
भारत में धार्मिक जनसंख्या का वितरण: एक विश्लेषण (1950-2015)
भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 28 में हिंदू बहुसंख्यक हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। वहीं, पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्य जैसे नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में ईसाई धर्म बहुसंख्यक है, और पंजाब में सिख समुदाय बहुमत में है। इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्य धार्मिक रूप से विविध हैं, जहां कोई भी धर्म बहुसंख्यक नहीं है।
भारत के 28 राज्यों में से 7 राज्यों में ईसाई आबादी 70% से अधिक है, जबकि 5 राज्यों में मुस्लिम जनसंख्या 80% से ज्यादा है। इसके विपरीत, जैन समुदाय की जनसंख्या महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे पाँच प्रमुख राज्यों में भी 1% से कम है। इसके अलावा, अन्य राज्यों में तो जनसंख्या नगण्य ही मानी जा सकती है।
भारत के धार्मिक समूहों का वितरण
1. हिंदू धर्म:हिंदू धर्म भारत में सबसे बड़ा धर्म है, जो देश के अधिकांश हिस्से में प्रचलित है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हिंदू बहुसंख्यक हैं। उत्तर प्रदेश में हिंदू आबादी में 25 मिलियन (2.5 करोड़) का इजाफा हुआ है, जबकि बिहार में यह संख्या 17 मिलियन (1.7 करोड़) बढ़ी है।
2. मुस्लिम समुदाय:भारत में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है। 1950 से 2015 तक, मुस्लिमों की जनसंख्या 43.15% बढ़ी है। इस अवधि में, मुस्लिमों का प्रतिशत भारत की कुल जनसंख्या में 9.84% से बढ़कर 14.09% हो गया। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी में सबसे बड़ी वृद्धि हुई है।
3. ईसाई धर्म:ईसाई धर्म भारत के कुछ राज्यों में बहुसंख्यक है, जैसे नागालैंड, मिजोरम और मेघालय। भारत के अन्य हिस्सों में, ईसाई धर्म के अनुयायियों की संख्या में वृद्धि हुई है, विशेषकर तमिलनाडु और मेघालय में। 1950 से 2015 तक, ईसाई समुदाय का पॉपुलेशन शेयर 2.36% बढ़कर 5.38% हो गया।
4. सिख धर्म:सिख धर्म पंजाब में प्रमुख धर्म है, जहां सिख बहुसंख्यक हैं। 1950 से 2015 तक, सिखों की जनसंख्या में 6.58% की वृद्धि हुई है, जिससे उनका प्रतिशत 1.24% से बढ़कर 1.85% हो गया।
5. बौद्ध धर्म:बौद्ध धर्म के 77% अनुयायी मुख्यतः महाराष्ट्र में पाए जाते हैं, जहां उनकी संख्या 6.5 मिलियन (65 लाख) है। 1950 से 2015 तक, बौद्ध समुदाय का पॉपुलेशन शेयर 0.05 फीसदी से बढ़कर 0.81 फीसदी हो गया है. मतलब की बौद्ध धर्म के अनुयायियों की जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है।
6. जैन धर्म:जैन धर्म की जनसंख्या में 1950 से 2015 के बीच गिरावट आई है। जैनों की जनसंख्या का हिस्सा 0.45% से घटकर 0.36% हो गया है।
जैन धर्म की जनसंख्या में गिरावट
2011 की जनगणना और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) की रिलीजियस माइनॉरिटीजः अ क्रॉस कंट्री एनालिसिस (1950-2015) रिपोर्ट के अनुसार, जैन धर्म की जनसंख्या में गिरावट आई है। 1950 में यह 0.45% थी, जो 2015 में घटकर 0.36% हो गई। इसके विपरीत, मुस्लिम, सिख, बौद्ध और ईसाई समुदायों की जनसंख्या में बढ़ोतरी देखी गई है। रिपोर्ट में बताया गया कि साल 1950 से 2015 के बीच 65 सालों में मुस्लिम आबादी 43.15 फीसदी बढ़ी है. 1950 में भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या देश की कुल आबादी का 9.84 फीसदी हिस्सा थी, जो 2015 में 14.09 फीसदी हो गई. हिंदुओं की बात करें तो 65 सालों में उनका शेयर घटकर 78.06 फीसदी रह गया. 1950 में भारत में 84.68 फीसदी हिंदू रहते थे और 2015 तक इनके पॉपुलेशन शेयर में 7.82 फीसदी की कमी आई है. ये रिपोर्ट इकोनॉमिस्ट शमिका रवि, अब्राहम जोस और अपूर्व कुमार मिश्रा ने तैयार की है।

जैनों की जनसंख्या घटने के प्रमुख पाँच कारण
शिक्षा के लिए विदेश गमन
वर्तमान में अपने बच्चों को विदेश में पढ़ाई करने के लिए भेजने का एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। अगर पैसे हों और बेटा-बेटी अच्छे हों, तो उन्हें सबसे अच्छी डिग्री प्राप्त करने और अच्छे कंपनियों में नौकरी पाने के लिए विदेश भेजने का चलन है। विदेश में रहने वाले बच्चे वहीं बस जाते हैं और फिर से उस देश में आने का विचार नहीं करते।
