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Updated: Apr 7




आज इस लेख में एक साथ अनेक प्रश्नों के समा-धान आपको मिलने वाले हैं। शायद इस लेख को जो बराबर समझ लेगा, वो वर्तमान में चल रहे खेल को और भविष्य के लिए बन रही जेल को समझ लेगा। 

आज से 6 माह पूर्व एक मुनिराज ने मुझे मार्मिक प्रश्न पूछ लिया था, जिसका जवाब उस वक्त मेरे पास नहीं था, पर आज मैं दावे से इसका सटीक जवाब दे पाऊँ, इतनी जानकारी मेरे पास आ गई और आज की दुनियाँ में वो ही सुरक्षित है, वो ही विजेता है, जिसके पास ज्ञान है, सावधानी है एवं जागृति है।

मुझे पूछा गया, मुनिराज का प्रश्न सुंदर था कि, ‘महात्मन्‌! आप या आप जैसे अनेक लोग वैक्सीन इत्यादि का विरोध कर रहे हैं और विरोध के पीछे कारण बता रहे हैं कि दुनिया की आबादी कम करने का षड़यंत्र है या दुनिया को गुलाम बनाने की साजिश है। महाराजजी! मुझे तो आप सीधा-सीधा ये बताईये कि यदि टीके से लोगों को मारने का प्लान है तो गुलाम किसे बनायेंगे? और यदि गुलाम बनाने का प्लान है तो उसे मार कैसे सकते हैं? उन्हें तो जिंदा रखना पड़ेगा, यदि टीके से लोग मर जाने वाले हो तो गुलामी कैसे?’

ऐसे प्रश्न एक नहीं, हजारों है और आधी-अधूरी जानकारी में में जवाब देना नहीं चाहता था। इस-लिए मैंने वहाँ पर मौन धारण किया। मगर, आज मेरे इस लेख को पढ़कर आपको ऐसे अनेक प्रश्नों का सटीक समाधान मिलेगा और क्या-क्या प्रश्न लोगों के दिल में उठ रहे हैं, उसकी सूचि पढ़ लो, जैसे कि –

2. पूर्व में जो भी टीके लगते थे, उसमें कभी भी शरीर पर धातु की चीजें चिपकती नहीं थी, इस बार लगे कोविड़-टीके में देश ही नहीं, विदेश में भी लोगों के शरीर पर लोहे की चम्मच, मोबाईल फोन, धातु की प्लेट-डीस इत्यादि अनेक चीजें चिपकने के असल विडियों जमकर शेयर हुए हैं, इतना ही नहीं, कुछ लोगों के शरीर पर तो स्पर्श मात्र से बल्ब जलने के भी दृष्टांत घटित हुए हैं, तो जहन में सहजरूप से प्रश्न उठता है कि, टीके में ऐसा कौनसा द्रव्य डाला गया है, जिससे लोहा चिपकने लगता है या बल्ब जलने लगता है?    टीके लेने वालों में, हार्ट-अटैक या ब्रेन स्ट्रोक के किस्से अत्यधिक सुनने में आ रहे है, क्या ऐसी कोई चीज टीके में हैं, जो जानलेवा है? यदि है तो वो कौनसी चीज है? साथ में यह प्रश्न भी इससे जुड़ा है कि,                                                                                                               

3. यदि टीका हार्ट/दिमाग को नुकसान पहुँचा रहा है तो सभी लोगों को यह समस्या क्‍यों नहीं है? कई लोगों को तो बिल्कुल भी साइड इफेक्ट्स के रूप में एक बुखार तक नहीं आया है, तो इसका क्या कारण है?                                                                   

4. जो शीर्ष स्थानों पर बैठे हैं, वो तीसरी-चौथी इत्यादि लहर की भविष्यवाणी किस आधार पर करते हैं?                                        

