top of page

“शांत रहो, ताकि जैनों की नींद न टूटे...”



Vande Shasanam

कुछ ही दिनों में जिनशासन की स्थापना का पावन दिन आने वाला है। कुछ स्थानों पर इसको लेकर थोड़ी बहुत चहल-पहल दिखाई दे रही है, लेकिन जिस प्रकार हम अपने जन्मदिन, वर्षगांठ, अन्य पर्वों अथवा अपने-अपने गुरुओं के जन्मदिवस या दीक्षा तिथि आदि को उल्लासपूर्वक मनाते हैं, उसके मुकाबले जिनशासन स्थापना दिवस के प्रति वैसा उत्साह देखने को नहीं मिलता।


श्रीसंघ भी अन्य सभी अनुष्ठानों के लिए अच्छा-खासा बजट निर्धारित करता है, परंतु सम्पूर्ण जिनशासन के इस सबसे महत्वपूर्ण पर्व — 'शासन स्थापना दिवस' — के लिए किसी प्रकार की विशेष योजना या आयोजन दिखाई नहीं देता।

और ऊपर से ये कहा जाता है भाई! साल भर में कितने त्योहार मनाने हैं...?


तो उसके जवाब में मेरा एक ही प्रश्न है — आप जितने भी पर्वों की, जितनी भी अलग-अलग तिथियों की उत्सवपूर्वक celebration करते हैं, क्या आपको पता है कि आप ये सब मना भी कैसे पा रहे हैं?

क्योंकि हमें इस जिनशासन की स्थापना का पर्व मिला है, इसलिए ही ये सब संभव हुआ है...

अगर प्रभु का शासन ही न मिला होता तो?

तो हम एक भी कल्याणक या पर्व मना ही नहीं पाते।


शास्त्रों में कहा गया है कि "पर्वों में श्रेष्ठ पर्वाधिराज पर्युषण है," लेकिन यह कहना भी उचित है कि इस पर्वाधिराज पर्युषण का उत्सव वही मना सकता है जिसे जिनशासन की प्राप्ति हुई हो। यदि जिनशासन की स्थापना न हुई होती, तो भला इस पर्युषण की आराधना कौन करता?


खैर, इस पर अधिक क्या कहा जाए — यही विचार अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।


शासन से सम्बद्ध अनेक महत्वपूर्ण एवं ज्वलंत समस्याएँ आज भी समाधान की प्रतीक्षा में हैं, किंतु दुर्भाग्यवश उन पर गंभीर चिंतन करने का समय किसी के पास नहीं है। यदि हम केवल एक दृष्टि उन समस्याओं पर डालें, तो अनेक प्रश्न स्पष्ट रूप से सामने आ जाते हैं। यह तो केवल सतही दृष्टि से दिखने वाले कुछ प्रश्न हैं—यदि हम गहराई में जाएँ, तो समस्याओं की संख्या कहीं अधिक और गंभीर प्रतीत होती है।


जैनों का वर्चस्व

पूर्वकाल में समाज में महाजनों का जो वर्चस्व था, वह वर्तमान समय में जैन समाज का दिखाई नहीं देता। महज सत्ताधीशों पर ही महाजनों का प्रभाव नहीं था, बल्कि आम जनता पर भी उनका गहरा प्रभाव था। आज जैनों की सामाजिक उपस्थिति जैसे लुप्त होती जा रही है। स्थिति तो यह है कि दिन-ब-दिन जैन समाज और भी अधिक कमजोर होता जा रहा है। कई उद्योगपति जैन हैं, फिर भी समाज में प्रभाव और दबदबा तो उन जातियों का है जिन्हें कभी निम्न समझा जाता था, क्योंकि आज प्रशासनिक पदों पर वही लोग बैठे हैं।


