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आत्मा का साक्षात्कार कैसे होता है?




स्वामी अवधूत एक अत्यंत उन्नत संत थे, जो आत्मा की अनुभूति में पारंगत थे। वे निरंतर एक गाँव से दूसरे गाँव की यात्रा करते रहते।


एक बार, एक भक्त के घर वे पधारे। उस भक्त की प्रबल इच्छा थी कि वह आत्मा का साक्षात्कार करे। आज तक कई संत उसके यहाँ आए थे, और गाँव में जो भी संत आते, वे उसी के घर ठहरते।


अवधूतजी के कुछ दिन रुकने के बाद, जब विदा का समय आया, तो उस भक्त ने उनसे विनम्रतापूर्वक पूछा:"गुरुदेव! यदि आत्मा का साक्षात्कार करना हो, तो क्या करना चाहिए?"अवधूतजी ने उत्तर दिया:"यह प्रश्न तुमने अब क्यों पूछा? पहले ही पूछते, तो मैं इसे विस्तार से समझाता। इसे समझने के लिए तो कई दिन चाहिए।"भक्त ने निवेदन किया:"मुझे तो आपको और कई दिन तक अपने यहाँ रोकना ही था, इसलिए अब पूछा।"अवधूतजी मुस्कुराए और बोले:"अभी नहीं। मुझे कुछ काम निपटाने हैं, फिर आकर इस पर चर्चा करेंगे।"भक्त ने हाथ जोड़कर कहा:"तो आपको फिर आना ही होगा।"अवधूतजी ने सहमति दी और आगे बढ़ गए।


कुछ दिन बाद, अवधूतजी फिर उस भक्त के घर लौट आए। अब आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया आरंभ हुई।

भक्त के घर एक भैंस बंधी हुई थी। अवधूतजी ने उसे निर्देश दिया:"देखो, इस भैंस का हू-ब-हू सुंदर चित्र बनाओ। चाहे दस दिन लग जाएं, पर चित्र पूरी तरह सटीक होना चाहिए।"भक्त ने कभी चित्र नहीं बनाए थे, इसलिए यह काम उसके लिए कठिन था। वह चित्र बनाने की कोशिश करता, लेकिन उसका मन भटक जाता और चित्र सही नहीं बनता। दस दिन ऐसे ही बीत गए। चित्र सही नहीं बन सका। आत्मसाक्षातकार की परीक्षा में उसे किसी भी हालत में उत्तीर्ण होना था।


भक्त ने अवधूतजी से और दस दिन का समय मांगा। अब उसने भैंस को ध्यानपूर्वक देखना शुरू किया। धीरे-धीरे उसका मन एकाग्र होने लगा। थोड़ा बहुत चित्र बना। कड़ी मेहनत के बाद बने हुए चित्र लेकर दसवें दिन अवधूतजी के पास गया, लेकिन अवधूतजी संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा:"यह चित्र संतोष जनक नहीं है और दस दिन लो। भैंस का ध्यान और गहराई से करो, फिर चित्र बनाओ।"


भक्त अब भैंस में एकाकार हो गया। मन के विचार कम हो गए, और मन एकाग्र हुआ। दस दिनों तक उसने पूरी तन्मयता से भैंस का ध्यान किया। इन दस दिनों में उसकी ऐसी स्थिति हो गई कि उसे पूरा संसार भैंस रूप में दिखाई देने लगा। चित्र तो सुंदर बन गया, लेकिन संसार की हर चीज़ में उसे भैंस नज़र आने लगी। अवधूतजी ने उस चित्र की खूब प्रशंसा की और उसे भक्त से लेकर रख लिया। फिर उन्होंने कहा कि भैंस का ध्यान और दस दिन तक करो।


दस दिनों तक भैंस का ध्यान करते-करते भक्त और भी आगे बढ़ गया। पहले तो उसे संसार और संसार की हर वस्तु भैंसमय लग रही थी, लेकिन अब वह स्वयं को भी भैंस समझने लगा। उसने अपने आप को पूरी तरह भैंस मान लिया।

दस दिन बाद, अवधूतजी सुबह-सुबह मंदिर में भक्त के पास गए। जैसे ही उन्होंने उसके कमरे का दरवाज़ा खोला, भक्त चारों हाथ-पैरों से भैंस की तरह उनके पास दौड़कर आया। वह भैंस की तरह सिर हिलाने लगा और प्रेमपूर्वक अवधूतजी के शरीर को सूँघने लगा। अब अवधूतजी को यह निश्चित हो गया कि भक्त पूरी तरह भैंसमय हो चुका है। इस प्रक्रिया से उन्हें संतोष हुआ।


कुछ समय बाद अवधूतजी ने भक्त को भैंस के ध्यान से बाहर निकाला। थोड़ी मेहनत के बाद, भक्त ध्यान से बाहर आया। ध्यान से बाहर आने के बाद उसे यह अहसास हुआ कि वह भैंस नहीं है, बल्कि भक्त है।

स्वस्थ होने के बाद, अवधूतजी ने भक्त को शांतिपूर्वक समझाया:


"तुमने आत्मसाक्षात्कार के तीन स्तरों का अनुभव किया। क्या तुम्हें इसका अहसास हुआ?पहले स्तर में संसार का दर्शन होता है। इसका अर्थ है कि संसार नश्वर है, यह समझ में आना चाहिए। जब नश्वरता स्पष्ट हो जाती है, तो आगे बढ़ने में समय नहीं लगता।संसार के दर्शन के बाद भगवान का दर्शन होता है। और जब परमात्मा का दर्शन होता है, तो उस दर्पण में आत्मा का भी दर्शन होता है। इस प्रकार आगे बढ़ते हुए आत्मसाक्षात्कार होता है।"


"आत्मसाक्षात्कार के तीन चरण हैं:


  1. परदर्शन - अर्थात संसार को उसकी नश्वरता के रूप में देखना।

  2. परमदर्शन - अर्थात परमात्मा के दर्शन।

  3. आत्मदर्शन - अपने आत्मस्वरूप का साक्षात्कार।


इन तीन स्तरों को तीन 'J' के नाम भी दिए जा सकते हैं:(1) जगत-दर्शन, (2) जगत्पति-दर्शन, और (3) जात-दर्शन।

यदि इस क्रम से आगे बढ़ें, तो आत्मसाक्षात्कार अवश्य होगा।


आइए, अब तक हम अनादिकाल से दूसरों का - पर का - साक्षात्कार करते आए हैं, अब आत्मा का साक्षात्कार करने का प्रयास करें।

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