5. जिसके नाखून में भी रोग नहीं था, जिसने किसी भी प्रकार की दवाई अपनी जिंदगी में कभी भी नहीं ली थी, और इतना ही नहीं, फिटनेस के लिए जो नियमित व्यायाम, प्राणायाम के अलावा स्पोर्ट्स में व्यस्त रहते थे, इतना ही नहीं फिटनेस के लिए जो, लोगों के बीच सुप्रसिद्ध थे, उन्हें भी टीका लगने के थोड़े ही समय के बाद नाक से खून बहना, हार्ट फेल हो जाना, मृत्यु हो जाने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और ऐसा व्यायाम नहीं करने वाले, कुछ गंभीर रोगों से ग्रसित भी टीका लेने पर स्वस्थ रहे, ऐसा क्‍यों?                                                                                       

6. सन्‌ 2021 के अप्रैल-मई महिनों में आई दूसरी लहर के दौरान कुछ स्थानों पर कई लोगों को उंगली से कहीं पर छूने से करंट लगने की अनुभूति हुई थी और उन्होंने उसकी शिकायत भी की थी। ऑक्सिजन की कमी होने पर साँसों की दिक्कत का भी सामना कुछ लोगों को करना पड़ा, इसका क्या कारण?

7. यदि टीका खतरनाक है तो जबर्दस्ती क्‍यों? और जबर्दस्ती करने पर भी जनता इसका विरोध क्‍यों नहीं कर पाती है? यदि सभी को टीका लगा देंगे तो सभी का बचना मुश्किल हो जायेगा क्या? फिर शासक किस पर राज करेंगे?                                                  

8. क्योंकि बिना प्रजा, राजा भी राज कैसे करेगा? इसी कारण से अधिकांश लोगों को आज भी बैक्सीन से नुकसान होने की बातें बेतुकी लगती है। वैक्सीन से लोगों को मारने की बातें पागलपन में आकर किसी पागल द्वारा किया प्रलाप लगता है।

मगर, इन सभी आशंकाओं के बीच प्रश्न भी उठते ही रहते हैं कि, हकी कत में, दाल में कुछ काला लगता जरूर है। (टीका लेने वाले भी खुलकर कुछ कह नहीं पाते हैं) तो वो काला कया है? आईये बता रहे हैं , काला क्या है? 

मैं यहाँ पर वैक्सीन का विरोध या समर्थन करने के लिए नहीं आया हूँ, मैं तो सिर्फ और सिर्फ वो जानकारी दे रहा हूँ, जो बहुत विशाल फलक से अर्जित की गई है और जो आपको भविष्य में भी हर कदम पर उपयुक्त होने वाली है। इस लेख के प्रारंभ में उठाये गये आठों प्रश्नों का बिन्दु वार उत्तर देने से पूर्व उन उत्तरों की भूमिका करनी जरूरी है।

आज से 50/60 साल पहले हॉलीवुड की पिक्चरों में प्लास्टिक की महिमा गाई जाती थी। प्लास्टीक को मैजिक मटीरीयल बताया जा रहा था।(जैसे 1918 में एस्पीरीन को जादुई गोली बताकर रोगियों को दी जाती थी और बाद में 90 साल बाद 2008 को रिसर्च सामने आया कि, 1918 से 1923 तक महामारी में जो 5 करोड़ से अधिक लोग मर गये थे, वो महामारी के कारण नहीं, अपितु एस्पीरीन के कारण मारे गये थे। एस्पीरीन का आवरडोज मृत्यु का मुख्य कारण था, ऐसी तो अनेक चीजे हें, जिसे विज्ञान ने अपने सिर पर चढ़ाया था, वो बाद में बहुत ही खतरनाक सिद्ध हुई थी।)

ठीक वैसे ही, पिछले कुछ सालों से ग्रेफीन/ ग्रेफाईन को वैज्ञानिक लोग बहुत ही चमत्कारिक द्रव्य बताने पर तुले हैं। हकीकत में यह ग्रेफीन काला रंग का द्रव्य ही है (दाल में काले की जो बात लिखी थी इसमें काला रंग इसी का समझ लो।)