सरकारी आक्रमण

चैरिटेबल ट्रस्ट और अन्य सरकारी कानूनों के माध्यम से जैन संघों पर निरंतर आक्रमण किया जा रहा है। प्रत्येक सरकारी कार्यालय में जैनों को काम करवाने के लिए अधिकारियों को ख़ुश रखने की नीति अपनानी पड़ती है, फिर भी उन अधिकारियों का दबाव जैनों और उनके संगठनों पर बना ही रहता है। यहां तक कि एक धार्मिक शोभायात्रा (वरघोड़ा) की अनुमति के लिए भी हमें तमाम तरह के नियमों और शर्तों की जंजीरों में बांधा जाता है।


यह बात सही है कि सरकार में जैनों का वर्चस्व आज के समय में अधिक दिखाई नहीं देता। इसका मुख्य कारण यह है कि जैन समाज ने काफी हद तक राजनीति से दूरी बना ली है। इसी वजह से सरकार के अंदर जो लोग बैठे हैं, वे जैनों का केवल उपयोग करते हैं, लेकिन चूंकि जैन समाज एक संगठित वोटबैंक के रूप में नहीं देखा जाता, इसलिए उनकी बातों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता।


पत्रकारिता और मीडिया

हालांकि यह कहा जाता है कि कई बड़े समाचार पत्रों और मीडिया हाउसों के मालिक जैन हैं, फिर भी इन संस्थानों में जैन धर्म की गरिमा, जैन सिद्धांतों या जैन धर्म की प्रभावशाली बातों का प्रचार-प्रसार दिखाई नहीं देता। न तो जैन धर्म के अद्भुत सिद्धांतों—जैसे अनेकांतवाद, अहिंसा, अपरिग्रह—पर कोई विशेष लेख लिखे जाते हैं और न ही जैन धर्म से जुड़े मुद्दों पर संवाद होता है।


एक तो जैन समाज से जुड़े पत्रकारों की संख्या भी कम है, और जो हैं, उनमें भी जैन धर्म का प्रभाव, सोच या पहचान विशेष रूप से नजर नहीं आती। यही कारण है कि मीडिया में भी जैन धर्म की उपस्थिति सीमित है और इसका व्यापक प्रचार नहीं हो पाता।


व्यापार

वर्तमान समय में हर व्यवसायिक क्षेत्र में विचित्र परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं। ऐसे समय में जैन संघों और समृद्ध जैन परिवारों को एकजुट होकर मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय जैन परिवारों को सहारा देना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य करना चाहिए। अन्यथा जैन समाज धीरे-धीरे और भी अधिक आर्थिक रूप से कमजोर होता जाएगा।


आज अधिकांश जैन परिवार केवल नौकरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं। जो बनिया वर्ग पहले सदैव व्यापार करता था, वह आज बड़ी संख्या में नौकरी में लग चुका है क्योंकि उसके पास व्यापार में निवेश करने के लिए आवश्यक पूंजी नहीं है।


यदि जैन समाज मिलकर अपनी एक बैंक स्थापित करे और उसमें पूंजी एकत्र करे, तो उस माध्यम से लोन आदि देकर जैन युवाओं को व्यापार में अच्छी तरह से समर्थन दिया जा सकता है। यह पहल जैन समाज की आर्थिक समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।


शिक्षा क्षेत्र में जैन समाज स्कूल में जितना डोनेशन देता है और स्कूल की भारी-भरकम फ़ीस भरता है, अगर वही सभी जैन एकजुट होकर अपनी स्वयं की स्कूल की स्थापना करें, तो इतनी बड़ी राशि खर्च करने की आवश्यकता ही नहीं पड़े।


अक्सर देखा गया है कि अधिकांश जैन अपने बच्चों को सबसे महंगी और प्रतिष्ठित स्कूलों में ही पढ़ाने के लिए भेजते हैं। ज़रा कल्पना कीजिए कि केवल डोनेशन और फ़ीस के माध्यम से ही समाज कितने करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है — फिर भी अपनी कोई जैन स्कूल नहीं खोल रहा।


इसी कारणवश, नई पीढ़ी बड़ी संख्या में धर्म से विमुख हो रही है और पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण करने लगी है।


