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कहानी कुरबानी की - 3

  • Apr 30
  • 2 min read

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Kurbani - 3

श्री डालचंद जैन – स्वतंत्रता में चैन


जब हाथों में आज़ादी की मशाल हो और हृदय में स्वतंत्रता की तीव्र ललक हो, तब पराक्रम और साहस का संकल्प लेने में आयु कभी बाधा नहीं बनती।


ऐसे ही अद्वितीय पराक्रम का परिचय दिया था सेठ श्री डालचंद जैन ने, जिनकी वीरता की गाथा मात्र चौदह वर्ष की आयु से ही प्रारंभ हो चुकी थी।


11 सितंबर 1928 को मध्य प्रदेश के सागर नगर में श्री डालचंद जैन का जन्म हुआ। विद्यार्थी जीवन से ही वे राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गए थे। सन् 1942 में जब 'भारत छोड़ो आंदोलन' की गूंज पूरे देश में फैल चुकी थी, तब सागर शहर भी इस आज़ादी की लड़ाई में पीछे नहीं था।


सैकड़ों की संख्या में स्वतंत्रता प्रेमी नागरिक सागर की गलियों से जुलूस निकाल रहे थे। इन्हीं जुलूसों में 14 वर्षीय डालचंद जैन भी पूरे उत्साह और जोश के साथ भाग लेते। हर दिन जुलूस निकलते, हर दिन लाठीचार्ज होता, हर दिन गिरफ्तारियाँ होतीं — लेकिन सागर की जनता का सागर न थमता था, न रुकता था। वह प्रतिदिन स्वतंत्रता के किनारे को छूने के लिए उमड़ता चला जाता।


स्वतंत्रता के इस महान यज्ञ में एक दिन यह निश्चय किया गया कि एक विशाल जुलूस निकाला जाएगा और कटरा मोटर स्टैंड पर जनसभा आयोजित की जाएगी। उस दिन स्वातंत्र्यवीरों ने संपूर्ण सागर नगर को तिरंगे की लहरों से सजा दिया। लगभग डेढ़ घंटे तक जुलूस चला, जिसके पश्चात सभा प्रारंभ हुई।


जैसे ही कुछ ही मिनटों तक भाषण हुआ था कि अंग्रेजी शासन के पुलिस अधिकारियों ने मंच पर उपस्थित वक्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। ठीक उसी क्षण मात्र 14 वर्षीय बालक डालचंद ने साहसपूर्वक तिरंगा लहराते हुए उन अधिकारियों के समक्ष जोरदार हुंकार भरी। एक सिपाही ने उसे पकड़ लिया, परंतु कुछ ही कदम चलने के बाद उसे छोड़ दिया।


इस घटना के बाद भी डालचंदजी का राष्ट्रप्रेम और अधिक प्रबल होता गया। वे अनेक बार क्रांतिकारी जुलूसों में भाग लेते रहे, जिसके कारण उन्हें बार-बार गिरफ्तार किया गया। कभी-कभी उन्हें डिटेन्शन में भी रखा गया। ब्रिटिश यातनाओं की तीव्र धार ने उनके भीतर की क्रांतिकारी भावना को और भी तीव्र व प्रखर बना दिया, और वे निरंतर स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों से जुड़ते चले गए।


आज़ादी के आंदोलन में उनकी अत्यधिक सक्रियता को देखते हुए उनका नाम स्कूल से निष्कासित कर दिया, किंतु इस घटना का उनके आत्मबल अथवा देशभक्ति पर कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।


उस समय सागर एवं आसपास के क्षेत्रों में अनेक जैन स्वतंत्रता सेनानी जेल भेजे जाते थे। उन सेनानियों के लिए शुद्ध भोजन एवं अन्य आवश्यक व्यवस्थाएँ श्री डालचंदजी द्वारा की जाती थीं। वे अपने पिताश्री के साथ मिलकर जेल में बंद सेनानियों को वस्त्र आदि प्रदान करते तथा उनके परिवारों को आर्थिक सहायता भी प्रदान करते थे।


स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी उनकी राष्ट्रभक्ति में कोई कमी नहीं आई। वे निरंतर अनेक राजकीय एवं सामाजिक विकास कार्यों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे।


वर्ष 1984 में श्री डालचंदजी प्रचंड बहुमत से संसद सदस्य निर्वाचित हुए तथा राष्ट्रसेवा में अपने तन-मन-धन का पूर्णतः समर्पण किया। वे विदेश मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में भी कार्यरत रहे।

अनेक सामाजिक एवं राजनैतिक पदों को सुशोभित कर उन्होंने अपनी सर्वोच्च राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया। ऐसे महान राष्ट्रभक्त श्री डालचंदजी शेठ को राष्ट्रभक्तों का कोटि-कोटि नमन!

 

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