देखो, एक विज्ञापन के जरिये ग्रेफीन को कैसे ग्लोरिफाई (महिमा मंडित) किया जा रहा है, वैज्ञा निक लोग इस विज्ञापन में सबसे पहली पंक्ति बोल रहे हैं WHY GRAPHENE TAKE OVER THE WORLD? (क्यों ग्रेफीन पूरे विश्व को अपनी जद में ले रहा है?) विज्ञापन में फिर तो ग्रेफीन को वंडर मटीरीयल या मैजिक मटीरियल बनाने में कोई कसर छोड़ी नहीं गई है।

(वास्तव में ग्रेफीन कोई मैजिक मटीरियल है या नहीं, पता नहीं हैं मगर मेग्नेटिक मटीरियल अवश्य है।)

वे लोग ग्रेफीन के क्या-क्या फायदे हैं, वह बता रहे हैं, लेख लंबा होने के भय से हम नहीं बता रहे हैं जिसे जानना हों लेख के अंत में दिए नंबर पर संपर्क करें।

आपसे जो छिपाया गया है, वो उजागर करना हमा रा कर्त्तव्य भी है और दायित्व भी… 

सन्‌-1962 में सबसे पहले माईक्रोस्कोप में ग्रेफीन को देखने का दावा किया गया है। सन्‌-2004 से ग्रेफीन को मैजिक मटीरियल बताया जाने लगा। सन्‌-2010 में ग्रेफाईट में से ग्रेफीन को अलग कर-के उसका मोनोलेयर (अत्यंत सूक्ष्म परत) बनाने में सफलता हासिल करने वाले वैज्ञानिक को नोबेल पारितोषिक दिया गया।

पेन्सिल में कार्बन का उपयोग होता है। कार्बन से बनी हुई तीन प्रकार की चीजें व्यवहार में प्रचलित है 1.Diamond(हीरा), 2.Charcoal(कोयला), 3.Graphite(पेन्सिल इत्यादि में उपयुक्त पदार्थ) ग्रेफाईट से धनता में कोयला और कोयला से धनता में हीरा अधिक धन होता है। ग्रेफीन इसी ग्रेफाईट में से मिलता है और उस में से बनी हुई जो पतली सी लेयर है उसे ही ग्रेफीन (ग्रेफाईन) कहते हैं।

टाइटेनियम, एल्युमिनियम, डायमण्ड से भी ज्यादा स्ट्रांग ग्रेफीन होता है और नॉर्मल कार्बन से ही मिल जाता है इसलिए वैज्ञानिक इसे बहुत अच्छा बता रहे हैं, लेकिन ग्रेफीन बहुत ही जोखिम भरा सिद्ध होने वाला है (या कहो कि अभी हो रहा है।)

प्रतिष्ठित लोग ग्रेफीन के पीछे भरपूर पैसे भी लगा रहे हैं और उसका बहुत प्रचार भी कर रहे हैं। ग्रेफीन को वे लोग Black Goo कह रहे हैं (शायद Google के नाम के पीछे भी ये ही ग्रेफीन को अमर बनाने की चाल हो|) वे लोग ग्रेफीन को Black Gold (काला सोना) भी बता रहे हैं। यूरोप में स्थित CERN लैब में प्रयोगरत वैज्ञानिक इसी ग्रेफीन को God Particle बताते हैं और साथ में ऐसा बयान भी कर रहे हैं कि, विश्व भगवान ने नहीं बनाया, इस ग्रेफीन से विश्व बना है (अतिश्योक्ति की भी कोई सीमा होनी चाहिए…)

ग्रेफीन को इतना बड़ा क्‍यों बताया जा रहा है? ग्रेफीन के इतने गुणगान क्‍यों गाये जा रहे हैं? आईये, इसका राज़ जानने का प्रयास करते।

