top of page

Everything is Online, We are Offline 11.0

Updated: Apr 7




पति : प्यास लगी है, पानी लेकर आओ।

पत्नी : सोच रही हूँ, क्‍यों ना मटर पनीर और शाही पुलाव बनाकर खिलाऊँ…

पति : वाह-वाह…! मुँह में पानी आ गया।

पत्नी : आ गया ना मुँह में पानी, बस इसी से काम चला लो।

(रसोई बनाने की बात छोड़ो पानी देने से भी पत्नी बच गई।)

एक मजबूर ने प्रश्न किया, ‘जिंदगी की वास्तविक समस्याओं का निपटारा करने की ताकत ना हो तो?’

‘काल्पनिक विश्व को ही अपनी जिंदगी बना लो।’ एक हास्य कलाकार ने जवाब दिया।

‘हमारे पास खाने के लिए ब्रेड नहीं है, हमें खाना दो।‘ भूख से पीड़ित जनता ने माँग रखी, मगर क्रूर रानी ने जवाब दिया, ‘ब्रेड खाने को ना हो तो केक खा लो।’

हाँ… जी… यह एक सत्य वाकया है। इन तीनों प्रसंगों में से एक सत्य उभर कर बाहर निकलता है और वो सत्य हैं, आप की समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं, काल्पनिक समाधान प्रस्तुत किया जाने वाला है। साथ में आपके दिमाग में यह बात फिट करने की कोशिश लगातार की जायेगी कि, हम आपको जो समाधान बता रहे है वो ही आखिरी सत्य है, वो ही वास्तविक है, वो ही सर्वोपरि समाधान है।

एक बंदे ने हँसते-हँसते अपने मित्र को कहा, ‘लेनदार मेरे पास 5 करोड़ रूपये माँग रहा था मगर मैं नहीं दूँगा तो भी वो मुझसे अब माँगने वाला नहीं है।’

मित्र ने पूछा, ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’

उसने जवाब दिया, ‘दो दिन के बाद मेरी प्लास्टिक सर्जरी होने वाली है। मेरा चेहरा, मेरी शक्ल ही बदल जायेगी, फिर मुझे वो पहचान नहीं पायेगा, तो मुझसे पैसे कैसे माँगेगा?’

फेसबुक पर इतने सारे इल्जाम लग रहे थे कि बात ना पूछो। कभी हेट स्पीच का, कभी अश्लील मैसेज का, कभी बच्चों को बिगाड़ने का, कभी गंदी आदतों में युवाओं को बर्बाद करने का,

इन सारे इल्जामों से निजात (छुटकारा) पाने के साथ-साथ दुनिया की वास्तविक समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए फेसबुक अब अपनी प्लास्टिक सर्जरी करवा रहा है।

उन्होंने अपना नाम ही बदल दिया है और फेसबुक के इस नये अवतार को दुनिया ‘मेटा’ के नाम से जानती है।

हिंदी भाषा में भजन है ‘मेटो-मेटो जी संकट हमारा तुमसे लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा… मेटो… मेटो… जी संकट हमारा…’ 

आश्चर्य इस बात का है कि भजन में प्रयुक्त ‘मेटो’ शब्द और फेसबुक का नया नाम ‘मेटा’ दोनों का अर्थ समान है। हिब्रु भाषा में ‘मेटा’ का अर्थ है ‘मुर्दा या मृत्यु (Death)’ और हिन्दी भाषा में ‘मिट जाना, किसी को मिटा देना’ इन सारे अर्थों में ‘मेटो-मिटाओ-मिट जाओ ‘ प्रयुक्त होता आया है।

चलो, हम ‘मेटा’ का अब वास्तविक अर्थ एवं वास्तविक कार्य जानने की कोशिश करते हैं।

सुप्रसिद्ध गुजराती पत्रकार श्री संजयभाई वोरा अपने 16 नवम्बर 2021 के एक लेख में लिख रहे है कि, ‘मेटा’ का अर्थ ‘पर (अन्य)’ होता हैं और ‘वर्स’ का अर्थ ‘दुनिया’ होता है। मेटावर्स हम सभी को इस दुनिया से कोई दूसरी ही काल्पनिक दुनिया (Beyond World आपकी कल्पना से परे ऐसी दुनिया) में ले जाना चाहती है।

