल में से ही बच्चा सीख लेता है। छोटी उम्र से ही, छोटे-छोटे बच्चे कपल बनाने लगते है, कपल गेम खेलने लगे हैं, ये सारी चीजें वें कौन से सीलेबस में से सीख लेते है?

 

कुछ टीन ऐज Boys and Girls आज के विषम काल में स्कूल बंक करके कुछ बदनाम एरिया के चक्कर काटने लगे हो, एक्स्ट्रा इन्कम लाने या उडाने लगे हो तब उन के माँ-बाप को प्रश्न नहीं जगता होगा कि, इन लोगों का आगे का भविष्य क्या होगा ?

 

भविष्य का बालक कैसा होगा या बालक का भविष्य कैसा होगा? बिल्कुल निराश या हताश होने की जरूरत नहीं है, लेकिन अब इन स्कूलों पर आँखें मूंद कर भरोसा करने की भी जरूरत नहीं है।

 

पूज्य पं. श्री जिनप्रेम विजयजी म.सा. की नूतन प्रकाशित ‘स्कूल सीरिज’ एक बार अवश्य हर एक अभिभावक को पढ़नी  चाहिए। उस किताब में तो जो सत्य प्रसंग लिखें है, हम यहाँ लिख भी नहीं सकते, इतने खौफनाक और खतरनाक है।

 

आप को मेरी बातों पर शक हो रहा हो तो केरला के स्कूलों की एक बार स्टडी करने जैसी हो, जो आज केरला में हो रहा है। वो भारत के अनेक राज्यों की कुछ स्कूलों के बाहर चालू हो चुका है। केरला में छोटे-छोटे बच्चों को ड्रग्स की लत लगवायी गयी, और ऐसे एक-दो नहीं, हजारों बच्चे कुछ महिनों में ही ड्रग्स के शिकार बन गये। केरला की ड्रग्स त्रासदी की बातें हमारे रोंगटे खड़े कर दे, वैसी है।

 

आगे के लेख में और भी महत्त्वपूर्ण बातें, इसी विषय में जानेंगे

बने रहिये अंत तक...

जुड़े रहिये हमारे साथ...

(क्रमशः)

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