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स्वप्न




लीला: “बेटा चिंटू! दोपहर के 12:00 बज गए, अभी तक तू बिस्तर में पड़ा है?”

चिंटू आधी नींद में ही बोला: “नहीं। मैं तो गोवा के बीच पर हूँ।

लीला ने थप्पड़ मारकर नींद उड़ाते हुए कहा, “देख! तू कौनसे गोवा के बीच पर है!”

चिंटू: “मम्मी! तूने थप्पड़ मारकर जगाया उसके पहले मैं वहीं पर था।”

चिंटू सपने में गोवा के बीच पर था, और उठा तब बिस्तर पर था।


भगवान कहते हैं, अनादिकाल से निगोद में रहा हुआ जीव गाढ़ निद्रा में है, बिना किसी होश के बेहोशी में है। निगोद से बाहर निकलने के बाद भी संसार की चारों गतियों में वह जिस तरह से भटक रहा है, यह सारा कार्य स्वप्न जैसा है। देवलोक सुहावना सपना है, तो नर्क डरावना। सपने में ही वह बालक से लेकर बूढ़े तक का प्रवास भी करता है, और सपने में ही जन्म लेकर मरता है। वह राजा भी बनता है, और रंक भी बनता है। सपनों की यही तो असली कारीगरी है। जीव रंगीन, संगीन और गमगीन सपनों में ही सोया हुआ रहता है।


प्रवचन आदि के द्वारा गुरु भगवंत उसे जगाना चाहते हैं, फिर भी वह तो सपने में ही खोया हुआ रहता है। गुरु भगवंत कहते हैं, यह संसार असार है, तब वह सपने में ही बोलता है, अहो! कितना अच्छा संसार है! लेकिन जब वह 'जी साहेब।' बोलता है, तब भी निद्रा की पोजीशन में ही होता है। और सपनों में ही गुम और अर्ध निंद्रावस्था में रहे लोगों के सामने आप कितनी भी, कोई भी बात करो, वह उसके कानों से हृदय तक नहीं पहुँचने वाली है। इसीलिए बरसों से प्रवचन श्रवण के बाद भी कोई खास, विशेष या चमत्कार लगे ऐसा सुधार कहाँ आता है?


करवट बदलना कोई जागृति नहीं है। कईं पाप छूटते हैं, तो कईं नए पाप शुरू हो जाते हैं। यह करवट बदलने के अलावा और क्या है?


या तो कोई कड़वे अनुभव के रूप में, या किसी गुरुवर की कोई तीक्ष्ण उपदेशरूप थप्पड़ पड़ जाए, और आत्मा आँख मलकर खड़ी हो जाए तब जागृति आती है। तब उसे पता चलता है कि, मैं किसी महल में नहीं हूँ, बल्कि पाप के भयंकर कीचड़ में हूँ। इसमें से मुझे निकलना है। पर एक बात तो तय है, आप कभी भी जागो, प्राय: उसमें देर नहीं हुई होगी!

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