मेटावर्स शब्द का उपयोग सन्‌ -1992 में सायन्स फिक्शन लेखक नील स्टिफन्सन ने अपनी नोवेल (उपन्यास) ‘स्नोक्रेश’ में किया था। जिसमें अरबों लोग इन्टरनेट और 3-डी तकनीक से अपना काल्पनिक अवतार बनाकर अपनी मनपसंद जगह पर पहुँचते हैं।

काल्पनिक लोगों के साथ काल्पनिक जिंदगी बिताते हैं। काल्पनिक धंधा करते हैं और उसके लिए काल्पनिक क्रिप्टोकरेन्सी का उपयोग भी करते हैं बाद में अपनी असली जिदंगी में वापिस लौटते हैं।

मेटावर्स बच्चों के द्वारा खेली जाने वाली ३-डी गेम्स का एक विस्तृत स्वरूप है, लेकिन वो बच्चों के खेल से बहुत ही विशिष्ट है।

मेटा के द्वारा दूर-सुदूर बसे हुए लोगों को आप मिल पायेंगे (दूर का अर्थ दूर तक ले जाना है, मरे हुए लोगों को भी मिल पाने की सहूलियत ‘मेटा’ में मिलेगी।) उन लोगों के पास से शिक्षा का अनुभव भी ले सकेंगे। इतना ही नहीं, उनके साथ धंधा भी कर पायेंगे।

वर्तमान में ग्राहक को अपना फ्लेट बेचने हेतु बिल्डर जैसे वर्चुअल टूर करवाता है, वह भी ‘मेटा’ का ही प्रारंभिक स्वरूप है।

हम इन्सानों को वैसे भी एक जगह स्थिर रह कर बैठना पसंद नहीं हैं। घर से दुकान, गाँव से शहर, देश से विदेश और इस लोक से परलोक का प्रवास करने की हमें बहुत पुरानी आदत है, मगर साथ में हमें अपनी मनपसंद जगह पर जाना ही पसंद है और हमारा नसीब ऐसा है कि, नापसंद जगह पे भी जाना पड़ता है। नापसंद व्यक्ति से भी रिश्ते बनाने पड़ते हैं। नापसंद चीजों को भी अपनाना पड़ता है। नापसंद कार्यों को भी करना पड़ता है।

मेटावर्स के द्वारा फेसबुक, गूगल, माइक्रोसोफ्ट (और अब तो) वॉल्ट डिज़्नी (भी) जैसी जायेन्ट टेक कंपनियाँ  एक काल्पनिक दुनिया का सृजन करने जा रही है, जहाँ पर वे हमें टेक्नोलोजी की सहायता से घूमने-फिरने रहने और सब कुछ करने का मौका देने जा रही हैं।

इस काल्पनिक दुनिया में हमें यदि जीने की चाह होगी तो हमें अपनी जगह उन कंपनियों से खरीदनी पड़ेगी और वह भी क्रिप्टो करेन्सी में ही। इन काल्पनिक दुनिया में प्रवेश करने हेतु हमें कम्प्यूटर, स्मार्टफोन के अलावा नूतन तकनीक से लैस वायरलेस हेडसेट की आवश्यकता पड़ेगी। जिसमें वर्चुअल रियलिटी, ओगमेन्टेड रियलिटी और मिक्सड रियलिटी की जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में उपलब्ध सारे कम्प्यूटरों में से 90 प्रतिशत कम्प्यूटर ऐसी वर्चुअल रियलिटी के सोफ्टवेयर को हेण्डल करने में समर्थ नहीं है। अभी वीडियों गेम खेलने के लिए जो हेडसेट यूज होते हैं वो भी मेटावर्स के लिए निकम्मे होंगे। ‘मेटावर्स’ की वर्चुअल रियलिटी के लिए जो हेडसेट अभी मिल रहा है, उसकी कीमत ही 60,000 रूपये जितनी है (पहले स्मार्ट फोन आम जनता के लिए पहुँच से बाहर था, मगर अब सबके हाथ में तकरीबन आ चुका है, ठीक वैसे ही… आने वाले समय में… यहाँ पर लिखी बातें सच हो सकती है।) आज ऑनलाइन व्यापार का इतना विस्तार हो चुका है कि, अच्छे-अच्छे व्यापारियों को अपनी वेबसाईट खरीदनी पड़ रही है या किराये पर लेनी पड़ती है। अपनी एप्प बनानी पड़ रही है, जिसकी उन्होंने आज से 10 साल पहले कल्पना भी नहीं की थी। कुछ लोग ऐसा सोचते हो कि, हम ‘मेटा’ के प्लेटफार्म पर जायेंगे ही नहीं तो क्या प्रोब्लम होगी?

