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जैन को कट्टर बनना चाहिए या नहीं?

Writer: Panyas Dhananjay Vijay MaharajPanyas Dhananjay Vijay Maharaj



अनेक जन्मों में किए हुए शुभ कर्मों के परिणाम हमें जैन धर्म मिला है। परंतु इस भव में प्रभु वीर के शासन प्राप्ति के पश्चात जो हमारे दिलों दिमाग में जिनशासन का जुनून होना चाहिए वह देखने नहीं मिल रहा है।


हिंदू कट्टर बनते जा रहे हैं। सिख तो कट्टर ही है। ख्रिस्ती, मुसलमान, स्वामीनारायण जैसे धर्म - संप्रदायों में मिशनरी के तौर पर धर्म फैलाने एवं धर्मावलंबी बढ़ाने का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है।


अरे! नये नये पंथ जैसे कि दादा भगवान, श्रीमद् राजचंद्र, ब्रह्मा कुमारी वगैरा पंथ में भी लोगों को अपनी और आकर्षित – आवर्जित करके अपना संख्याबल बढ़ाने की होड़ लगी हुई है। इन सभी धर्म – पंथ - संप्रदायों में केवल एक जैन धर्म ही ऐसा है जो ना तो कट्टर है, ना ही मिशनरी के तौर पर काम करता है और ना ही संख्याबल बढ़ाने की सोचता है। ऊपर से सभी धर्म - संप्रदायों को अपने जैनियों की भेंट दे रहा है। इस कारण से जैन धर्मावलंबियों की संख्या कम होती जा रही है और कमजोर भी होती जा रही है।


कमजोर होते जा रहे है इसलिए कहता हूँ क्योंकि जैनों के पास पैसे बढ़ने से परिवार में भोगविलास बढ़ रहे हैं। बेटे बेटियों में संस्कार का नाश दिख रहा है। शादी, बर्थडे, एनिवर्सरी जैसे कार्यक्रमों में कहीं ‘जैन’ का कार्यक्रम है ऐसा दिख नहीं रहा है।


उचित वेश के बारे में तो हमें चुपकीदी ही रखनी है, नहीं तो बोलेंगे की आप कौन होते हो हमें सीखाने वाले की क्या पहनना और क्या नहीं पहनना चाहिए?


आहार में नजर डालें तो कई चीजें ऐसी खा रहे हैं की जिसमें या तो नॉनवेज है या नॉनवेज होने की संभावना है।

पहले तो होटल में न जाने की प्रतिज्ञा देते थे। अब वेज - नॉनवेज दोनों आइटम जहां बनती हो ऐसी होटल में मत जाओ ऐसी प्रतिज्ञा देते हुए हमें पसीना आ रहा है।


लोग पाप गर्व से कर रहे हैं, होटल में जाते हैं, छोटे कपड़े पहनते हैं, बार डिस्को में जाते हैं, तो उसके फोटो सोशल मीडिया पर प्राउडली शेयर करते हैं। मतलब की जो पाप है उसे भी गर्व से कर रहे हैं और दूसरों को प्रेरित करते हैं कि आप ऐसी जिंदगी नहीं जी रहे हो तो आप पछात हो।


इस तरफ एक धर्मात्मा जो उबाला हुआ पानी पी रहा है, उसको उसका पानी का मटका ड्राइंग हॉल से हटा कर बेडरूम में छुपा कर रखना पड़ता है। यदि उसने जाहिर में रख लिया तो उसकी ऐसी हवा फैलेगी की यह तो बहुत बड़ा धार्मिक है। उसके बेटे - बेटी को कन्या - दामाद नहीं मिलेंगे। कैसा यह भयजनक वातावरण बन गया है। मतलब की धर्म करना शर्म की बात हो चुकी है।


लेकिन... किंतु... परंतु...