विगत्‌-200/300 सालों में, अलग-अलग काल-खंड़ में औद्योगिक क्रांति हुई। जिसमें प्रथम औद्यो-गिक क्रांति में स्टीम इंजन की खोज हुई + रेल-यात्रा शुरू हो गई और भाप से चलने वाले यंत्रों से उद्योगों को गति मिली। द्वितीय औद्योगिक क्रांति से दुनिया को बिजली मिली। तृतीय औद्योगिक क्रांति से दुनिया को लेपटोप, मोबाईल, पेजर, स्मार्ट फोन मिले। अब चतुर्थ औद्योगिक क्रांति में पूरी दुनिया को इन्टरनेट से जोड़ने की कवायद चल रही है। जिसमें ग्रेफीन पूरी गेम का बादशाह सिद्ध होने वाला है।

प्रश्न : ऐसा क्‍यों?

उत्तर : ऐसा इसलिए कह सकता हूँ, क्योंकि सभी जानकार एक सुर में यह स्वीकार करते हैं कि ‘ग्रेफीन से अच्छा विद्युत, अग्नि, इलेक्ट्रोन और मोबाईल टॉवर के रेडीयोवेव्स (तरंगों) का वाहक इस विश्व में कोई दूसरा नहीं है। ‘(Graphine is Great conductor of Heat, Electron, Ele ctricity and Radio Waves also…)’

पहलें की तीनों औद्योगिक क्रांति में इन्सान किसी उत्पाद (Product) को खरीदता था मगर अब चौथी औद्योगिक क्रांति में इन्सान स्वयं ही उत्पाद (Product) बनेगा और उसे खरीदने वाले वो लोग होंगे, जो इस दुनियां को गुलाम बनाकर, लो गों पर शासन करना चाहते हैं।

इन्सान को मशीन बनाने में, मशीन में तब्दील करने में बड़ा उपकार इसी ग्रेफीन का होगा और ऐसा ग्रेफीन इन लोगों के हाथों में अब आ चुका है। 

ग्रेफीन के इतने गुणगान वे लोग इसीलिए गा रहे हैं, ताकि कल्याणकारी समझकर लोग अपने शरीर के अंदर इसे खुशी-खुशी डलवा दे।

इन्सानों की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखने हेतु, उन गतिविधियों पर नियंत्रण रखने हेतु, रेडियो फ्रीक्वेंसी वाली ID, प्रत्येक मानव के अंदर डाल ना जरूरी है, जिसे RFID चिप कहा जाता है। RFID शरीर के अंदर जो जाती है, वो दो प्रकार की होती है (कोई भी RFID चिप 2 प्रकार की होती है।)

  1. Active, 2. Passive, इन में पेसीव चीप जो होती है, वो डाटा तभी ट्रांसफर कर सकती है, जब रीसीवर उसके नजदीक आता है। डाटा शेयर भी तभी कर सकती है। दूसरी बात, इंटरनेट से कनेक्शन की पेसीव चिप में जरूरत नहीं रहती है, मगर एक्टिव चीप जिस किसी को भी लगती है वो दुनिया के किसी भी कोने में पहुँचे, उसका ट्रेसिंग आसानी से कर सकते हैं। हालांकि, एक्टिव चिप के लिए इंटरनेट कनेक्शन और चार्जिंग की सुविधा जरूरी है, लेकिन इसका भी तोड़ इन लोगों ने निकाल लिया है।

लगातार इंटरनेट कनेक्शन हेतु हजारों की संख्या में आकाश में छोड़े गये सेटेलाइट्स और लगातार RFID चिप को चार्ज करके रखने के लिए बॉडी में डाला गया ग्रेफीन, इन दोनों के जरिए वे लोग इन्सानों के शरीर को चलती-फिरती, जीती-जागती बैटरी में तब्दील करना चाहते हैं और साथ ही साथ इंसानों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं।