दरअसल, नीति निर्माता और नीति मार्गदर्शक मिलकर ऐसा काम करते हैं कि, जो हमें करने की बिल्कुल इच्छा ना हो तो भी वो करना ही पड़े। अपने बच्चों के हाथों में मोबाईल ना देने की इच्छा कहाँ पूरी हुई? मजबूरन अभिभावकों को ऑनलाइन शिक्षा के लिए देना ही पड़ा ना? ऐसी तो लाखों मजबूरियाँ एवं पाबंदियाँ खड़ी की जा रही है। वे लोग दूसरे द्वारों को बंद कर हमें एक ही द्वार से जाने के लिए मजबूर करते हैं।

Religion is opium for mass (धर्म बहुजन लोगों के लिए नशाकारक गांजा है) ऐसा विधान करने वाले नास्तिक शिरोमणि कार्ल मार्क्स, हकीकत में भ्रांत एवं भटके हुए थे। बोलना ही हो तो अब ऐसा बोलना चाहिए… ‘Mobile is opium for mass… Meta verse is opium for mass.’

जब इन्सान को कंगाल कर दिया जाता है, तब अपना दुःख, अपनी पीड़ा भुलाने के लिए वो नशा करने लगता है, जिससे काल्पनिक दुनिया में जाकर वो वास्तविक दुनिया के दुःखों को भूल जाता है।

अफीम, डृग्स (गांजा), मारीजुआना को भी टक्कर मारने वाली नई नशाकारक चीज़ ‘मेटा’ होगी, जो दुनिया के लोगों के दुःख मिटाने का नहीं, उन दुःखियों को ही मिटाने का काम करेगी।

जो पल भर के लिए ही दुःख भुल जाना चाहता है, वो जीवन भर के लिए दुःखों को आमंत्रित करता है और जो दुःखों के सामने पल भर के लिए संघर्ष करना सीखते हैं, वो जीवन भर सुखों को आमंत्रित कर पाते हैं।

भूखे लोगों के पास, भोजन नहीं है तो ईलाज होगा ‘मेटा’

गरीबों के पास, पैसे नहीं है तो ईलाज होगा ‘मेटा’ वासना के भेडियों के पास विजातीय पात्र नहीं है तो ईलाज होगा ‘मेटा’,

‘मेटा’ एक अंतहीन दुनिया है, जिसमें घुसना आसान होगा मगर निकलना भारी मुश्किल… शायद असंभव…,

इसीलिए तो ‘मेटा’ का सिम्बल अनंत (Infinite) का ळ बनाया गया है। जैसे कुछ सीक्रेट सोसायटी में प्रवेश है, मगर वहाँ से निकलना असंभव है….. आखिर मृत्यु ही एक मात्र रास्ता बचता है, ठीक वैसे ही ‘मेटा’ में घुसने वालों के लिए वास्तविक दुनिया में वापिस आना और एडजस्ट होना बहुत ही टेढ़ी खीर होगी।

कई सारे दुष्ट प्रकृति के लोगों को अपने दुश्मन के मारे जाने पर दुःख होता है, क्योंकि वो जब तक जिन्दा था, तब तक ही उसे तड़पता हुआ वो देख सकते थे। तब तक ही वो उसका बदला ले सकते थे। तब तक ही वो उसे दुःखी कर सकते थे, मगर उसके मरने के बाद दुष्ट प्रकृति वालों का भी सुख-चैन मर जाता है। जैसे आसक्ति (राग) ग्रस्त पुरूष का प्रिय पात्र मरने से रागी का सुख-चैन लुट जाता है, ठीक वैसे ही द्वेषग्रस्त इन्सान का दुश्मन मर जाने से द्वेषी का सुख-चैन खत्म हो जाता हैं।

