कुछ अनकही अनसुनी बातें – 1
- Muni Shri Tirthbodhi Vijayji Maharaj Saheb
- Jun 4
- 3 min read

एक सम्राट की वह सच्चाई, जिसे आपने जाना तो सही… पर पहचाना नहीं।
आज आपके समक्ष एक ऐसे सम्राट की बात रखने जा रहे हैं, जिसे आप जानते तो हैं, लेकिन वास्तव में पहचानते नहीं। आपने उसके बारे में बहुत कुछ सुना होगा, पढ़ा भी होगा, किंतु निःसंदेह वह सब आधा-अधूरा ही रहा होगा। आज जो आप पढ़ेंगे, उसे जानकर आप निश्चय ही आश्चर्यचकित रह जाएंगे। आप यह सोचने पर विवश हो जाएंगे कि - “यह सब तो मैंने कभी सुना ही नहीं था!”
यह कथा उस राजा की है, जो -
अपने शत्रुओं से युद्ध अवश्य करता, उन्हें रणभूमि में पराजित भी करता, किंतु पराजित शत्रु को कभी मृत्यु दंड नहीं देता। वह विजयी होकर भी जीवनदान देता था।
जो सभी धर्मों के प्रति आदरभाव रखता था - हिंदू हो, मुस्लिम, ईसाई, पारसी या जैन - सबके साथ सद्भावपूर्ण व्यवहार करता। धर्म के आधार पर न भेदभाव करता था, न घृणा।
3. जब वह दरबार में उपस्थित होता, तो उसके पास एक भंडारी स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली लेकर खड़ा रहता। उसी क्षण यदि कोई निर्धन, अपंग, अंधा, असहाय या दीन व्यक्ति दरबार में आता, तो उसे वह स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली दान में दे दी जाती।
4. वह सम्राट दिन में केवल तीन घंटे सोता था।
5. दिनभर में केवल एक बार भोजन करता था, और वह अधिकतर दूध-चावल और मिठाई ही उसके आहार में होते।
6. अपने बावर्ची को उसने स्पष्ट आदेश दे रखा था - "मेरे लिए जो भी अन्न पकाओ, उसमें से पहले थोड़ा अन्न भूखें लोगों को दे देना।"
7. रसोईघर में चूल्हों के ऊपर उसने कपड़े बँधवा दिए थे, ताकि छत से गिरा कोई भी छोटा जीव गलती से चूल्हे की अग्नि में गिरकर अपनी जान न गंवा दे।
8. जिसने अपने राज्य में अनेक अनाथालयों की स्थापना करवाई थी, जहाँ जब भी कोई स्वदेशी या परदेशी व्यक्ति सहायता की आशा लेकर आता, हाथ फैलाता, तो उसे सम्मानपूर्वक अन्न प्रदान किया जाता। इन अनाथालयों में मुसलमानों के लिए बने आश्रयगृहों को 'खैरपुर' नाम दिया गया था, जबकि हिंदुओं के लिए स्थापित आश्रयगृहों को 'धर्मपुर' कहा जाता था।
9. वह शराब और वेश्यावृत्ति का प्रबल विरोधी था। उसने नगर से वेश्यालय को बाहर खदेड़ दिया और उस क्षेत्र का नाम ‘शैतानपुर’ रखवाया - ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ यह जानें कि वह स्थान पाप का केंद्र था।
10. उसने अपने राज्य के सभी सूबेदारों को स्पष्ट निर्देश दिए थे:
सदैव प्रजा के सुख-दुख का ध्यान रखना,
बिना गंभीर विचार, विमर्श और जांच के किसी को मृत्युदंड न देना,
जो व्यक्ति न्याय चाहता है, उसे न्याय के लिए भटकना न पड़े, विलंब न हो,
राज्य के रास्ते, सड़कें समय पर बनें और ठीक-ठाक रहें,
किसानों के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार हो, यही हमारा कर्तव्य है।
11. जिस सम्राट ने वर्ष के बारह महीनों में कुल छह माह तक स्वयं मांसाहार का पूर्णतः त्याग किया तथा पूरे राज्य में भी उन छह महीनों के लिए अमारी (अहिंसा का विशेष नियम) का कठोरता से पालन करवाया। इन छह महीनों के दौरान, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, कोई भी प्राणी की हिंसा नहीं कर सकता था। उन दिनों में प्राणियों की हत्या या किसी भी प्रकार की हिंसा करना कानूनन अपराध घोषित कर दिया गया था।
अब आप इस राजा के विषय में सोचें - किंतु उससे पहले यह स्पष्ट कर दें कि यह कोई जैन सम्राट नहीं था, और न ही कोई हिंदू राजा था। और तो और, यह कोई ऐसा शासक भी नहीं था जो अज्ञात या इतिहास के पन्नों में गुमनाम रह गया हो, जिसके बारे में आपने कभी कुछ पढ़ा या सुना ही न हो।
इसके विपरीत, इतना तो निश्चित है कि इस राजा के बारे में आपने बहुत कुछ पढ़ा भी है, और सुना भी है।परंतु यहाँ जो बातें आपके समक्ष प्रस्तुत की गई हैं, वह सब न आपने कभी पढ़ी हैं, न ही सुनी हैं।
तो अब बिना अधिक भूमिका बाँधे, सीधे आपको बता दें - यह महान राजा था - बादशाह अकबर।जी हाँ, ऊपर जिन ११ बिंदुओं में जिन जीवन आदर्शों का वर्णन हुआ है, वे और किसी के नहीं, बादशाह अकबर के ही जीवन की सच्ची घटनाएँ हैं।
यह भूलकर भी न मान लिया जाए कि यहाँ किसी राजा के गुणों की स्तुति या प्रशंसा की जा रही है। उद्देश्य अकबर की प्रशंसा करना नहीं है, बल्कि उन सद्गुणों की ओर संकेत करना है, जो अकबर के जीवन में किसी प्रभावशाली महापुरुष की संगति से उत्पन्न हुए।यह गुण, यह मानवीय ऊँचाइयाँ - स्वयं अकबर की नहीं, बल्कि उस दिव्य प्रेरणा का परिणाम थीं, जो उसे एक महान संत के सान्निध्य से प्राप्त हुई।उन परम पावन महापुरुष का नाम था - जैन धर्म ज्योतिधर आचार्य विजय हीरसूरिजी म.सा., जिन्होंने अकबर के जीवन रूपी उजड़े बाग़ को संवारा, उसमें करुणा, धर्म और मानवता के पुष्प खिला दिए।
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