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बादल फट रहा है, या बादल को फाड़ा जा रहा है?

  • Sep 18
  • 6 min read

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जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में बादल फटने से तबाही... कठुआ में बादल फटने पर हुई तबाही... हिमाचल प्रदेश से भी ऐसी ही खबरें आयी थी। चमौली में, शिमला में, उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी से भी ऐसी ही खबरें, पंजाब - दिल्ली भी बाढग्रस्त, यमुना उफान पर, लाखों एकड़ में रही फसलें बर्बाद हो चुकी है। धराली गाँव, कि जहाँ से गंगोत्री जा सकते है, वहाँ पर तो गाँव का कुछ हिस्सा ही जमीन मैं गर्क हो गया। लगातार भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ आने की खबरों ने दिमाग को हिलाकर रख दिया।

 

इन खबरों से पहले पाकिस्तान में बाढ की दुर्घटना, नेपाल में भी वो ही फ्लेश फ्लड से बुरा हाल... अमेरिका के टेक्सास में, चाईना में और आफ्रिका के कोंगो में भी इसी प्रकार पानी ने तबाही मचाने का काम किया। विनाश की ताण्डवलीला आपने शायद टी.वी. पर देखकर इन दुर्घटनाओं को कुदरत की लीला या कुदरत का कहर समझकर मन मनाया होगा।

 

कुछ दिन पूर्व कुल्लु-मनाली से भी समाचार थे कि वहाँ पर भी भयानक तबाही मची थी। जिस बियास नदी को मैंने अपनी दीक्षा से पूर्व शांत-मनोहर-हसती-कूदती-नाचती छोटी बच्ची जैसी देखी थी, वो भी पागल-तूफानी बनकर सारी मर्यादाएँ तोड़नेवाली उच्छृंखल बन गयी।

 

पहाड़ियों में बहती बियास नदी में उतना जलस्तर भी नहीं देखने को मिलता था, कि कोई डूब जाये या इतनी तेज रफ्तार की देखने को नहीं मिलती है कि किसी को बहाकर ले जाये। कुछ स्थानों में तो बियास नदी में आप उतर सको इतनी कम गहरी धारा थी।

 

जम्मु जैसे में सिर्फ़ 24 घण्टों में 360 मिलीमीटर बारिश गिर जाये, इतना ही नहीं, सेना को उतारना पड़े, हेलिकोप्टरों को काम पर लगाना पड़े तब मन में विचार आता है कि, ऐसे स्थानों में रहने वाले गरीबों का, किसानों का क्या होता होगा? मुम्बई जैसे बड़े शहर भी इस सूचि में शामिल है।

 

इस साल यह समस्या चरम पर पहुंची है, इसका कारण हमने अपनी मेगेजिन में फरवरी-2025 को ही बता  दिया था और लिखा था आनेवाले 2 सालों में पानी के कारण तबाही और बर्बादी के अनेक दृश्य पूरा विश्व देखने वाला है।

 

इस साल को ग्लोबल फ्लड एलर्ट (Global flood Alert) डिक्लेयर किया गया है। Cloud Brust और Flash Flood, इन दो शब्दों को जब हम बार-बार सुनते है, तो इस के पीछे के रहस्यों को जानने की जिज्ञासा हमें अवश्य होती है।

 

यदि पानी इतनी बर्बादी ला सकता है, तो क्या पानी का प्रयोग शस्त्र के तौर पर हो सकता है भला? यह जानना पाठकों के लिए शायद जरूरी होगा।


सन् 1967 में वियेतनाम के सामने जंग के दौरान अमेरिकन सेना के जवान जब एक जगह फंस गये थे, तब दुश्मन देश के सैनिक वहाँ पहुंचने न पाये और US आर्मी के जवानों को पकड़ ना पाये इसलिए CIA, Nevi और AIR Force के सैनिकों ने जॉइट ऑपरेशन को अंजाम दिया था।

 

Op. Pop Eye वायु सेना के इंजिनियरों ने जब किया, तब इस समाचार की कवरेज पेन्टागोन के ऑफिसियल प्लेटफार्म से भी हुआ था। तब उस समाचार की हेडलाइन थी, ‘Weather as a Weapon of War’ (हवामान, युद्ध का शस्त्र-)

 

