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कहानी कुरबानी की...

  • Feb 20
  • 3 min read


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शौर्यगाथा ‘स्वदेशी’ की…


वतन का कर्ज चुकाने के लिए जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी…आज़ादी की मशाल को प्रज्वलित रखने के लिए जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया…ऐसे वीर देशभक्तों की... महावीर के अदम्य साहसिक सपूतों की आज मैं यशोगाथा सुनाने जा रहा हूँ…जो विश्व के लिए ‘शांतिदूत’ थे और शत्रुओं के लिए ‘यमदूत’!


शक्ति की तलवार को क्षमा के म्यान में संजोने का संयम और समय आने पर उसी तलवार से दुश्मनों को धूल चटाने का साहस:- यह विशेषता जिन्हें परंपरा से प्राप्त हुई है, ऐसे जैन वीरों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अग्रिम भूमिका निभाई है।


वतनपरस्ती के इतिहास में जिन महान क्रांतिकारियों का नाम अमर हुआ, उनमें श्री खेमचंद जैन ‘स्वदेशी’ का नाम अत्यंत गौरव के साथ लिया जाता है। आपकी प्रबल स्वदेशी भावना का प्रभाव इतना गहरा था कि आपका पूरा वंश ही ‘स्वदेशी’ कहलाने लगा।


जब अंग्रेज़ी हुकूमत ने भारत की पवित्र भूमि को अपनी पैतृक संपत्ति समझ लीया, माँ भारती के संतानों को परतंत्रता की ज़ंजीरों में जकड़ दिया और भारत की सार्वभौमिकता को अपने पैरों तले कुचलने का दुस्साहस किया, तब आपने और आपके परिवार ने दृढ़ संकल्प के साथ उन्हें करारा जवाब देने का प्रण लिया।


आपके सुपुत्र, श्री मोहनलाल 'स्वदेशी', का जन्म 6 अगस्त 1923 को मध्य प्रदेश के तेंदूखेड़ा गाँव में हुआ था। त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए और राष्ट्रीय सत्याग्रह के लिए जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


अपने गिरफ्तारी के विषय में उन्होंने लिखा है: "सन् 1942 में मैंने जंगल सत्याग्रह में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप वन विभाग और पुलिस द्वारा मेरी गिरफ्तारी हुई। पुलिस ने मुझे हथकड़ियों में जकड़कर बरसती बरसात में सहजपुर ग्राम से केसली पुलिस थाने तक ले गये। फिर वहाँ से लगभग 60 कि.मी. की कठिन पदयात्रा कर मुझे सागर जिले की रहली तहसील में लाया गया। रहली अदालत ने मुझे चार महीने की कड़ी कैद और ₹10 के अर्थदंड की सजा सुनाई। सागर जेल में मुझे कठोर यातनाएँ सहनी पड़ीं, जिन्हें मैंने हंसते-हंसते झेला। पुलिस की मार से मेरा सिर तक फट गया था, और उस समय मेरी आयु मात्र 18 वर्ष थी।"


केवल 18 वर्ष की छोटी आयु में अंग्रेज सरकार के सामने आवाज उठाने की शूरवीरता दिखाने वाले श्री मोहनलाल 'स्वदेशी' ने ब्रिटिश हुकूमत की नींद उड़ा दी थी। उनके ‘स्वदेशी’ परिवार की देशभक्ति ने अनेक क्रांतिवीरों को प्रेरणा दी और स्वतंत्रता संग्राम में एक अमिट योगदान दिया।


स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारे साथी यह कविता गाते थे-

 

'खड़ी रहेगी, पुलिस फौज अरु,

पड़े रहेंगे, सब हथियार

थोड़े दिन में दिखता है यह

डूब जायेगी ये सरकार

पकड़ना हो तो पकड़ ले जालिम

सुना रहे हैं, सरे बाजार

अब न टिकेगी, हिन्द देश में

पाखंडी जालिम सरकार

गूँज आजादी का नाद

इंकलाब जिन्दाबाद

धन शोषण की क्रूर कहानी

पूँजीपतियों की नादानी

हमें हमेशा रहेगी याद

इंकलाब जिन्दाबाद

लाठी गोली सेण्ट्रल जेल

जालिम का है अन्तिम खेल

कर ले मनमानी सैय्याद

इंकलाब जिंदाबाद

ये मजदूरो और किसानो

भावी राज्य तुम्हारा जानो

उजड़े घर होंगे आजाद

इंकलाब जिंदाबाद।'


‘व्यक्तिगत सहिष्णुता बहादुरी होती है, लेकिन समष्टिगत सहिष्णुता कमजोरी बन जाती है।’ इस सत्य को भली-भांति समझने वाले जैन समाज की विशेषता यही है कि जब स्वयं पर आपदा आती है, तो वे मुट्ठी बाँधकर अडिग रहते हैं, और जब राष्ट्र, धर्म या समाज पर संकट के बादल छा जाते हैं, तो वे मुट्ठी उठाकर प्रचंड विरोध करने का साहस भी दिखाते हैं।


जेल की कठोर यातनाएँ और अंग्रेज़ी सेना के प्रहार सहने के बाद भी जिसने हार नहीं मानी, बल्कि अपने साथी के साथ बुलंद आवाज़ में ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारे लगाये, ऐसे वीर बाल क्रांतिकारी मोहनलाल ‘स्वदेशी’ को समस्त देशवासियों का नमन!



1 Comment


Pragnesh Shah
Aug 01

Thank you for sharing so that we came to know nice life time memorable story of मोहनलाल स्वदेशी

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