अन्य धर्मों के आक्रमण और जैन संघ की पीड़ा

सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, जैन संघ को तो हमेशा सहन ही करना पड़ा है। हमारे प्राचीन मंदिरों, हमारी विरासत, और अनेकों स्थापत्य पर आज भी अन्य धर्मों ने अपना अधिकार जमा रखा है, परंतु वे मंदिर और मूर्तियाँ आज तक जैन समाज को सौंपे नहीं गए हैं।


यदि कोई मुस्लिम बादशाह हमारे भगवानों को हमसे छीन लेता, तो इतिहास की परिस्थिति को देखते हुए उसे किसी हद तक समझा जा सकता था। लेकिन आज, जब ऐसी कोई कट्टर सत्ता नहीं है, तब भी यदि हमें अपने ही मंदिर और तीर्थ वापस न मिलें, तो यह अत्यंत दुखद और पीड़ाजनक स्थिति है।


राम मंदिर का निर्माण हो गया, और सम्पूर्ण देश ने हर्ष मनाया। हम इसका विरोध नहीं करते, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या अयोध्या, जो हमारी भी कल्याणक भूमि है, उसके लिए उन्होंने कुछ किया? क्या उन्होंने हमारे गौरव के प्रतीक गिरिराज शत्रुंजय महातीर्थ के लिए कोई ठोस प्रयास किया?


इस्लामीकरण

आज के समय में गेमिंग जैसे माध्यमों के ज़रिए युवाओं से संपर्क स्थापित किया जाता है, फिर उनका ब्रेनवॉश कर के उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। साथ ही, बड़ी संख्या में हमारी लड़कियों और बहनों को गिफ्ट्स, नशा, फोटो और वीडियो जैसी कई तरकीबों से फंसाया जाता है। इसके बाद मुस्लिम युवक उन्हें अपने जाल में फँसाकर उनका शोषण करते हैं और फिर उनका धर्म परिवर्तन करवा देते हैं। इस प्रक्रिया से वे महिलाएँ मुस्लिम बन जाती हैं, और उनके बच्चे भी मुस्लिम कहलाते हैं। यह हमारे जैन धर्म के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। लव जिहाद एक बहुत ही खतरनाक और चिंताजनक साजिश है।


व्यसन

जैन धर्मी कहलाने वाले कुछ श्रीमंत परिवारों ने अपने घरों में अपना निजी बार बनाया है, और जो अत्यधिक श्रीमंत नहीं होते, ऐसे कुछ लोग होटल आदि में जाकर अपने परिवार के साथ ड्रिंक्स लेते हैं और इसे अपना Status मानते हैं।आजकल के युवा और कॉलेजियन बहुत बड़े पैमाने पर ड्रग्स और हुक्का का सेवन कर रहे हैं। हम रात्री भोजन और कंदमूल का त्याग करने की प्रेरणा देते हैं, लेकिन उनका जीवन तो बिल्कुल नीचले स्तर तक पहुँच चुका है। सिगरेट अब एक सामान्य वस्तु बनती जा रही है। जैन परिवार की कुछ-कुछ लड़कियाँ खुलेआम सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पी रही हैं, और इसे सभी बहुत मॉडर्न और एडवांस मानते हैं।


विवाह विच्छेद

आजकल फिल्में और इंस्टाग्राम की रील्स देखकर केवल आकर्षण या अन्य कारणों से लोग अन्य व्यक्तियों के साथ तुरंत संबंध बना लेते हैं, जिससे विवाह विच्छेद की नौबत आ जाती है। कई बार यह स्थिति एक-दूसरे के अहंकार और स्वार्थ के कारण भी उत्पन्न होती है।


पहले के समय में विवाह से पूर्व गलत संबंध बनाना एक असामान्य बात मानी जाती थी, लेकिन अब तो विवाह के बाद भी ऐसे अवैध संबंध चल रहे हैं। इसी वजह से शंका के कारण वैवाहिक संबंध अधिक समय तक टिक नहीं पाते। जैन धर्म के आदर्शों और संस्कारों को भुलाकर वर्तमान समय में जैन समाज में भी यह बुराई बड़े पैमाने पर फैल चुकी है, जो अत्यंत चिंताजनक है।


