छगन ने अलमारी के आईने पर जमी धूल की परत को देखकर, नौकर का ध्यान खींचने के लिए उसी धूल में ही अंगुली से लिख दिया, 'धूल बराबर साफ करो।' दूसरे दिन वह फिर से अलमारी के पास आया। तो देखा कि नौकर ने उसके नीचे ही लिखा था, ‘वेतन बढ़ाने का क्या हुआ?’
छगन को काम एकदम व्यवस्थित चाहिए, पर नौकर का पगार बढ़ाना है, यह बात ध्यान में नहीं आती है।
सेठ चाहते हैं कि, नौकर बराबर काम करें, नौकर चाहता है कि, सेठ अच्छा वेतन दे। हर कोई अपने फायदे का सोचता है। हर व्यक्ति दूसरे का पूरा कस निकालना चाहता है। सेठ जितना वेतन चुकाते हैं, उतना पूरा का पूरा, बल्कि उससे भी ज्यादा काम वसूल कराना चाहते हैं। नौकर पगार के अनुरूप ही काम करते हैं, उससे जरा भी ज्यादा काम करने को तैयार नहीं है।
दूसरों के साथ व्यवहार में लगभग सब जगह यही स्टोरी है। व्यापारी को ज़्यादा नफा चाहिए होता है, ग्राहक को माल एकदम सस्ता और सबसे अच्छा चाहिए होता है। पति चाहता है कि पत्नी घर को अच्छी तरह से संभाले, कम खर्चे से चलाए, और कोई अच्छा इच्छा ना रखें। पत्नी की इच्छा इससे विपरीत है, घर का काम कम से कम करूँगी, उसमें भी आपका सहकार लूँगी, और आपको मेरी सभी इच्छाएँ पूरी करनी पड़ेगी। स्वार्थ और दूसरों के शोषण की वृत्ति रग-रग में बस चुकी है।
परमात्मा का परम तत्त्व इन दो विशेषणों से विशिष्ट है:
1) हमेशा के लिए परमार्थ-परोपकार में ही रत रहना, और उसके लिए
2) अपने स्वार्थ को बिल्कुल गौण कर देना। दूसरों के लिए निःस्वार्थ सेवा करना और सामने वाले से जीरो अपेक्षा रखना।
प्रभु ने सर्वहितमय आत्महित का यह श्रेष्ठ मार्ग बताया है। प्रभु के मतानुसार जो इस तरह से जीता है, वही विद्वान है, प्राज्ञ है, चतुर है, कुशल है।
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