सम्राट अशोक जैन था कि बौद्ध?
- Muni Shri Tirthbodhi Vijayji Maharaj
- Mar 18
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भावेश राजपूत को मैंने कहा, “मुझे तो कोई सच्चा जिज्ञासु मिल जाए, तो मैं अपने ज्ञान की धारा उस पर बरसा दूँ।” और हुआ भी ऐसा। केवल 40 मिनट का एक छोटा-सा सफर था, करीब 4 किलोमीटर की दूरी। पर उस दौरान मैंने उसे ढेर सारी बातें बता दीं।
दरअसल, श्रोता यदि जिज्ञासु और श्रद्धालु हो, तो ज्ञान साझा करने का आनंद दोगुना हो जाता है। यही नहीं, स्वयं कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी ने भी कहा है – ‘श्राद्धश्रोता सुधीर्वक्ता।’अर्थात, जब ग्राहकतावान श्रोता और समझदार वक्ता एक साथ आते हैं, तो कलिकाल में भी चौथा आरा ही है और ज्ञान का आदान-प्रदान सर्वोत्तम होता है।
इसी विचार के आधार पर यानि देशना दान और देशना श्रवण पर तीर्थंकरों का धर्मशासन भी खड़ा है। धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने देशना-दान का मार्ग अपनाया। जो ग्राहक होते हैं, वे धर्म-ज्ञान को स्वीकार करते हैं और अपना आत्मकल्याण कर लेते हैं।
अशोक की कथा
हमने बात की थी सम्राट अशोक की। अशोक का व्यक्तित्व अद्वितीय और प्रभावशाली था। वह मानो सम्राट बनने के लिए ही पैदा हुआ था। लेकिन सिंहासन तक उसकी राह सरल नहीं थी।
बौद्ध धर्म के ग्रंथों में अशोक की खूब प्रशंसा की गई है, जबकि ब्राह्मण धर्म के ग्रंथों में उसके व्यक्तित्व के दूसरे पहलुओं का वर्णन भी मिलता है। सिंहासन पाने के लिए अशोक को अपनों से ही बहुत संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उसे अपने ही परिजनों का खून अपने हाथों से बहाना पड़ा।
सिंहासन पर आसीन होने के बाद अशोक की महत्वाकांक्षा और बढ़ गई। उसके सपने उसके दादा चंद्रगुप्त मौर्य से भी ऊँचे थे। उसे दक्षिण के स्वतंत्र प्रदेशों और मौर्य साम्राज्य से अलग हुए आर्यावर्त के कलिंग जैसे राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाकर अधिकार जमाना था।
अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध भिक्षुओं का समवाय मिला और बौद्ध धर्म के नीति-नियमों में बदलाव कर एक नई संरचना तैयार की। उन्होंने प्रचार का कार्य तीव्र गति से आरंभ किया।
अशोक की एक रानी तिष्यरक्षिता, जो बौद्ध धर्म की अनुयायी थी, के माध्यम से प्रमुख बौद्ध स्थविरों ने अशोक से संपर्क किया। दोनों के बीच गुप्त मंत्रणा हुई, जिसमें यह तय किया गया कि बौद्ध भिक्षु गाँव-गाँव घूमकर अशोक की महिमा का प्रचार करेंगे। इसके परिणामस्वरूप प्रजा अशोक के पक्ष में हो जाएगी, और तब अशोक युद्ध करके आसानी से विजय प्राप्त करेगा। इन जीते हुए प्रदेशों में अशोक बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करेगा और प्रजा को धर्म का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करेगा।