युवावस्था में गए वे बच्चे, जिन्हें उस उम्र में धर्म कम आकर्षक लगता है, ऐसे में उन्हें स्वतंत्रता मिलती है और वे धर्म से दूर हो जाते हैं। इसके अलावा, वहाँ का शिक्षा और वातावरण उनके ऊपर असर डालता है, जिससे वे धर्म के नियमों का पालन करना पसंद नहीं करते और नियमों को वे ओर्थोडॉक्स मानते हैं। इस कारण से जैन धर्म से जुड़े रहने की संभावना कम होती जा रही है।
विवाह न करना
बॉलीवुड की फिल्मों को देखकर लोग अब लिव-इन रिलेशनशिप या सिंगल रहने को अधिक पसंद करने लगे हैं। यह सोचते हुए कि शादी करने की क्या आवश्यकता है, या बिना शादी किए भी जीवन में सुख मिल सकता है, इस प्रकार की निम्नस्तरीय मानसिकता के साथ एक नया वर्ग समाज में बढ़ रहा है।
विवाह केवल भौतिक सुख के लिए नहीं है, बल्कि यह समाज में एक स्वस्थ जीवन की नींव है और हमारी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। इस बात को भूलकर केवल शारीरिक सुख के लिए शादी करना एक बंधन समझकर लोग शादी करने से बचने लगे हैं।
शादी न होने के कारण संतानों का जन्म और परिवार का निर्माण भी प्रभावित हो रहा है।
एक ही संतान
कुछ दंपत्ति अब संतान को बोझ मानने लगे हैं। जो संस्कृति थी, जिसमें जन्म के समाचार को भी शुभ समाचार माना जाता था, अब वही परंपरा अब वर्तमान पीढ़ी द्वारा संतान को बोझ मानने लगी है।
जो लोग अपनी मौज-मस्ती में बेहिसाब पैसे खर्च करते हैं, वही एक संतान के पालन-पोषण के लिए यह तर्क देते हैं कि उनका शिक्षा और अन्य खर्चे नहीं उठाए जा सकते। विदेश यात्रा, iPhone जैसे मोबाइल, और हर अवसर पर महंगे रेस्टोरेंट में जाकर बड़े-बड़े बिल बनाने वाले लोग एक संतान के खर्चे उठाने के लिए तैयार नहीं होते।
हर संतान अपना पुण्य लेकर आता है, फिर भी अब केवल एक संतान रखने का चलन बढ़ रहा है।
आनेवाला समय शायद ऐसा होगा, जिसमें दंपत्ति एक संतान के लिए भी उत्साहित नहीं होंगे। यह सबसे बड़ा चिंतन का विषय है।
अन्यधर्मी के साथ विवाह
जब जैन धर्म की लड़कियाँ मुस्लिम या हिंदू जैसे किसी अन्य धर्म या समाज में विवाह करती हैं, तो जैन धर्म को सबसे बड़ा नुकसान होता है। यह सिर्फ एक लड़की का विवाह नहीं होता, बल्कि उस लड़की के बच्चों और आने वाली पीढ़ी का भी जैन धर्म से संबंध टूट जाता है।
केवल प्रेम में अंधे होकर आजकल कई युवा लड़कियाँ अन्य समाजों में विवाह कर रही हैं। फिल्मी दुनिया के आभासी संसार में जीने वाली इन लड़कियों को यह भान नहीं होता कि शौक और इच्छाओं से ऊपर धर्म और संस्कृति का स्थान है।
जब माता-पिता अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा और संस्कारों से दूर रखने लगते हैं, जब वे उन्हें गुरु-भगवंत के सत्संग एवं धार्मिक स्थलों से दूर रखते हैं, तो इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे अपने धर्म और संस्कृति से विमुख हो जाते हैं। माता-पिता यह सोचकर डरते हैं कि यदि उनके बच्चे धार्मिक स्थानों पर जाएंगे तो वे धार्मिक प्रवृत्ति के हो जाएंगे, परंतु वे यह भूल जाते हैं कि इन स्थानों पर केवल धार्मिकता ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की सच्ची कला भी सिखाई जाती है। धर्म और संस्कृति से विमुख होने के कारण युवा अन्य धर्मों में विवाह को सहज रूप से स्वीकार कर लेते हैं, जिसका सबसे अधिक नुकसान स्वयं धर्म और समाज को होता है।
धर्म परिवर्तन
भारत के दक्षिणी क्षेत्र और ग्रामीण इलाकों में कुछ लोग आर्थिक लालच के कारण धर्म परिवर्तन करते हैं। वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इतने अज्ञानी होते हैं कि बिना अपने धर्म के गूढ़ सिद्धांतों को समझे, अन्य परंपराओं और धर्मों के अज्ञान से भरे हुए धर्मग्रंथों को सुनकर, पढ़कर, और उनकी बातों में आकर, जैन धर्म को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।
धर्म परिवर्तन को एक शब्द में कहें तो, यह केवल धर्म बदलने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो न केवल धर्म छोड़ते हैं, बल्कि नास्तिक भी बन जाते हैं और धर्म को पूरी तरह से नकारते हैं, वे धर्म अपनाने के लिए तैयार नहीं होते।

अंत में इतना ही कहना है कि,
भारत में मुस्लिम और ईसाई समुदाय की जनसंख्या बढ़ रही है, जबकि सनातन धर्म के अनुयायी भी अपनी कट्टरता में वृद्धि कर रहे हैं। इसे देखते हुए, जैन धर्म को बचाने का एकमात्र उपाय यह है कि यदि जनसंख्या बढ़े, तो ही आपकी आवाज़ सुनी जाएगी, अन्यथा आपके अस्तित्व को समाप्त करने के अलावा कुछ और नहीं किया जा सकेगा।
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