ग्रेफीन की मात्रा शरीर के अंदर डालने के पीछे ये ही कारण है कि, लोगों के शरीर में बिजली या 5G के रेडिएशन प्रसार होने पर भी लोगों को पता नहीं चल पायेगा।

इन्टरनेट के साथ इन्सानों को हमेशा-हमेशा के लिए जोड़ कर रखने के लिए, इन्सानों को मशीन बनाने के लिए, इन्सानों को गुलाम बनाये रखने के लिए और जब जरूरत पूरी हो जाये तब उन इन्सानों को खत्म करके फैंक देने के लिए अब इनके पास अति आधुनिक तकनिक से लैस 5G और उसमें उपयुक्त ग्रेफीन आ चुका है।

ग्रेफीन उसे कहते हैं, जो कार्बन का ही एक Solid (घन) Form है|

ग्रेफीन ऑक्साईड उसे कहते हैं, जो उसी ग्रेफीन का प्रवाही स्वरूप (लिक्विड फोर्म) है। यदि अपने शरीर के अंदर ग्रेफीन या ग्रेफीन ऑक्साईड चला जाये तो उसे निकालना बेहद मुश्किल, समझो कि नामुमकिन है। ग्रेफीन पानी में आसानी से घुल-मिल जाता है और ग्रेफीन के छोटे-छोटे कण इंजेक्शन की सुई के माध्यम से आपकी रक्‍त वाहिनी में आसानी से घुसाया जा सकता है। हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना है, मगर शरीर का अधिकांश हिस्सा पानी का है, अत: ग्रेफीन शरीर में घुसने के बाद पूरे शरीर में फैल जाता है। जब इसी ग्रेफीन को मोबाईल टॉवर के रेडीएशन्स मिलते है या ग्रेफीन में से इलेक्ट्रीसिटी पास की जाती है, तब बिखरे हुए कण एक स्थान पर एकत्रित भी हो सकते हैं और मनचाही तबाही भी मचा सकते हैं। ग्रेफीन के बिखरे हुए कण एक परत भी बना सकते हैं, विभिन्न कड़ियों से निर्मित जंजीर बनकर ग्रेफीन इन्सान को अंदर से गुलाम बनाकर रहता है। पाकिस्तान में स्थित प्रबुद्ध नागरिक जैकब कहते हैं कि सन्‌ – 1999 में आई हॉलीवुड की मूवी ‘मेट्रीक्स’ में साफ-साफ बता दिया था कि, ‘हम इन्सान के शरीर को बैटरी में बदल देंगे।’

टेडटॉक शो (बहुत ही सुप्रसिद्ध शो है, जो करोड़ों लोग देखते हैं और उस मंच से बोलने वालों के प्रत्येक शब्द गंभीरता से सुने जाते हैं।) के अंदर ग्रेफीन के बारे में प्रस्तुति देने वाली एक वैज्ञानिक महिला ने दिसम्बर सन्‌ 2016 में बताया था कि, ग्रेफीन मनुष्य DNA सिक्वेंसींग में भी उपयोगी होंगे। यहाँ पर गौर करने की बात ये है कि, मनुष्य के DNA के  साथ छेड़छाड़ करने में भी ग्रेफीन उपयुक्त होने वाले हैं, फिर भी लोगों को इसकी भयानकता समझ में नहीं आ रही है।