‘मेटा’ दोनों की समस्याओं का समाधान लेकर आया है। वासनाग्रस्त इन्सान अनगिनत महिलाओं के साथ बलात्कार कर पायेगा और द्वेषग्रस्त इन्सान अनगिनत दुश्मनों को मारकर, फिर से जिंदा कर पायेगा ताकि वापिस उसे मौत के घाट उतार सके… (नरक योनि की तरह ) मरे हुए को जिंदा फील करना हो या जिंदे को मार डालना हो तो दोनों चीजें कल्पना से संभव है और ‘मेटा’ की दुनिया ही काल्पनिक है। कुछ कायर ऐसे भी है, जो जीते जी अपने दुश्मन को ललकार नहीं सकते या कुछ अंतर्मुखी ऐसे है जो अपने दिल में छिपे दुष्ट विचारों को साकार नहीं कर पाते वो सब लोग इस प्लेटफार्म पर मनचाहा कर पायेंगे।

‘Blue Whale’ या ‘PubG’ या ‘Free Fire’ जैसे गेम खेलने वालों की मानसिक स्थिति का जो बंटाधार होता है, होता देखा है, इससे भी कई गुना ज्यादा खतरनाक नुकसान ‘मेटा’ से होगा।

हम जब छोटे थे, तब ‘छोटा चेतन’ नाम की पिक्चर देखने के लिए सिनेमा हॉल में गये थे और वहाँ पर हमें स्पेशल चश्मे दिये गये थे। उसे पहने बिना वो पिक्चर बराबर से देख ही नहीं पाते थे और वो चश्मा लगाने पर हमें वो अनुभव होता था कि, जैसे हम ही स्वयं पिक्चर के अंदर घुस गये हो… कभी, कोई-कोई दृश्यों में तो इतनी ज्यादा नजदीकी फील होती थी कि हमारी आजु-बाजु की दुनिया भी हम भूल जाते थे।

एक छोटा सा चश्मा पहनने पर यह अनुभूति हो सकती है, तो ‘मेटा’ तो बहुत बड़ा प्लेटफार्म है।

कुमारपाल महाराजा को भ्रमित करने के लिए देवबोधि ब्राह्मण ने उनके 7 पीढ़ी के पुरखों को (जो मर चुके थे) जीवित दिखाया, ना सिर्फ जीवित दिखाया, बल्कि उनसे बुलवाया भी सही कि, ‘कुमारपाल! शैव धर्म ही सच्चा धर्म है, तू महादेव जी को कभी मत छोड़ना।‘ 

यह सुनकर कुमारपाल महाराजा जैसे सुश्रावक भी भ्रमित हो गये, भौंचक्के रह गये तब कलि-काल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी ने कुमारपाल महाराजा के सामने, उनकी 21 पीढ़ी के पुरखों को (जो मर चुके थे) जीवित करके दिखाया, इतना ही नही, उनसे कहलवाया कि ‘कुमारपाल! तू कभी भी जैनधर्म को मत छोड़ना, सच्चे वीतरागी ऐसे महावीर को ही पकड़कर रखना।‘ ,

इतिहास गवाह है कि, जिस कारण से कुमारपाल महाराजा विचलित हो उठे थे, उसी के विपरीत प्रयोग से वापिस कुमारपाल महाराजा भी स्थिर हो गये। यानी ‘मेटा’ कोई नई तकनीक नहीं है, महा-पुरुषों के द्वारा आज से तकरीबन 1000 साल पहले प्रयोग में लाई जा चुकी तकनीक है। तकनीक का कोई विरोध नहीं है, विरोध सिर्फ इस बात का ही है कि, यह तकनीक अब आम जनता के लिए खोली जा रही है। पात्रता-अपात्रता को देखे बिना ही सबको दी जानी है, उसी का विरोध है।

शास्त्र एवं शस्त्र हमेशा निष्पक्ष होते हैं मगर अपात्र के हाथ में दिया हुआ शास्त्र भी शस्त्र की तरह मारने का कार्य करता है और पात्र के हाथ में रहा शस्त्र (विद्या-जादुई करिश्मा इत्यादि) भी शास्त्र की तरह तारने का कार्य करता है।

हमारी मूल प्रकृति, चंचल, दुष्ट संस्कारों से ग्रसित, अच्छे निमित्तों से ज्यादा बुरे निमित्तों को ग्रहण करने वाली है, जिससे हमें यदि सब कुछ कर पाने की स्वतंत्रता मिल जाये तो हम अच्छा कम, बुरा ही ज्यादा करेंगे। ‘मेटा’ में कुछ भी करो, किसी की शर्म नहीं रखनी होगी क्योंकि, वो सामाजिक-वास्तविक दुनिया से दूरकी एक अजीब सी दुनिया होगी।

