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 राज का राज़

  • Sep 23, 2020
  • 2 min read

Updated: Apr 12, 2024



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एक विदेशी पुस्तक है –

अ कल्चरल हिस्ट्री ऑफ वेजिटेरियन्स फ्रोम ई.स. 1600 टु मोडर्न टाइम्स ।

इस में लिखा है कि औरंगज़ेब चुस्त शाकाहारी था ।

वह सब्जी और खीचड़ी खाता था और गंगा का पानी पीता था ।

देश की बड़ी होटलों में खीचडी अलमगीरी – इस ब्रान्डवाली खीचडी बनती थी ।

जो औरंगज़ेब की याद में बनती थी ।

हुमायु शाकाहारी था । अकबर खुद तो शाकाहारी बना ही था, उसने अपने शासन में प्रतिवर्ष छह महिने पशुओं की एवं मछलीओं की हत्या पर प्रतिबंध घोषित किया था ।

उसका प्रिय भोजन था खीचड़ी और दहीं ।

अकबर ने यहा तक लिखा है कि “अहिंसा को जीवन का सिद्धांत बनाना चाहिए । मांस नहीं खाना यानि पशुओं को सम्मान देना ।”

जहाँगीर ने भी अकबर के आदेशों को जारी रखा, इतना ही नहीं..

गुरुवार के दिन को उसने उपवास के दिन के रूप में घोषित किया ।

1618 में तो उसने यह भी घोषणा की, कि वह शिकार नहीं करेगा और किसी भी प्राणी को पीडित नहीं करेगा ।

तो यह है राज का राज़ ।

शाकाहारी बनो… हिंसा छोडो…

आप भी राज करोगे ।

इसमें जरूरत है केवल कोमन सेन्स की…

मांस का उपयोग केवल 10% भी कम हो जाये तो पृथ्वी पर के 10 करोड लोगों को भोजन मिल सकता है ।

और यदि मांसाहार नाबूद हो जाये तो विश्व का एक भी आदमी भूखा नहीं रहेगा ।

आज 1 अरब लोग रोज़ भूखे रहते है ।प्रतिवर्ष 2 करोड लोग कुपोषण से मर जाते है ।

मांस वास्तव में लोगों की भी जान ले रहा है और अर्थतंत्र की भी ।

पशुधन संबंधित उद्योगों से जो कार्बन डायोक्साईड पैदा होता है, वह महासागरों को एसिडिक, हाइपोक्सिक (ऑक्सिजन रहित) और मृत क्षेत्र बना रहे है ।

पशुओं के आहार के लिए 90% तो छोटी मछलीओं की गोली बनाई जाती है ।

पृथ्वी पर 7 अरब मानव है और हर हफ्ते 2 अरब निर्दोष जीवों की क्रूर कत्ल की जाती है ।

निर्दोष पंछीओं के लाखों बच्चों की कत्ल केवल इसलिए की जाती है कि वे ‘नर’ है ।

Please ask yourself,

क्या इस में मानवता है ?

क्या इस में समझदारी है ?

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