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Updated: Apr 7




केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने अभी-अभी बड़ी घोषणा कर डाली, ‘शीघ्र ही देश के सारे टोल-बूथ हटा दिए जाएंगे। भविष्य में टोल-बूथ का स्थान जीपीएस लेगा। आपकी यात्रा के किलोमीटर के अनुपात में टोल स्वत: ही कटता जाएगा।‘

इस घोषणा के खिलाफ राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक श्री गुलाब कोठारी ने बहुत ही भड़ास निकाली है।

उनके ही शब्दों में पढ़ते हैं –

‘सरकार ने पहले ही टोल बूथों पर फास्ट टैग अनिवार्य किया हुआ है। इसे कौन देखेगा कि फास्ट टैग का अन्य उपयोग नहीं हो रहा। पिछले दिनों हमारे एक साथी एन.सी.आर. के एक मॉल में गए तो पार्किंग का शुल्क सीधे फास्ट टैग से ही कट गया।

आने वाले दिनों में यह भी हो सकता है, कि मेरा वाहन माह में 200 km चलेगा तो उतना, और 2000 km चलेगा तो उसके अनुसार टोल कटेगा। मेरे प्रतिदिन कार्यालय, दूध, सब्जी, बच्चों को स्कूल लाना-ले जाना जैसे इतने कार्य हैं कि इनका योग ही 2000-3000 km हो जाएगा। इस दूरी का टोल जीपीएस स्वत: काट लेगा? जीपीएस में यह सिस्टम तो होता नहीं कि टोल रोड पर ही ऑन-ऑफ होगा, तो क्या मुझे बाहर नहीं भी जाना हो, तो भी मेरा टोल कटता रहेगा?

फिर फास्टटैग और जीपीएस जैसे माध्यम से लोगों के निजी जीवन में ताक-झांक होगी सो अलग। दुनिया में डाटा के दुरुपयोग के कईं ऐसे उदाहरण हैं। सवाल यह है कि लोगों के वाहनों पर लगने वाली चिप क्या सिर्फ टोल नाके पर शुल्क देने भर के लिए काम में लाई जाएगी? क्या इस तकनीक के खतरे नहीं है? क्या इसमें नागरिकों की निजता से जुड़े किसी तरह के संकट के आसार हैं? उस समय एक वाहन धारक का क्या होगा – इसका उत्तर भी गड़करीजी को ही स्पष्ट करना चाहिए।‘ यहाँ पर कोठारी जी की बात समाप्त करके मेरी बात बतानी शुरू करूंगा।

हकीकत में मैंने पूर्व के लेख में जिस चिप के बारे में बताया था, उसके दुष्परिणाम लोगों को धीरे-धीरे जैसे-जैसे समझ में आते जाएंगे वैसे-वैसे हल्ला मचना शुरू हो जायेगा।

बात हमेशा राष्ट्रीय सुरक्षा इत्यादि आदर्शवाद से ही प्रस्तुत की जाती है, मगर वास्तविकता उससे ठीक विपरीत ही दिखाई देती है।

आज के परिप्रेक्ष्य में भी मोदीजी की किसी नीति के खिलाफ जनता को बताने जाओ तो जनता खुद ही डरे-सहमे हुए अंदाज में कहती है कि, डर नहीं लगता आपको?

भविष्य में जब यहाँ लिखी बातें सच हो जायेगी तब बोलने का भी अवकाश कहाँ मिलेगा… जो चिप गाड़ी में लगेगी, वैसी ही चिप अब डिपार्टमेन्टल स्टोर्स में, वस्त्रों में, अन्य सामग्रियों में लगनी शुरू हो चुकी है, और भविष्य में आपके शरीर में भी लगना पूर्णत: संभव है। गाय-बैल इत्यादि मवेशी को तो आज भी लग ही रही है।

अपनी चीजें चोरी ना हो जाये, इसलिए लगानी हो, तब तक तो ठीक है, मगर मेरा गुलाम कहीं इधर-उधर ना जाये ऐसी सोच कितनी भयानक है।

माइक्रोचिप का सबसे बड़ा नुकसान आपकी निजता पर हमला है। माइक्रोचिप से जो भी ट्रान्सेक्शन होगा वह सारा डिजीटल होगा।

भारतदेश के लिए कैशलेस इकोनॉमी आज भी बहुत मुश्किल है क्योंकि यहां 70 प्रतिशत से अधिक प्रजा गांवों में रहती है और उसे स्मार्टफोन हैंडल करना भी नहीं जमता है।

मगर… भारत देश को केशलेस करने के लिए ऊपर बैठे हुए आकाओं ने क्या-क्या नहीं किया ?