अब समय आ चुका है धर्म और धर्मात्मा में कट्टरता बढ़ाने का।

खाली एक दिन की रैली - रेला निकाल ने से धर्म नहीं चलेगा।


365 दिन... 24x7 हर एक जैन के जिगर में जिनशासन के लिए जुनून होना ही चाहिए। जैन धर्म के आचार और संस्कार के प्रति गौरव होना चाहिए। केसरी तिलक केवल सिर पर करने के लिए ही नहीं परंतु जिनशासन के लिए केसरिया करने का जज़्बा भी होना चाहिए।


एक युवान को अंधेरी स्टेशन पर इस्कॉन मंदिर वालों ने भगवत गीता ऑफर की और वह भी फ्री में। तब युवा ने औचित्य के साथ साफ-साफ इनकार कर दिया। इस्कॉन वाले भाई बराबर के पीछे ही पड़ गए कि रखो... रखो... जीवन बदल जाएगा...। तब युवा ने बेबाक़ स्वर में स्पष्ट रूप से कह दिया कि मुझे जैन धर्म मिला है। मुझे इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।


बात यह है कि हमें जैन धर्म मिला है तो रक्त के बूंद बूंद में स्वाभिमान होना ही चाहिए। और हृदय की हर  धड़कन से जय जिनशासन का ही नाद उठना चाहिए। अंतर में जैनत्व को कूट-कूट कर भरना है।


“प्रधानम् सर्वधर्माणां...” यानी सर्व धर्म में प्रधान अर्थात सर्वश्रेष्ठ धर्म ऐसा जैन धर्म मिला हो तो क्यों हम आँखें झुकाकर रखते हैं। हम क्षमा का संदेश फैलाने वाले हैं इसलिए आँखें दिखाने का काम नहीं करेंगे मगर आंख से आंख मिलाकर बात करेंगे। सर झुकाकर नहीं, सर उठा कर जियेंगे। रोम रोम में शासन का जोश भरकर जियेंगे। हम जैन है, जैन धर्म हमें मिला है उसका हमें गर्व हमेशा होना ही चाहिए।


एक बात याद आती है कि जब नरेंद्र मोदी 2014 में अमेरिका जाते हैं तब फर्स्ट टाइम व्हाइट हाउस में उनके सम्मान में पार्टी रखी गई थी। मोदी जी हर साल नवरात्रि में हिंदू परंपरा के उपवास रखते हैं इसलिए उस वक्त नवरात्रि होने से उनको उपवास चल रहे थे। बराक ओबामा ने रखी हुई इस डिनर पार्टी में आए हुए सब इंजॉय कर रहे थे मगर मोदी जी ने एक घूँट वाइन - बियर नहीं ली। उतना ही नहीं पानी के अलावा कुछ स्वीकार भी नहीं किया।


जब हम सुनते हैं कि महाराज साहब! ऐसे तो हम जमीनकंद नहीं खाते हैं परंतु केवल दोस्तों के साथ बाहर जाते हैं तब ही खाना पड़ता है। तो मुझे लगता है कि हमने प्रेम, करुणा और क्षमा की बातें करके इतने उदार (?) जैन बना दिए हैं कि उनमें से धार्मिक कट्टरता चली गई है।


एक मुसलमान कभी तिलक नहीं लगाता है। एक कट्टर हिंदू कभी जालीदार टोपी नहीं पहनता है। एक ख्रिस्ती कभी मंदिर नहीं आता है। तो एक जैन जिनशासन के स्वाभिमान को भूलकर और धार्मिक कट्टरता को खोकर क्यों दर-दर भटकता हैं।


‘जैन’ भगवान महावीर की संतान है। उसके रग रग में वीरता और पराक्रम की भावना दौड़नी चाहिए। अपने जिनशासन का ज्वलंत इतिहास हमेशा नज़र के सामने रखना चाहिए। और ऐसा एक आदर्श खड़ा करना चाहिए  जिससे भावी पीढ़ी में भी जिनशासन के लिये अपना बलिदान देने तक की भावना जागृत हो।


अरे! हमें जैन धर्म में जो मिला है उसकी कीमत हमें समझनी है। और गर्व से धर्म करना है। पूरे विश्व में जिनशासन का जयघोष करना है।


Last Seen : सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।

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