बिना भोजन करे आपको तृप्ति की डकार आयेगी।

बिना मैथुन किये भी आप का सत्त्व निचोड़ लिया जायेगा।

बिना स्टेज आप नाच सकेंगे और बिना माईक आप गा सकेंगे।

मोबाईल के अंदर ‘गंदे दृश्य’ देखकर ही संतुष्टि पाने वाले, ‘मेटा’ की तकनीक के माध्यम से वो सारी ‘गंदी चीजें’ करने का भी अनुभव कर पायेंगे, जो वो करना चाहते थे मगर कर नहीं पाते थे।

सन्‌-2011 में प्रकाशित उपन्यास ‘रेडी प्लेयर वन’ में मेटावर्स के भविष्य के बारे में पहले से ही बता दिया है। नोवेल के लेखक ने सन्‌ 2045 की परिस्थितियों का वर्णन किया था, जो कि इस प्रकार था, पूरा विश्व ऊर्जा के अद्वितिय संकट का सामना कर रहा है और जागतिक ताप से जूझ रहा है, जिसके चलते अनेक आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ पैदा हो चुकी है, जिससे बचने के लिए लोग काल्पनिक दुनिया (वर्चुअल रियलिटी ) की शरण में गये हैं।’

इसी उपन्यास में वर्णित दृश्य कथा के ऊपर बनी फिल्म सन्‌ 2018 को रिलीज़ हुई थी। सिम्प्सन कार्टून (Adult Cartoon), जो कि फ्रीमेसन के टॉप लीडर्स के द्वारा चलाया जाता है और गुप्त संस्थाओं (सीक्रेट सोसायटीज़) के भविष्य के आयोजनों को कई साल पहले ही कार्टूनों के माध्यम से उजागर करते रहते हैं (इबोला, कोरोना, डोनाल्ड ट्रम्प, लेडी गागा इत्यादि की भविष्य-वाणी इसी प्लेटफार्म पर कई सालों पहले हो चुकी थी।), उन्होंने भी मेटावर्स का जिक्र कुछ साल पहले कर दिया था। फेसबुक सन्‌ 2014 से ‘मेटा’ के ऊपर काम कर रहा था, जिसके लिए उन्होंने वर्चुअल रियलिटी कंपनी ऑक्युलस को खरीद लिया है। मार्क जुकरबर्ग ने मेटावर्स के लिए यूरोप के हाई क्वालिफाईड 10,000 सॉफ्टवेयर इंजी-नियर्स को नौकरी पर रखने का एलान किया है।

‘मेटा’ की सबसे खतरनाक पहली बात यह होगी कि, जब आँखों में गांधारी की तरह पट्टी बाँधकर कोई इन्सान काल्पनिक दुनिया कौ मौज मारता होगा, तब वास्तविक दुनियां में उनके प्रति अपराध (क्राइम) को अंजाम देना बहुत ही आसान होगा।

जैसे कि, उसके घर की वास्तविक चीजें चुरा लेना। उनके परिवार के बाकी सदस्यों की अस्मत लूटना। या फिर उनकी जान ले लेना जो मेटा में खो गया है।

‘मेटा’ की सबसे खतरनाक दूसरी बात यह होगी कि इस माध्यम का उपयोग करने वालों की सारी प्राईवेट बातें, सारी कमजोर कड़ियाँ, अंदर की बातें उन लोगों के हाथों में चली जायेगी, जो लोग पूरी दुनिया को कठपुतली का खेल का हिस्सा मान रहे हैं और भविष्य में पूरी दुनिया के लोगों को कठपुतलीयाँ बनाना चाह रहे हैं। और ‘मेटा’ की तीसरी खतरनाक बात, इस ‘मेटा’ से क्रिप्टो करेंसी को असीम वेग मिलेगा। लोग अपनी असली करेंसी गँवा देंगे।

मेटा के माध्यम से झूंठी आज़ादी का एहसास करने वाले सब से बड़े गुलाम होंगे।

पायलट गायब है और इस हवाई जहाज का संचालन अब उन बंदरों के हाथों में है, जो नशा करके बैठे हैं।

अब तो भगवान ही रखवाला है इस दुनिया का…

Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page