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महायनक खारवेल Ep. 5





mahanayak kharvel


( मगध की राजधानी पाटलिपुत्र की राजसभा में सम्राट सम्प्रति ने “बोलो अरहंत प्रभु की जय..." का उद्घोष किया और उनके पीछे पूरी सभा ने जय-जयकार किया। तब अचानक बीजली का चमकारा हुआ। किसी का ध्यान वहाँ नहीं था। पर कलिंग कुमार खारवेल समझ गया। अद्भुत त्वरा से उसने कटारी निकालकर सम्राट के सीने का निशाना ले लिया।

फिर आगे क्या हुआ पढ़िएँ। )

 

पलक झपकने के पहले ही सम्राट की छाती को भेदने के लिये आया हुआ बाण खारवेल की कटारी के प्रहार से सीधा बृहद्रथ के बाजू में जाकर गिरा। खणिंग की आवाज आयी।

 

बृहद्रथ अभी तो कुछ समजे-ना समजे उसके पूर्व तो छूत की अट्टालिका से एक आदमी नीचे पटक गया। धबाक की आवाज हुई। और लोगों में दौड़ भाग मच गई। खारवेल घर ने नोंध ली कि जिस अट्टालिका से यह आदमी गिरा था, वहाँ से एक और आदमी भागकर कही' गायब हो गया। भाग-दौड़ के बीच कोई उस तक नहीं पहुँच सका। किसीको उसके होने का अंदाज भी नहीं आया।

 

राज्य के सैनिक त्वरित गति से दोनों स्थल पर पहुँच गये। एक ही क्षण में सेनापति पुष्यमित्र ने कटार ले ली। उसे पता चल गया। उसने सम्राट से झुककर कहाँ, "बाण मगध का है, और कटारी कलिंग की है। यहाँ सीधे कलिंग से कौन आया है?”

 

"कलिंग” का नाम पड़ते ही सभा स्थिर हो गई। कुतूहल से लोग रुक गये। वह आदमी भी सैनिको की खुली तलवार के घेरे में था। सम्राट के अंगरक्षको ने एकदम से सम्राट की चारो तरफ घेरा बना दिया था। और सम्राट सिंहासन से खड़े हुये। वृद्ध थे फिर भी सावज की तरह गर्जना की - "यह कटार किसकी है?”

 

"मेरी है सम्राट, खारवेल आगे आया। दो सैनिको ने उसे सिकंजे में लिया। उसने सम्राट को हाथ जोड़े।" "रक्षक को भी यहाँ इस तरह से बिरदाया जाता है?”

 

सम्राट ने नज़रों से कहा और सैनिक हट गये। अंगरक्षकों ने आडश खोल दी और अब सम्राट और खारवेल की आँखें मिली।

 

"कलिंगवासी! तुं यहाँ? और सगीर होते हुए भी तेरी इतनी हिंमत"? पुष्यमित्र चिल्लाया।

"शांत हो जाओ मागध सेनापति!” खारवेल ने गर्जना करी।

 

"एक राजवंशी के साथ अदब से बात करो।”

 

पुष्यमित्र तो सहम गया। बृहद्रथ तो दिग्मूढ़ ही हो गया था। अपने सिंहासन पर हबक खाकर सिकूड़कर बैठ गया था वह। अब सम्राट और यह कुमार दो लोग थे आमने-सामने। पूरी सभा अपार कौतुक से इस द्रश्य को देख रहीं थी।

 

सम्राट अपनी जगह से चलते-चलते इस किशोर के करीब आये। "कलिंग राजवंश तो जैनधर्म का पालन करता है, बराबर?

 

"जी, सम्राट" मेरा तूजे प्रणाम है।“ सम्राट ने साधर्मिक का अभिवादन किया। सामने खारवेल ने भी हाथ जोड़े। "मेरा भी प्रणाम स्वीकारो सम्राट।“

 

"बोलो मित्र! कौन हो? और किस प्रयोजन से आये हो ? बोलते समय सम्राट आरपार उतर जानेवाली तीक्ष्ण नजर से अविरत देख रहे थे, कुमार के सामने! पर कुमार को उसकी परवाह नहीं थी। लगता था कि जैसे प्रोढ सिंह और बाल सिंह एक दूसरे के सामने खड़े थे।

 

"मैं कलिंग राजवंश से हूँ, मौर्य द्वेषी।"

 

मौर्य का द्वेषी? तो मुझे क्यों बचाया?"

 

"क्योंकि आप जैन हो, साधर्मिक हो, और मेरे गुरू ने मूजे आपकी सुरक्षा के लिये भेजा है यहाँ।"

 

"कौन तेरे गुरु?”

 

"कुमारगिरि पहाड़ पर रहेनेवाले आर्य महागिरीजी के शिष्य आर्य बलिस्सह...”

 

"वाह वाह! बहोत हिन हो गये। कुमारगिरि पहाड़, उसके उत्तम मुनिवर और....”

 

"और खंडेर जिनालय के दर्शन किये।" खारवेल ने बात पूरी करी। कलिंग हमेशा से पाटलिपुत्र का द्वेषी है। क्योंकि कलिंगों के प्राण कलिंगजिन पाटलिपुत्र की कैद में है।"

 

"मैं अभी ही..." सम्राट बोलने जा रहे थे। पर उनकी बात को बीच से ही काटकर खारवेल ने कहाँ,

 

"रहेने दो सम्राट! यह पाटलिपुत्र है। यहाँ भगवान को लूँटा जाता है और सम्राट को मारा जाता है?"