योजनानुसार, अशोक ने धर्म-आधारित युद्धों के माध्यम से समग्र आर्यावर्त पर अधिकार कर लिया। हालांकि तमिल और आंध्र प्रदेश जैसे क्षेत्र इस अभियान से बाहर रह गए। इन क्षेत्रों पर अशोक के उत्तराधिकारी, सम्राट संप्रति ने बिना किसी धर्मयुद्ध के नियंत्रण स्थापित किया।
यह सम्राट संप्रति परम जैन था। उसके बारे में जानने से पहले अशोक की – कथा भी जान ले।
अशोक ने अपने जीवन के शेष समय में बौद्ध धर्म को अपनाया और उसे अपने साम्राज्य में फैलाने का प्रयास किया। पूरे आर्यावर्त पर बौद्ध भिक्षुओं को आगे करके उसने विजय प्राप्त किया लेकिन कलिंग एकमात्र ऐसा राज्य था, जो स्वतंत्र रहा। बौद्ध भिक्षुओं का प्रभाव वहाँ नहीं चल पाया, क्योंकि कलिंग में जैन धर्म की जड़ें पहले से ही गहरी थीं। अशोक को अंततः कलिंग पर अधिकार के लिए भीषण युद्ध करना पड़ा। इस भीषण युद्ध में एक लाख सैनिक मारे गए और डेढ़ लाख घायल हुए। आख़िरकार कलिंग के राजा ने आत्मसमर्पण किया, लेकिन इस रक्तपात ने अशोक को गहरा झकझोर दिया। कलिंग के बलिदान ने अशोक की महत्वाकांक्षा की ज्वाला को शांत कर दिया। इसके बाद अशोक ने कोई युद्ध नहीं किया।
सम्राट संप्रति की कहानी
अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर सम्राट संप्रति बैठे। एक आश्चर्यकारी कथा है कि एक भिखारी, जिसने मात्र भोजन के लिए जैन साधु की दीक्षा ली थी, उसी दीक्षा के प्रभाव से, ‘जैसी मति वैसी गति’ इस नियमानुसार मरकर संप्रति के रूप में जन्मा।
अशोक के तेजस्वी पुत्र कुणाल, जो पढ़ाई के लिए अवंति (मध्य प्रदेश) भेजे गए थे, एक दुर्घटना में अपनी दोनों आँखें खो बैठे। अंध होने के कारण वह राज्य के योग्य नहीं माने गए। कुणाल का एक पुत्र हुआ, जिसे गोद में लेकर कुणाल स्वयं गुप्त वेश में अशोक के समक्ष उपस्थित हुए। गीत-संगीत के माध्यम से उन्होंने अशोक को प्रसन्न किया। अशोक ने कहा, "माँगो, जो चाहो वह दूँगा।"
उसने कहा-
‘चंदगुत्तप पुत्त य, बिंदुसारस्स नत्तुओ ।
असोगसिरीणो पुत्तो, अंधों जायइ कागणिं ।।’
अर्थात् चंद्रगुप्त का प्रपौत्र, बिंदुसार का पौत्र, अशोक का पुत्र ऐसा यह अंध (मैं) काकिणी-कोड़ी माँगता हूँ।
तब अशोक ने उसे पहचान लिया और पूछा- बेटा! "कोड़ी क्यों माँगते हो?"
तब कुणाल मौन रहा, पर मंत्री ने समझाया कि- ‘राजन्! क्षत्रिय की भाषा में कोड़ी का अर्थ ‘राज्य’ होता है।’
अशोक ने कहा, "तू अंधा है, तुझे राज्य कैसे दूँ?"कुणाल बोले, "यह राज्य मैं अपने पुत्र के लिए माँग रहा हूँ।"अशोक ने पूछा, "तुझे पुत्र हुआ? कब?"कुणाल ने उत्तर दिया, "संप्रति (अभी)।"
इस प्रकार उस बालक का नाम संप्रति पड़ा, और वह मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। बाकी अशोक के पुत्र और पौत्र गद्दी के लिए संघर्ष करते रह गए।
संप्रति और जैन धर्मसम्राट संप्रति ने अपने शासनकाल में जैन धर्म का प्रचार किया। अशोक के विपरीत, उन्होंने बिना किसी युद्ध के तमिल और आंध्र प्रदेश पर नियंत्रण स्थापित किया। उनका शासन जैन धर्म की शिक्षाओं और सिद्धांतों पर आधारित था।
(क्रमशः)
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