पार्टी

पार्टी कल्चर का ऐसा पागलपन होने लगा है कि एक धार्मिक परिवार के श्राविक ने आकर शिकायत की कि मेरे पति ने मुझे ऐसा कहा कि तुम क्यों किसी के साथ अफेयर नहीं रखती। शादी के बाद भी पति-पत्नी अफेयर करते हैं और इसका समाज में एक स्टेटस होता है। दोनों को इस बात का गर्व होता है कि शादी के बाद भी उनका अफेयर चलता है।

पार्टनर की अदलाबदली करना और फार्म हाउस में पार्टी वगैरह करना, ऐसे दूषण जो समाज में घुस गए हैं, बहुत ही गंभीर मुद्दे हैं।


इंटरकास्ट मैरिज

पहले अमेरिकी शादी के रिश्तों को लेकर मजाक किए जाते थे, लेकिन अब यह स्थिति जैनों के बीच भी आ गई है। एक के पापा पारसी हैं तो दूसरे की मम्मी वैष्णव हैं। घर-घर में अलग-अलग धर्म के मम्मी और पापा एक साथ आ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि यह धर्म कहाँ जाएगा और उनके संतान कौन सा धर्म अपनाएंगे? इसके साथ ही जो मिश्रण हुआ है, उससे उनकी धार्मिक भावना कैसी होगी, यह वास्तव में एक विचारणीय विषय है।


विरोध

हमारे जैनों की एक ऐसी विशेषता है कि यहाँ हर बात का विरोध किया जाता है। बात अच्छी है – सही है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बस विरोध करना हमारी आदत बन गई है, और जब हम विरोध करते हैं, तो हमें लगता है कि हम सच में शासन प्रेमी हैं। हम सही शासन के हितचिंतक हैं और शास्त्रों के आधार पर हम शासन के भविष्य के बारे में सोच रहे हैं।


सभी मुद्दों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है जैनत्व जागरण


ऊपर दिए गए सभी सवालों का उत्तर इस एक विषय में निहित है। यदि जैनत्व जागरण होता है, तो सभी समस्याओं का समाधान संभव हो सकता है। जैसे एक हिंदू सरकार अगर 10 सालों के अंदर हिंदुत्व का जागरण करती है, तो सभी हिंदुओं के अंदर जोश और उत्साह आ जाता है। ठीक उसी प्रकार, अगर सभी जैनाचार्य एक साथ इस जैनत्व जागरण के मिशन पर काम करें, तो जिनशासन से जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान संभव हो सकता है।


जैनत्व के जागरण हेतु, जिनशासन की स्थापना के दिवस को हमें भव्य और व्यापक रूप से मनाना चाहिए। जैसे स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के आयोजन से देशवासियों में देशभक्ति की भावना जागृत होती है, ठीक वैसे ही जिनशासन स्थापना दिवस का आयोजन हमारे भीतर जिनशासन के प्रति परम श्रद्धा और भक्ति को जाग्रत करता है।


Last Seen :

जय जय जिनशासन,

हर घर जिनशासन

3 Comments


Guest
May 02

अभी भी एक प्रश्न है, हमारे गुरु भगवंत विहार में तो सुरक्षित नहीं है लेकिन उपाश्रय में भी सुरक्षी नहीं है, आसपास slum area बना देते हैं और फिर दारूड़िया की धमाल शुरू दिन रात, नॉन वेज खाना, जुआ खेलना, दिन रात मारामारी, पुलिस कुछ नहीं कर सकती और हम जैनों ac में मस्त सोते हैं

Like
Guest
May 04
Replying to

Log bhalehi AC mein soye .....hum jage hai kya....yeh sawal apne aapse karna anivarya banta ....

Like

Guest
May 02

A very thoughtful blog

Like
Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page