 

"जीह्वा पर अंकुश रख बालक ! नहीं तो अभी के अभी तेरा धड़-शिर अलग- अलग हो जायेगा।" पुष्यमित्र चीखा।

"मगध में आकर मगध की निंदा? मगध राजवंश के सामने? सम्राट के सामने?”

 

"सेनापतिजी! जब दो सम्राट बातचीत कर रहे हो, तब आपको बीच में बोलकर अपमान के पात्र नहीं बनना चाहिये..." खारवेल ने तेजस्वीता से कहाँ।

 

सम्राट संप्रति प्रभावित हो गये। वाह ! ऐसा तेज तो पूरे मौर्यवंश में देखने को नहीं मिलता है।

 

"किशोर! तू भी जैन है और मैं भी जैन हूँ। कलिंग और मगध के द्वेष और बैर को भूलाने का इतना सरल उपाय है। तो तू क्यों मना कर रहा है! वैसे तो बहोत समजदार लग रहा है तू! मेरी रक्षा की भेट स्वरूप तूजे कलिंगजिन दे दूँ तो?"

 

"नहीं चाहिये मुझे भेट । नहीं चाहिये मुझे किसी भी प्रकार का मगध या मौर्य का अहेसान और दान..." खारवेल का रूप कलिंग के किनारे के तूफानी समुद्र जैसा भयंकर बन गया। अब उसका काबू अपने वश में नहीं था।

 

"लूँटेरा आठवाँ नंद जब कुमारगिरि पर से मंदिरों को तोड़कर मूर्ति ले गया, तब मगधों ने क्याँ किया ? मौर्यों के सम्राट अशोक... 1 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया। और डेढ़ लाख लोगों को अपाहिज करके चला गया। तब ये मागधी कहाँ सोये थे ? कलिंगनिवासी ऐसे मौर्यों से किसी भी प्रकार की भेट लेने की खेवना (चाहत) नहीं रखते है। हम हमारे प्राण को दान में नहीं, अधिकार से हांसिल करेंगे। प्रत्येक मागधी को सूचना है, कलिंग से एक दरियाई आँधी आनेवाली है। उसमें पाटलिपुत्र पूरा डूब जानेवाला है। हमारे सम्मान को हम छीनकर लेंगे। और सम्राट! मुझे आपके उपर भी द्वेष है। क्योंकि आप मौर्य हो। पूरे भारतवर्ष में सवा- लाख जिनालय बंधवाये आपने, छतीस हज़ार जीर्णोद्धार करवायें, सवा करोड जिन प्रतिमा भरवायी, पर क्याँ आपको कलिंग नहीं याद आया? "वास्तव में पाटलिपुत्र में आपका कहाँ चलता है? मौर्य साम्राज्य अब पतनोन्मुख है सम्राट!”

 

उसका यह वाक्य पूरा हो उसके पहले ही बीजली की त्वरा से सम्राट की म्यानमुक्त हुई तलवार उसके गले पर बारीक घाँव कर गई। उसमें से खून की पतली धार बहने लगी। खारवेल ने ऊँगली से छूँ कर देखा, खून निकला था - जल रहाँ था।

 

"मौर्यवंश के सामने, जो आँख भी उठाता है, उसकी हालत बहोत ही बूरी हो जाती है। किशोर! तू बच गया है क्योंकि तूने मेरी रक्षा करी है। बाकी तूजे यदि तेरे वंश का अभिमान है। तो मुझे सम्राट संप्रति को मौर्यवंश का अभिमान है।“

 

"जब तक सम्राट संप्रति जीवित है तब तक तू पाटलीपुत्र में पैर भी मत रखना। जब सम्राट नहीं होगा, तब....तेरे जैसे तेजस्वी बालक को मौर्य के हाथों हत्या होते हुए देखना सम्राट संप्रति को अच्छा नहीं लगेगा।“

 

कहकर सम्राट वापस अपने सिंहासन पर बैठ गये।

 

"पुष्यमित्र! इस बालक को कलिंग की सीमा तक छोड़ने के लिये खास रक्षकों को नियुक्त करो। उसे जीने दो। उसे हमें कुछ नहीं करना है। वह पाटलिपुत्र पर हमला लेकर अपनी आत्महत्या करने आयेगा, तब तक उसे जिंदा रहेने दो।“

 

"सम्राट संप्रति!" खारवेल की चीख से सभामंडप गूंज उठा। “पाटलीपुत्र की इस राजसभा में एक प्रतिज्ञा महामात्य चाणक्य ने करी थी, और एक प्रतिज्ञा मैं महाराजा चेतक के वंशज महाराजा क्षेमराज का पौत्र, महाराजा वृद्धराज का पाटवी भिक्खुराय प्रतिज्ञा करता हूँ कि इस खारवेल की सेना जब मगध पर आयेगी तब आत्महत्या के लिये नहीं, पर मगध के शासक को पैरों तले कुचलकर कलिंग को स्वतंत्र करने के लिये आयेगी। याद रखना सम्राट! मुझे आशा है कि उस दिन को देखने के लिये आप भी जीवित रहो…”

 

"बस कर बालक!" सम्राट क्रोध से काँप रहे थे।

 

"जा, जल्दी जा। आर्य बलिस्सह को मेरा प्रणाम कहना। जा, मेरे धैर्य का बंध तूट जाये उसके पहले चला जा, भाग जा।।“

 

और खारवेल सिंह जैसी चाल से चला, और मरेल से छलांग लगाकर उत्कल पर सवार हो गया। और पानी के पूर की तरह उत्कल धसमसा गया कलिंग की तरफ । मगध और मागधी तिरंदाजो के तीर, और घोड़े सब पीछे रहे गये।...

 

“कलिंगजिन की जय हो।" खारवेल बड़बड़ाया।

 

( क्रमशः )

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