top of page

दिल जीतने की जड़ी-बूटी

  • Apr 11, 2021
  • 3 min read

Updated: Apr 8, 2024



ree

जंगली विस्तार में रहने वाली एक स्त्री के अपने पति के साथ बहुत अच्छे संबंध नहीं थे। उसे हमेशा ऐसा ही लगता था कि उसका पति उसे प्रेम नहीं करता है। वह एक दिन जंगल में रहने वाले एक संन्यासी के पास गई और संन्यासी को कहाँ, “महाराज, मेरे पति पहले मुझे बहुत अच्छी तरह से रखते थे, पर पिछले कई समय से मेरे प्रति उनका प्रेम नहीं बराबर हो गया है। वे पत्थर की तरह जड़ बन गये है। मैंने आपके बारे में बहुत सुना है। आप मुझे एसी कोई जड़ी-बूटी दीजिये कि, मेरे पति का प्रेम पुनः प्राप्त हो जाये और मैं उन्हें वश में कर सकूँ।”

संन्यासी ने सारी बातें सुनने के बाद कहाँ “बहन! मैं इसके लिए एक खास दवाई बनाकर तुम्हें दूंगा, पर यह दवाई बनाने कि लिए मुझे बाघ की मूँछ का बाल चाहिये। बोल, तू वह ला सकेगी?” वह स्त्री जंगल में छोटी से बड़ी हुई थी। इसलिए वह शूरवीर थी, दृढ़ता से उसने तुरंत हाँ कर दी। दूसरे दिन वह बाघ की खोज में निकल पड़ी। एक गुफा के पास उसने बाघ देखा। तो वह खुश हो गई कि चलो, बाघ मिल गया। अब उसकी मूँछ भी मिल जायेगी। जैसी वह बाघ की और बढ़ी कि बाघ ने दहाड़ लगाई। और वह स्त्री घबराकर दूर हट गई। दूर खड़े-खड़े वह बाघ को देखा करती थी। पर उसके नजदीक जाने की हिम्मत नहीं होती थी। 

वह रोज गुफा के पास जाने लगी। कभी-कभी वह बाघ के लिए मांस भी ले जाती थी। और दूरी पर रख देती थी। समय बीतने पर दोनों को एक दूजे की हाजिरी अच्छी लगने लगी। अब स्त्री का डर भी कम होने लगा था। बाघ ने भी अब दहाड़ना बंद कर दिया था। अब एक दिन तो वह स्त्री बाघ के पास पहुँची, और बाघ के शरीर पर हाथ फिराने लगी। बाघ कुछ ना बोला इसलिए धीरे से उसकी मूँछ का एक बाल खींच लिया। और दौड़ती हुई वह संन्यासी के पास पहुँच गई, और संन्यासी के हाथ में बाघ की मूँछ का बाल थमा कर कहाँ, “लीजिये महाराज! यह बाघ का बाल और अब मुझे मेरे पति को वश करने की जड़ी-बूटी बनाकर दीजिये।” संन्यासीने बाल को अग्नि में डाल दिया। 

वह स्त्री गुस्से से बोली, “ये क्या किया आपने?  मैं महामेहनत से जो बाल लायी थी, उससे जड़ी-बूटी बनाने के बदले आपने उसे जला दिया!”

संन्यासी ने हँसते-हँसते उत्तर दिया – “बहन! तुझे अब भी समझ में नहीं आया कि यदि प्रेम और धैर्य से बाघ जैसा हिंसक प्राणी भी वश हो जाता है तो फिर तेरा पति तो इन्सान है।”

सुक्तमुक्तावली में कहाँ है कि – 

“को न माति वशं लोके मुखे पिण्डेन पूरितः।

मृदंगो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम्।।”

अर्थ : “मुंह में खाना देने से इस जगत में कौन वश में नहीं होता है? मृदंग के मुख पर लेप लगाने से वह भी मधुर आवाज करता है।”

हम लोगों को वश में करना चाहते है पर उसकी सही रीति नहीं अपनायी है। और इसीलिए लोगों का प्रेम प्राप्त नहीं कर पाए।

याद रखना : “प्रेम और धीरज सख्त कलेजे वाले इंसान को भी पिघला देता है।”

प्रेम देने से वह जीव हमारा अपना बन जाता है। विश्व में रहने वाले जीवमात्र को प्यार-सांत्वना की जरूरत है।

“जीव खुद उसका ही होता है, जो उसे चाहता हो।”

घड़ी को भी एक दिन चाबी लगानी रह जाए, तो वह बंद पड़ जाती है, चलती नहीं है। अगर जड़ जैसी घड़ी को भी चाबी के सहारे की जरूरत हो, तो क्या चेतन – ऐसे जीव को प्रेम की जरूरत नहीं होगी ?

नवसारी के पास की गौशाला में उन्मत्त हुआ सांड जब किसी के वश में नहीं आया, तब छोटे से आठ साल के बच्चे ने हाथ सहलाकर उसे शांत कर दिया था। और उसका रहस्य उसने एक ही वाक्य में बताया :

“प्रेम दोगे तो प्रेम पाओगे।”

चलिये, हम संकल्प करते है कि, 

मैं सज्जन और स्वजनों को तो प्रेम दूंगा ही, 

पर दुश्मन और दुर्जनों को भी प्रेम दूंगा।

Related Posts

See All

Comments


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page