अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान वर्तमान की संस्कृति के आद्य स्थापक हैं। सोलह संस्कार की परंपरा प्रभु आदिनाथ से चली आ रही है। सोलह संस्कार में से एक संस्कार है ‘नामकरण’।
कपड़े के टुकड़े को भी जैसे हम नाम देते हैं। For Ex. रुमाल, नेपकिन इत्यादि। ठीक वैसे ही कोई भी बालक-बालिका का जन्म होता है तो उसको भी नाम दिया जाता है। For Ex. रमेश, सुरेश, सुरेखा इत्यादि।
संस्कृति स्थापक परमात्मा से लगाकर आज तक नाम का एक अद्भुत इतिहास रहा है और नामकरण का एक रहस्यपूर्ण संस्कार हो रहा है। चक्रवर्ती भी अपना नाम को कोटी शिला पर लिखने तरसते हैं और लिखकर खुश होते हैं। आज भी लोग अपने नाम के लिए कुछ भी करने को तैयार होते हैं। नाम वह प्रतिष्ठा-इज्जत का सवाल है।
नामकरण एक रहस्यपूर्ण प्रक्रिया है। संस्कृति-भाषा को केंद्र में रखकर मुख्यतया नामकरण होते थे। ऐसा इतिहास के पन्नों को पलटते हुए दिख रहा है। चोविस तीर्थंकर के माता एवं पिता के नाम सभी संस्कृत भाषा से ही आधारित है और उनके खुद के नाम भी। चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव जैसे राजा महाराजा के नाम भी संस्कृत भाषा से आधारित दिखते हैं। न ही तो प्राकृत भाषा और न ही तत्कालीन भाषा। इसके कारण आज भी उनके नाम के अर्थ हम कर सकते हैं। उसमें भी क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र के नाम उनके कार्य पर आधारित थे। जैसे कि राजा के नाम जितशत्रु, अरिदमन, चंडप्रद्योत वगैरे। ऐसे सभी वर्णों के लोगों के नाम दिखते हैं।
परंतु, समय के परिवर्तन के प्रवाह में नामकरण प्रादेशिक क्षेत्रों के भाषा अनुसार होने लगे। जैसे कि राजस्थानियों के नाम हस्तीमलजी, गुमानचंदजी, कपूरचंदजी और कच्छी के नाम रायशी, गुणशी, भिमशी। गुजरातियों के नाम वाडीलाल, जेठालाल, पेथाभाई।
नाम से ही वो कौनसे प्रांत के - राज्य के हैं वो ज्ञात हो जाता था। परंतु थोड़े समय पूर्व बदलते जमाने के कारण कुछ कॉमन नाम रखने लगे। जैसे कि प्रकाश, महेंद्र, मनोज। जिससे राज्य-प्रांत का ख्याल नहीं आता है मगर संस्कृति समझ में आती है।
वर्तमान समय ऐसा है कि सभी राज्यों में सभी धर्मों के एवं सभी संस्कृति के लोग साथ में रहने लगे है।
उसमें राज्य की दृष्टि से देखें तो साउथ इंडियन, पंजाबी, बिहारी, गुजराती, राजस्थानी लोग साथ में रहते हैं और धर्म की दृष्टि से देखें तो जैन, वैदिक सनातनी, शीख, ईसाई, मुस्लिम, पारसी लोग साथ में रहते हैं।
Cosmopolitan Society हो जाने से वर्तमान समय में बच्चों के नामकरण धर्म की दृष्टि से और अपनी परंपरा-सांस्कृतिक दृष्टि से करने लगे है। जैसे कि फ़िरोज़, अब्दुल, रुबीना नाम सुनते ही मुस्लिम दिमाग में आते हैं। वैसे ही एंथोनी, जॉर्डन, मेरी जैसा नाम सुनते ही क्रिश्चियन दिमाग में आते है और सुखविंदर सिंह, बलदेव सिंह, गुरप्रीत कौर जैसे नाम सुनते ही सिख समझ में आ जाता है।
मगर अभी का समय बहुत ही विचित्र आ गया है। न गुण देखते हैं, न संस्कृति, न प्रांत, न प्रदेश, न भाषा, न धर्म देखते हैं। अरे! अपना इतिहास भी नहीं देखते हैं। न ही अपना गौरव देखते हैं और न ही अपना गोत्र।
नासमझ लोग गूगल पर सर्च करते हैं और क्रिस्चियन-मुस्लिम के नाम रखते जा रहे हैं। जो गूगल अर्थ दिखाता है वह सत्य मानकर नामकरण करते हैं। उसमें भी अभी बड़ा चक्कर है राशि का...। अरे! कभी चोविस तीर्थंकरों के नाम की राशि का अभ्यास किया है? देखेंगे तो पता चलेगा कि कितने भगवान के नाम राशि से रखे गए हैं। चोविस में से तेवीस तीर्थंकर के नाम राशि से नहीं है। क्योंकि कहा जाता है कि राशि से भी अधिक महत्व ऐसे तो नक्षत्र का होता है। मगर दुनिया झुकती है जुकाने वाला चाहिए। मान लो कि आपको राशि से ही नामकरण करना है तो आपकी मर्जी परंतु कम से कम अपना धर्म-संस्कृति को तो मत भूलो।
भविष्य में किधर तकती में नाम लिखा होगा। तब वहाँ कन्फ्यूजन पैदा होगा कि जैन का बेटा मुस्लिम कैसे? क्रिस्चन कैसे? आपको लगता होगा कि अब बदलते जमाने में ऐसे नाम कौन रखेगा? भाई! भूलो मत। क्षत्रियों में आज भी परम्परानुसार नाम रखते हैं। ब्राह्मणों में भी रखते हैं। क्रिस्चन हो या मुस्लिम हो उसमें कभी आपको ऐसे हिंदू की परंपरा के मुताबिक के नाम नहीं दिखेंगे।
केवल पैसे बढ़ जाने से और लोग प्रवाह में सरलता से बह जाने वाले, अपने आपको मॉडर्न समझने वाले, स्वाभिमान शून्य लोग ही ऐसे नाम रखते हैं।
सावधान!!!
आपको यदि अच्छा नाम नहीं मिल रहा तो पूज्य साधु-साध्वी भगवंत के पास जाओ और वह जो नाम सूचित करें वह नाम रख देना। अच्छा ही नाम होगा। नाम में सब कुछ रखा है। नाम ही अपनी पहचान है। नाम से ही उस संतान को पता चलेगा कि मेरा धर्म और संस्कृति क्या है।
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किसी का नाम नाम है और किसी का नाम मंत्र।
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