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सर्वश्रेष्ठ जैन योग

Updated: Apr 12, 2024



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मोक्खेण जोयणाओ जोगो।

आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी म.सा. अपने ‘योग-विंशिका’ ग्रन्थ में कहते हैं कि योग वह है, जो आत्मा को मोक्ष से जोड़ता है।

भौतिक जगत में आत्मा और शरीर के जुड़ाव का माध्यम मन है। इस मन को शरीर से अलग करने का कार्य योग-ध्यान करता है, जिससे मन आत्मा में स्थिर हो जाता है। योग शरीर के माध्यम से पहले आत्मा और उसके बाद परमात्मा की यात्रा करवाता है। लम्बे समय तक शरीर की ध्यान-योग में स्थिरता साधक को समाधि पद प्रदान करती है। समाधि अवस्था को प्राप्त कर लेने के उपरांत साधना में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं और अंत में बस एक चेतना बचती है, जो आत्मा को परमात्मा की ओर ले जाती है।

महर्षि पतंजलि ने समग्र मानव जाति के कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक व आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों वाले योग मार्ग का विस्तार से वर्णन किया है। इसे ‘अष्टांग योग’ कहा जाता है।

जैन दर्शन में स्वाध्याय, ध्यान, धर्मदेशना, पडि-लेहण, यम, गुप्ति, दान, शील, चरण और करण (आचार) नामक योग के अंग बताये गये हैं। इसमें पतंजलि के आठ योगों का भी समावेश हो जाता है। हमारा जैन योग अति प्राचीन है। इन सभी में ध्यान सर्वश्रेष्ठ योग है।

आज समूचा विश्व भारत के योग-विज्ञान की तरफ आकर्षित हो रहा है। हमारा यह योगशास्त्र शारीरिक, मानसिक व संवेदनात्मक शल्यों की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा प्रस्तुत करता है। प्रचलित YOGA वस्तुतः योग नहीं अपितु यौगिक क्रिया है, जिसे दुनिया योग के रूप में देखती है। योगा-सनों से मात्र शारीरिक अवयवों का व्यायाम होता है। शरीर निरोगी रहता है तो आयु लम्बी होती है।

जबकि, YOGA मन और इंद्रियों को अंकुश में रखने का साधन है। प्राणायाम श्वासोच्छवास की क्रिया है। कपालभाति, अनुलोम-विलोम, रेचक, कुम्भक आदि प्राणायाम की क्रियाएं हैं। इस योग-प्राणायाम से नाड़ियों की शुद्धि, स्वास्थ्य की वृद्धि और रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) का विकास होता है, जिससे तन और मन में स्फूर्ति आती है।

परंतु, मोक्ष की साधना के लिए तो एकमात्र ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।

ध्यान से केवलज्ञान की प्राप्ति :

धर्म-ध्यान धार्मिक क्रियाओं में आंतरिक रूचि और प्रगति को गतिशील बनाता है। क्षमा आदि दस प्रकार के धर्म से युक्त आंशिक कर्मक्षय करता हुआ धर्म-ध्यान देवलोक की प्राप्ति करवाता है। शुक्ल यानी निर्मल। संपूर्ण कर्मों का क्षय करवाते हुए निर्मल शुक्ल ध्यान, पूर्णसिद्धि-परमपद ऐसे मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। यह उच्च कोटि का ध्यान है। यह वीतराग बनने से पूर्व की अवस्था है। अन्य ध्यानों द्वारा बहुत से शारीरिक व मानसिक लाभ साइड प्रोडक्ट के रूप में अपने आप मिलने लगते हैं, जिनके लिए हमें किसी प्रकार के अतिरिक्त प्रयत्न करने की जरूरत नहीं होती।

जैन धर्म का ध्यान कर्मों का क्षयोपशम करते हुए आत्मा में परमात्म स्वरूप को प्रकट करवाने वाला है।

श्री सिद्धचक्रजी का ध्यान :

भगवान श्री सिद्धचक्रजी की पूजा जिनशासन का सार है। जिनशासन में ध्यान के लिए बहुत से आलम्बन बताये गये हैं, जिनमें नवपद सभी से श्रेष्ठ है। नवपद का ध्यान करता हुआ आत्मा भावधर्म का सर्जन करता है। श्री गौतम स्वामी कहते हैं कि अरिहन्त आदि पदों का ध्यान करते हुए धार्मिक क्रियायें, भक्ति आदि करने से साधक का हृदय विशुद्ध बनता है। आंतरिक विशुद्धि के साथ भाव पूर्वक की जाने वाली धार्मिक क्रियायें, भक्ति आदि जीव को मोक्ष मार्ग की ओर अग्र-सारित करती हैं। श्री सिद्धचक्रजी का बीज मंत्र ‘अर्हम्’ का ध्यान ही विशिष्ट ध्यान है।

कायोत्सर्ग ध्यान :

कायोत्सर्ग ध्यान जैन धर्म की प्रसिद्ध पद्धति है। काया का त्याग कर मात्र आत्मा में स्थिर हो जाने की प्रक्रिया को कायोत्सर्ग कहा जाता है। जीव का काया (शरीर) के प्रति बहुत ममत्व भाव होता है। शरीर की ममता का त्याग अत्यंत कठिन है। जब तक काया का ममत्व बना रहेगा, तब तक आत्मा में स्थिरता नहीं होगी। काया के ममत्व त्याग के लिए अनेक दर्शनों ने अपने-अपने उपाय बताये हैं। किन्तु, इन सभी में जैन दर्शन का कायोत्सर्ग मार्ग अत्यंत सरल, प्रभावी व प्रसिद्ध है।

कायोत्सर्ग प्रक्रिया में जैन धर्म की छः आवश्यक क्रियायें समाहित हैं। कायोत्सर्ग कर्मनिर्जरा का अमोघ शस्त्र है। बाहुबली मुनि बारह वर्ष तक कायोत्सर्ग ध्यान में रहे। परमात्मा तो हंमेशा कायोत्सर्ग ध्यान में ही रहते थे।

शास्त्रें में कायोत्सर्ग को सभी अभ्यंतर तपों में सर्वश्रेष्ठ व विशिष्ट बताया गया है। कायोत्सर्ग साधना का शरीर और श्वास के साथ संबंध है। इसीलिए इसे ‘महाप्राणध्यान’ अथवा ‘परमकला-ध्यान’ भी कहा जाता है।

जैन धर्म में बहुत सी ऐसी ध्यान-क्रियायें हैं, जो कि साधक को मोक्ष मार्ग पर आरूढ़ करती हैं। सुषुम्ना नाड़ी में श्वास को मूलाधार से सहस्रार चक्र तक ले जाते हुए दीर्घ ॐकार का उच्चारण केवलज्ञान तक पहुंचा सकता है। नवकार मंत्र का ध्यान, नवकार मंत्र के बीजाक्षरों का ध्यान, समवसरण ध्यान, परमात्मा दर्शन के साथ चक्र ध्यान, परमात्मा की भाव यात्रा ध्यान आदि साधक को मोक्ष मार्ग की योग-ध्यान यात्रा में सफल बनाते हैं।

अंत में, प्राणायाम हमारी एकाग्रता में वृद्धि करता है। निर्मल व शल्य रहित मन का होना योग-ध्यान यात्रा में सर्वाधिक आवश्यक है।

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