(1) सबसे पहले सबके आधार कार्ड बनावाये गये।

(2) तत्पश्चात् जन-धन योजना से गरीबों के भी अकाउन्ट खोले गये जीरो बैलेंस पर।

(3) फिर आधार के साथ बेंक अकाउन्ट लिंक करने के लिए बोला गया।

(4) बाद में डीमोनेटाइजेशन (नोटबंदी) करके 500/1000 रुपये बेंक में जमा करने को बोला गया। (आपके हाथ में रहा हुआ आपका रूपया दूसरों के हाथ में देने के लिए मजबूर किया गया, वह भी उसी के हाथ में, जिसके हाथ में देना उन्होंने तय किया हुआ था।)

(5) फिर पेटीएम में डालकर उपयोग में लेने को बोला गया (हालांकि अनिवार्य नहीं किया गया, मगर आदत डालने की कोशिश की गई।)

(6) गरीब-अमीर सबको डिजिटल इन्डिया के साथ जुड़ने के लिए आह्वान किया गया। फिर भी हम पर कोई फर्क नहीं पड़ा। आज भी केश करन्सी से ही हमारा व्यवहार हो रहा था। फिर

(7) कोरोना लाया गया। अब 10 साल में पूरे विश्व की व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य पूरा करने के लिए वे लोग दौड़ रहे हैं।

जब तक केश खत्म नहीं होती है, तब तक माइक्रोचिप का विचार भी असंभव है।

मगर, उसका एक रास्ता है उन लोगों के पास! जिसका नाम है आधार कार्ड। यदि महंगाई बढ़ती है या राष्ट्र के कुछ नागरिक लॉकडाउन इत्यादि दमनकारी नीतियों का विरोध करने रास्ते पर उतर जाये, तो आधार कार्ड को डीएक्टिवेट कर सकते हैं। बेंक अकाउन्ट इत्यादि के साथ जुड़ा हुआ आधार कार्ड ही यदि इनवेलिड कर दें, तो राशन कार्ड से खाने पीने का सामान भी खरीद नहीं सकते क्योंकि आधार राशन कार्ड से भी लिंक्ड है।

कईं साल पूर्व आपको कोई भी चीज खरीदनी होती थी, तो जेब में कुछ न कुछ रूपये ले जाने पड़ते थे। बाद में इसकी आवश्यकता नहीं रहीं, क्योंकि क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, एटीएम आ गये और तत्पश्चात् उन कार्ड की भी जरूरत नहीं रही, मोबाइल से ही पेमेन्ट होने लगा। मोबाइल की भी भविष्य में जरूरत नहीं पड़ेगी, ऐसा कहकर आप के शरीर में चिप लगाई जायेगी। मोबाइल भी कोई चोरी कर सकता है, माइक्रोचिप कौन चोरी करेगा? ऐसा कहने वालों को पूछो, माइक्रोचिप के जरिये जिस अकाउन्ट में से हम पैसे निकाल रहे है, उसी अकाउन्ट को हैक कर के कोई हमें पूरा गंजा कर दे तो जिम्मेदारी किसकी? या सरकार के कोई अधिकारी हमें किसी कानून में फँसाकर हमारे पैसे निकाल ले, तो सुरक्षा कौन देगा? जिस प्रकार डिजिटल दादागिरी बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए एक चुटकुला याद आ गया। बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, ‘मेरे सर पर कितने बाल हैं ?’ बीरबल ने कहा, ‘जहाँपनाह एक लाख बाल हैं।‘

सेनापति ने तुरंत पूछ लिया, ‘मेरे सर पर कितने हैं?’

बीरबल बोला, ’80,000 हैं, सेनापति जी!’ सेनापति भड़क गया, ’20,000 कम क्यों? मेरे सर पर भी एक लाख होने चाहिए।‘ बीरबल ने कहा, ‘आप ही गिन लो।‘ सेनापति ने कहा, ‘आप गिनकर दो, क्योंकि आपने ही कहा है।‘ बीरबल ने कहा, ‘ठीक है, मैंने कहा है तो मैं ही गिन कर देता हूँ। नाई को बोलता हूँ, गंजा कर देगा, फिर मैं गिन लूंगा।’सेनापति ने शरणागति स्वीकार ली, ‘ना… ना… रहने दो बीरबलजी! जो है बराबर है, मुझे इतने बालों से संतुष्टि है।‘

 

डिजिटल करन्सी – RFID चिप इत्यादि आने के बाद आपके खाते में से पैसे कम भी हो जायेंगे तो भी आप कुछ भी बोल नहीं पायेंगे, क्योंकि सेनापति जी की तरह ज्यादा बोलने जायेंगे तो गंजा होने की बारी आयेगी। उस समय मौन होने से अच्छा है, अभी से मुखर होना शुरू करो।

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