किसी को मेरी बात मजाक लगती है तो इस वाकये पर भी गौर करने जैसा है। सन्‌-1960 में एक प्रयोग किया गया था। सांड के दिमाग में एक चिप लगाई गई थी और उसमें रेडियोवेव्स के आधार पर अंकुश स्थापित किया गया था। जैसे ही सांड सामने वाले को मारने के लिए दौड़ पड़ा, लाल कपड़ा और अन्य भड़काऊ सामग्री होने पर भी रेडियोवेव्स छोड़ने पर सांड पीछे हट गया था। वो बिल्कुल ही भूल गया कि, में करना क्‍या चाहता था। सांड के दिमाग में लगाई चिप के जरिये उसे मनचाहे तरीके से नियंत्रित किया जा सकता था। Electro Magnetic Waves ने सांड को पूरा कंट्रोल कर रखा था, मगर वो चिप बाद में Active तभी रह सकती है, जब उसे चार्ज किया जाता रहे। शरीर के अंदर ऐसा कोई चार्जिंग प्वाईन्ट नहीं है और चार्जिंग की सामग्री भी नहीं है… इसलिए ऐसी कोई चीज शरीर में डालनी जरूरी है, जिससे इलेक्ट्रो मेग्नेटीक तरंगे और विद्युत, जब-जब भेजी जाये, उसे झेलने वाला द्रव्य वहाँ उपस्थित हो ओर उसके जरिये RFID चिप चार्ज होती रहे। अपना काम बखूबी करती रहे।

इस पर गहराई से रिसर्च करने वाले अल्मास ने एक गजब की बात बताई है। जेम्स बॉण्ड की पिक्चर में पहले ऐसे दिखाया जाता था कि, जेम्स बॉण्ड, रिमोट कंट्रोल से गाड़ी खोलता है। बंद करता है… या फिर स्मार्ट फोन से व्यवहार करता है… 25/30/40 साल पूर्व में ऐसी बातें पिक्चर में देखने पर हमें नया लगता था, अजीब सा लगता था और हमें ऐसा लगता था कि ये सारी बातें काल्पनिक है, वास्तविक धरती पर इसका उतरना असंभव है, मगर जब वास्तव में ऐसी चीजें हम उपयोग ले रहे हैं तो हमें कोई भी प्रकार का अब आश्चर्य नहीं होता और सहजता से स्वीकार्य हो चुका है। कई बार, कई चीजों को सभी लोगों में स्वीकार्य बनाने के लिए भी ऐसी चीजें पिक्चर में पहले ही दिखा देने का कार्य ये लोग करते आये है। इसे Predictive Mind Programing कहते हैं। पहले से ही लोगों को भविष्य में आने वाली स्थिति या परिस्थितियों के लिए मानसिक रूप से तैयार कर देना।

ग्रेफीन निर्मित नेनो टेक्नोलॉजी से मनुष्यों को फायदा नहीं अपितु भयानक नुकसान होने वाला है, लेकिन वे लोग अभी से सभी के मन-मस्तिष्क को तैयार करने में लगे हैं, ताकि जब प्रोग्राम लॉन्च हो तब किसी को भी इसके खिलाफ प्रश्न खड़े करने का मन ना हो।

ऐसी ही एक मूवी आई थी, ‘Fortress’ जिसके अंदर दिखाया गया है कि, जेल में लाये गये कैदियों के पेट में ऑपरेशन करके एक केप्सुल डाली जाती थी। यदि कैदी भागने की कोशिश करें या भाग जाये तो केप्सूल को रिमोट कंट्रोल के जरिये अंदर ही अंदर खोल दिया जाता था। केप्सूल खुलने पर बम की तरह ब्लास्ट होता और भागने वाले कैदी का पेट फट जाता था। कैदी भागने पर भी बच नहीं सकता था, मर जाता था।

इस आधार पर एक भयानक कल्पना जहन में आती है कि, क्या हमारे शरीर के अंदर भी ऐसी ही कोई चीज डाली गई है या डालने वाले हैं, जो हमें असुरक्षित करें?

जानते हैं अगले एपिसोड में…

बहुत ही जरूरी बातें, आपके जीवन से जुड़ी बातें, जानने हेतु आप इसका अगला पार्ट बिना चूके अवश्य पढ़ना। 

इस लेख में उठाये गये, आठों प्रश्नों के उत्तर भी उसी अंक में आपको मिलेंगे…

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