एक स्त्री अत्यंत क्रोधी स्वभाव वाली थी। दिन और रात, घर में और बाहर हर जगह गुस्सा करती थी। अपनी सास पर, ससुर पर, पति पर, बच्चों पर, नौकरों पर गुस्सा करती थी। उसे भी मालूम था कि, मैं जो कर रही हूँ वह योग्य नहीं है। पर अपने ही गुस्सैल स्वभाव पर उसका नियंत्रण नहीं था।
एक दिन उस शहर में एक संत पुरुष पधारे। वह उनसे मिलने गई, और कहा, “महात्मा! मुझे बहुत गुस्सा आता है, आप कोई उपाय बताइए।”
संत ने कहा, “मेरे पास क्रोध की एक औषधि है, जो कि एक क्रोध मारक पत्थर है।”
उस स्त्री ने पूछा, “क्या वह पत्थर खाना है? या किसी को मारना है? घिसना है? या तोड़ना है?”
संत ने हंसते हुए कहा, “उसे खाना भी नहीं है, मारना भी नहीं है, घिसना भी नहीं है, और तोड़ना भी नहीं है। बस, जब भी क्रोध आ जाए, तब उसे मुँह में रखना है। उस समय होंठ नहीं खोलने हैं। बस, इतना करो, तो यह दवाई असर दिखाएगी।”
वह स्त्री जानती थी कि, क्रोध अच्छा नहीं है। इस-लिए उसने कहा, “महात्मन! यह पत्थर मुझे दे दीजिए।”
महात्मा ने उसे एक छोटा शालिग्राम दे दिया। वह श्रद्धा से उसे ले गई। क्रोध तो उसका स्वभाव बना हुआ ही था। पर अब उसे जब भी क्रोध आता था, तब वह पत्थर मुँह में रखकर अपना मुँह बंद कर देती थी। पति, पुत्र या नौकर पर क्रोध करने से पहले याद करके पत्थर मुँह में रखकर, मुँह बंद कर देती थी। अब होठ खुलेंगे ही नहीं, तो बोलेगी कैसे? जब बोलेगी ही नहीं तो बात आगे कैसे बढ़ेगी? अंदर से तो बहुत क्रोध आता था, पर होठ नहीं खोलने थे। दो-तीन महीने में अभ्यास हो गया। क्रोध शांत हो गया। उसे लगा कि वह अब ठीक हो गई है।
वह संत के पास गई और बोली, “महात्मन! आपने तो मुझ पर कृपा कर दी। बहुत अच्छी दवाई दी। यह सुनकर महात्मा हंस पड़े और रहस्य खोल दिया।”
आखिर में उस संत पुरुष ने उस स्त्री को हितशिक्षा देते हुए कहा कि, “बहन! क्रोध धर्म से भ्रष्ट तो करता ही है, पर धन से भी भ्रष्ट करता है। क्रोध सज्जनों से तो दूर करता ही है, बेटों से भी दूर कर देता है। क्रोध मन को तो बिगाड़ता ही है, तन को भी बिगाड़ देता है। क्रोध परलोक को तो बिगाड़ता ही है, पर आलोक भी बिगाड़ देता है। इसलिए जीवन में से क्रोध को तिलांजली देनी ही चाहिए!!!”
संत पुरुष ने आगे कहा, “बहन! हमारी ‘हस्ती’ को इतनी ‘सस्ती’ नहीं बनानी चाहिए कि कोई भी आकर उसकी ‘मस्ती’ कर जाए।”
एक विदेशी कहावत है-
“A mind piece is hell &
A mind peace is heaven.”
स्वर्ग के सुख का अनुभव करने के लिए, मरकर स्वर्ग में जाने की जरूरत नहीं है। आप अपने स्वभाव को शांत बना दीजिए, स्वर्ग यहीं ही है।
तो चलिए, हम संकल्प करते हैं कि,
‘आज मुझे क्रोध करना ही नहीं है।
और यदि क्रोध आ जाए तो,
जिस पर क्रोध किया हो
उसे ₹10 गिफ्ट कर देंगे।