अमेरिकन सैनिक जब फँस गये थे, तब कुछ एरिया में भरपूर बारिश बरसाकर, विपक्ष के सैनिकों को रोक कर रखा था। बारिश बरसाने में क्लाउड सीडिंग टेक्नोलोजी का प्रयोग किया गया था। जिसके कारण एक साथ अचानक अनेक फीट पानी बरस गया था। थोड़ी मिनटों में ही जलस्तर को अतिशय भयानक हद तक बढ़ा देने की राक्षसी ताकत का यह एक सफल प्रयोग था। तब भी वियेतनाम की धरती पर Flash Flood शब्द का प्रयोग किया गया था, जो शब्द आज प्रमुख स्थानों पर आयी बाढ में बार-बार सुनाई दे रहा है। जीओं इंजीनियरींग के माध्यम से बारिश बरसानेवाली टेकनीक का उपयोग करनेवाली वैज्ञानिक की टीम एवं हवाईजहाज़ की पुरानी फ़ोटो भी रिसर्च के दौरान हमारे संज्ञान में आया है।

 

चाहो वहाँ पर, चाहो उतनी क्वांटिटी में बारिश बरसाने वाली टेकनीक को Cloud Seeding Technology कही जाती है। इस तकनीक में -

1) Dry Ice – सूखा बर्फ 2) Solid form of carbon dioxide 3) Silver Iodide (एक केमिकल) 4) Sodium Chloride (नमक) इन चार चीजों की जरूरत पड़ती है। केमिस्ट्री जानने वालों को शायद इसकी जानकारी होगी ही।

 

प्रकृति को परिवर्तित करने की राक्षसी शक्ति तो इन वैज्ञानिकों के पास पहले से ही आ गयी थी। सन् 1947 में (यानी 1967 के वियेतनाम युद्ध में किये गये प्रयोग से 20 साल पूर्व) उन्होंने Project Cirrus (प्रोजेक्ट: सायरस) लोंच किया था। जिसके माध्यम से बवंडर लाने की, बादल बनाकर कृत्रिम बारिश करवाने की और ऐसी बहुत सारी टेक्नीक की टेस्टिंग की बात थी और उन्होंने टेस्टिंग भी किया था।

 

हाईड्रोजन और ओक्सिजन मीक्स करके कृत्रिम बादल बनाने की अब तो मशीन भी बन चुकी है। नासा के पास यह मशीन है और उसी से बादल बनाने से लेकर बारिश बरसाने की भी सुविधा है।

 

13 अक्टूबर 1947 को प्रोजेक्ट सायरस शुरु करने के तुरंत बाद उसी साल (1947 को) उसे बंद कर देना पड़ा था क्योंकि लोगों का विरोध आ गया था। Public Protest से बंद किया गया Project हालांकि आज भी जारी ही है, लेकिन पब्लीक को अंधेरे में रखकर...

 

ये वो जमात है, जो कभी भी शांति से बैठी नहीं है। लोगों का विरोध भी उसी कारण से था। ऐसी खतरनाक तकनीक का प्रयोग यदि आम जनता पर किया जाये, तो आम जनता कहाँ जायेगी? बादल अचानक फटे और अचानक 20-25 फीट पानी आ जाये तो इस जलस्तर से नीचे के हिस्सों में रहने वालों का क्या हाल होगा?


वे लोग भले ही सयाना बनकर ऐसा बता रहे हो कि, हम अब इस तकनीक का प्रयोग नहीं करते है, लेकिन इसी साल का समाचार देख लो, प्रकृति को बदलने में सटीक, जीओ इंजीनीयरींग का खतरनाक शस्त्र Haarp Technology का Haarp Open House में एक प्रयोग हुआ था। अमेरिका के अलास्का के Gakona प्रांत में अभी भी हार्प केन्द्र खड़ा है, जिसका प्रयोग देखने के लिए 14 जून-2025 शनिवार को लोग गये थे।

HAARP का अर्थ होता है –

– High Frequency

A – Active

A - Auroral

R - Research

P – Programe

 

हार्प टेक्नोलोजी के केन्द्र भारत के अंदर भी तीन स्थानों में रहे हुए है, ऐसे समाचार थे।

1)     दक्षिण भारत में कर्णाटक राज्य में 2) मध्य भारत के भोपाल में 3) उत्तर भारत में प्रायः उत्तराखण्ड में... और जो लेटेस्ट जानकारी मिली है, इस के आधार पर बता दूं तो, MST (Radar) का केन्द्र आन्ध्रप्रदेश के गडंकी (Gadanki) में है।

 

India's Advanced MST Radar Operated by the National Atmospheric Research

Laboratory (NARL) in Gadanki

M – Mesosphere

S – Stratosphere           MST (Radar)

