top of page

महिला तूं महान है

  • May 10, 2020
  • 3 min read

Updated: Apr 12, 2024



ree

वर्तमान में पूरे विश्व में लगभग 650 अलग-अलग धर्म अस्तित्व में हैं। पहले 40 – 50 धर्मों में नारी को साधुता या संतत्व की दीक्षा प्राप्त होती थी।

समय की बहती धारा में आचार की शिथिलता, मोह के विलासों और अध्यात्म की विमुखता के कारण अधिक-तर धर्मों में नारी की दीक्षा के द्वार बन्द जैसे हो गए।

किन्तु यहाँ जिनशासन ने एक अद्भुत आश्चर्य उत्पन्न किया!! दुराचार और व्यभिचार के अड्डों और वासना  की भूख आज भी प्रभु वीर के शासन को स्पर्श नहीं कर पाई, और पवित्रता के तेज से जिनशासन की श्रमणी परम्परा आज भी जगमगा रही है।

कहीं श्रेष्ठ श्रमणों को जन्म देने वाली श्राविका माता है, तो कहीं श्रावकों को धर्म के मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करने वाली भी श्राविका है, जो धर्मपत्नी शब्द को सच्चे अर्थ में सार्थक कर रही है। इसके अलावा धर्म के मार्ग पर चलने वाले को स्थिर करने की प्रेरणा देने वाली श्रमणी माता – गुरु माता भी है।

जैसे टेबल के चार पायों में से एक टूट जाए, तो टेबल पर चढ़ने वाले को गिरने का खतरा रहता है, उसी प्रकार प्रभु के शासन की इमारत चार महत्त्वपूर्ण आधार स्तम्भों पर टिकी है –

? श्रमण,

? श्रमणी,

श्रावक और

श्राविका

ऊँची इमारत की बाह्य सुन्दरता और भव्यता उसके मजबूत आधार स्तम्भों को आभारी होती है। ये आधार स्तम्भ उसकी आन्तरिक सुन्दरता हैं।

भव्यातिभव्य जिनालय को देखते ही हमारे हृदय के तार सुरावली छेड़ने लगते हैं। किन्तु उसके मूल में उस मजबूत शिला का आधार होता है, जो किसी को दिखाई नहीं देती। ठीक उसी प्रकार जिनशासन श्रमण प्रधान है, श्रमण भगवन्त शिखर के स्थान पर विराजते हैं। किन्तु किसी की नजर में न आने वाली मुख्य आधार शिला यदि कोई है, तो वह श्रमणी भगवन्त है। ये अपने सत्व, साधना, सदा-चार, शुद्धि और सामर्थ्य से शासन नामक इस इमारत को टिकाए रखती है।

जैन धर्म के विकास में नारी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नारी ने अनेक बार अपनी शक्ति का परिचय दिया है। देश, धर्म और संस्कृति में नारी अपने गुणों के कारण सदैव छाई रही है।

इस अवसर्पिणी काल में मोक्ष के द्वार खोलने वाली एक नारी ही थी। मरुदेवी माता ने मानो Ladies First के नियम को अपनाया और आदिनाथ भगवान से पहले मोक्ष गई। 

साध्वी ब्राह्मी और साध्वी सुन्दरी ने अपने भाई महाराज को मधुर वचन सुनाकर अहंकार रूपी हाथी से नीचे उतारा।

समवसरण में प्रभु वीर ने जिसके सम्यक् दर्शन की प्रशंसा की थी उस महासती चेल्लणा ने राजा श्रेणिक के धार्मिक व्यामोह को दूर करके उन्हें सच्चे धर्म के दर्शन करवाए।

अरणिक मुनि की मोह निद्रा उड़ाकर संयम जीवन में पुनः स्थिर करने वाली करुणाशील माता साध्वी की पुकार से कौन अनजान है ?

पालने में सो रहे अपने पुत्र को “शुद्धोसि, बुद्धोसि” की आध्यात्मिक लोरी सुनाकर उसमें सात्विक भाव भरने वाली माता मदालसा का विरक्त भाव कितना सुन्दर था ?

वचन भंग करने वाले शान्तनु राजा को सन्मार्ग पर लाने के लिए भीष्म पितामह की माता गंगादेवी की वीरता वास्तव में बेजोड़ थी।

नारी के हृदय में गौरव और गरिमा की गंगा, जोशीली बोली की जमुना, और सेवा – समर्पण की सरस्वती का निर्मल और निःस्वार्थ प्रयाग होता है।

वन्दन हो श्रमणी भगवन्तों के चरणों में, महा-सतियों के चरणों में … !!

सर्वमंगल :

मिला है मान भारत को, उन्हीं सतियों की शक्ति पर,

टिका है चाँद और सूरज, उन्हीं सन्तों की शक्ति पर।

सन्नारी ही देश में अभिनव ज्योति जलाती है,

सुन्दर, उज्ज्वल आदर्शों से धरा को स्वर्ग बनाती है।

Comments


Languages:
Latest Posts
Categories
bottom of page