T – Troposphere

 

मुझे मिले समाचार और मेरी समझ के मुताबिक उत्तर भारत की बादल फटने की दुर्घटनाएँ कोई प्राकृतिक नहीं है, प्रयोग जनित है यानी जलीय शस्त्रों का जनता पर किया गया एक प्रयोग है।

 

तकरीबन दो साल पूर्व दुबई में एक ही दिन में (फिर से पढ़ों, एक ही दिन के कुछ घण्टों में) पूरे डेढ़ साल की बारिश गिरी थी (ना, गिराई गई थी) और दुबई जैसे रेगिस्तान के एरिया में बाढ आयी थी। तब भी क्लाउड सीडिंग का प्रयोग ही था, उस में भी बताकर किया गया प्रयोग था। कभी-कभी वे लोग प्रदूषण दूर करने के नाम पर भी क्लाउड सीडींग करवा चुके है। वहाँ पर बाढ के कारण-आर्थिक इत्यादि नुकसान हुए थे, लेकिन वहाँ की सरकारें समर्थ है, तो सहन कर लेती होगी।

 

बवंडर, बाढ और बिजली गिराने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के राक्षसी प्रयोग करने की ताक़त इन्सानों के हाथों में आने के पश्चात्, ऐसी शक्तियों के सदुपयोग से ज़्यादा दुरुपयोग की ही आशंका अधिक दिख रही है।

 

इस टेक्नीक एवं टेक्नोलोजी का क्या खतरनाक दुष्प्रभाव होता है, उसे Geostorm नाम की मूवी में भी बताया जा चुका है। अमेरिका में एक टी.वी. सीरीज़ दिखायी गई थी।जिसका नाम अमेरिकन डेड था, उस सीरीज़ के एक एपिसोड में भी स्पष्ट रूप से दिखाया गया था कि केमिकल स्प्रे करके वेदर मोडिफिकेशन करने में इन लोगों को सफलता हासिल हो गई है।

 

इस टेक्नीक से जहाँ अकाल हो, पानी की दिक्कत हो वहाँ पानी बरसाने की सुविधा मिलती है, जंगलों में यदि आग लग गयी हो तो वहाँ आग बुझाने की भी सुविधा मिलती है, लेकिन दुष्ट बुद्धि के स्वामी दुष्टों को यह सब परोपकार करने की फुर्सत भी तो कहाँ है? प्रयोग में उन्हें रस है, परोपकार में नहीं।

 

दुनिया को उल्लू बनाने के लिए वे बोल देते है की हमने हार्प के प्रयोग बंद कर दिये है, लेकिन 2025 के समाचार ही बता देते है की, वे अभी भी अलास्का में हार्प केन्द्र को जारी रखें हुए है और इस प्रकार पानी बरसाने पर अकाल इत्यादि के दुष्परिणाम भी भविष्य में आ सकते है फसलें दोनों स्थान पर बर्बाद होती है, चाहे अतिवृष्टि हो चाहे अनावृष्टि... कुदरत बिगड़े उससे पूर्व ही कुदरत को बिगाड़ने के काले धंधे जब चल रहे हो तब अपनी बात कौन सुनने वाला है भला?

 

कुदरत के अपराधियों को कुदरत स्वयं ही सजा देने में समर्थ है। इस लेख को लिखने का प्रयोजन, विज्ञान के पागल भक्तों को विज्ञान की दूसरी बाजू दिखाने का है और ऐसी आपदाओं में से आम जनता को बाहर लाने का है।

 

पापी पापेन पच्यते (पापी अपने पाप से ही मरनेवाला है)

इस न्याय से बादल फाडने के धंधे करनेवालों को तो हम कुछ नहीं कर पाने वाले, क्योंकि वे लोग P.M., C.M. से भी उपर की जमात वाले है, लेकिन वे भूल रहे है कि उनके भी ऊपर कोई बैठा है।

 

अंत में, हमें सिर्फ इतना करना है

1)     निर्मल हृदय से प्रभु को प्रार्थना - हे प्रभु! गरीबों को, संतप्तों को, दुखियों को, बेघरों को बचा लेना, किसानों की फसलों को, महेनत को सुरक्षित करना, उजड़ने मत देना।

2)    धर्म को पकड़कर रखने का मजबूत संकल्प लेना।

 

धर्मो रक्षति रक्षित : (धर्म की सुरक्षा करने वालों की सुरक्षा धर्म करता है।)

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