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Updated: Apr 7





कुछ दिनों पूर्व जूही चावला के द्वारा दायर याचिका सर्वोच्चन्यायालय ने खारिज तो की ही, ऊपर से 20 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। इससे एक स्पष्ट संदेश दिया गया कि, जो हमसे (5G से) टकरायेगा, चूर- चूर हो जायेगा।

5G नामक बादशाह की सवारी जब निकल रही हो, तब फालतू लोगों को बीच में आने की इजाजत नहीं है। यदि करना है तो स्वीकार करो, सम्मान करो मगर शिकायत करने का आपका अधिकार अब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। लगता है, सर्वोच्च न्यायालय के ऊपर भी कोई बैठा है। तकनीकी विकास के इस जमाने में सबसे ज्यादा यदि कुछ बँट रहा है तो, उसका नाम है भ्रम। ज्ञान एवं सत्य ढूंढने वालों को अब बहुत ही संघर्ष करना पड़ेगा। संघर्ष सिर्फ अज्ञान से या असत्य से ही नहीं है, अज्ञानी और असत्यवादियों से भी करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, सबसे अधिक संघर्ष अज्ञानताप्रेमी, सुविधाप्रेमी और व्यक्तिप्रेमियों के समुदाय से करना पड़ रहा है।

ऐसा ही संघर्ष करने वाले प्रोफेसर हेन्री लाई से मैं आपका परिचय करवाना चाहूँगा। जो लोग थोड़ी बहुत जानकारी पाकर बोल रहे हैं कि, ‘मोबाइल फोन का रेडिएशन हम इन्सानों के लिए नुकसानकर्ता नहीं है, और ऐसा कोई सबूत भी नहीं है कि जो मोबाइल के रेडिएशन को नुकशानकारक सिद्ध करता हो, ऐसे लोगों के लिए यह लेख बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।

सबसे पहले मोबाइल फोन रेडिएशन के नुकसान का विचार करने के बाद 5G के रेडिएशन के नुकसान की चर्चा करेंगे।

वॉशिंगटन, अमेरिका के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. हेन्री उस वक्त चौक गये, जब उन्होंने चूहों पर मोबाइल रेडिएशन का प्रयोग करके देखा कि चूहों के दिमाग में रेडिएशन ने अच्छा खासा नुकसान पहुँचाया था। Non Ionizing Radiation का यह असर देखकर उन्हें यह भी पता चला कि, आज भी ऐसे ही रेडिएशन हमारे मोबाइल फोन में से निकल रहे है। सन् 1995 का वो वक्त था और उन्होंने एक रिसर्च पेपर जारी कर दिया।

उस समय अमेरीका की एक विख्यात कंपनी मोटोरोला तक यह बात पहुँची, और उस कंपनी ने दो कार्य किये,

1) प्रोफेसर को अपने साथ मीटिंग के लिए आमंत्रण दिया, और साथ में

2) प्रो. हेन्री को रोकने के भी प्रयास किए।

Wireless Technology of Research से जुड़ी कंपनियों ने और सेलफोन कंपनी मोटोरोला इत्यादि ने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी को लैटर लिखा, और प्रो. हेन्री एवं उसके साथी (रिसर्च पार्टनर) नरेंद्र प्रताप सिंह को निकाल बाहर करने का बहुत अधिक प्रेशर किया। यहाँ तक धमकी भी दी कि, यदि आप इन्हें नहीं हटायेंगे तो आप को मिल रहे रिसर्च फंडिंग भी बंद करवा देंगे। 25 मिलीयन डॉलर्स की फंडिंग बंद होने की धमकी से अच्छे-अच्छे शिक्षा प्रतिष्ठान झुकने को मजबूर हो जाते है, लेकिन यूनिवर्सिटी ने फिर भी प्रो. हेन्री को निकालने से इन्कार कर दिया। प्रो. हेन्री विज्ञान से रिश्ता रखते थे। उन्हें पहली बार पता चला कि उन्हें कैसी गंदी राजनीति में घसीटा जा रहा है।

प्रो. हेन्री ने सन् 1995 से इसकी निष्पक्ष जाँच करके अंतिम निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए कमर कस ली। उन्हें पता चला कि, मोबाइल रेडिएशन को जब-जब किसी निष्पक्ष वैज्ञानिक ने Harmfull (नुकशानकर्ता) डिक्लेर किया, तब-तब मोबाइल कंपनियाँ अपने पैसों से नौकरी में रखे हुए वैज्ञानिकों को इनके सामने खड़ा कर देती थीं। और वे ऐसा कहते थे कि मोबाइल रेडिएशन हम इन्सानों के लिए बिल्कुल भी नुकसानकर्ता नहीं है। [मैंने वो रिसर्च भी पढ़ा है, जिस में साफ-साफ लिखा है कि, ‘The bulk of scientific research is funded by private industry…]

लोगों तक सच  पहुँचने से रोकने के लिए, वे लोग [जिसके आर्थिक हित समाविष्ट है] मुद्दे को भटकाने के लिए उस मुद्दे को विवाद पूर्ण यानी डिबेटेबल बना देते हैं। लोगों को कन्फ्यूज करने के लिए कुछ वैज्ञानिकों को पैसे देकर उनसे गलत और विपरीत बयान दिलवाते हैं, ताकि लोग उलझन में फँसकर सच जान ना पाये। [जैसे कोरोना के बारे में डॉक्टर्स में दो विभाग हो गये ठीक वैसे ही।] सन् 2006 में इन सबने प्रो. हेन्री को आखिर Big Analysis करने के लिए प्रेरित किया। प्रो. हेन्री ने 1990 से लेकर 2006 तक (यानी 16 साल तक) मोबाइल फोन पर जितनी भी रिसर्च स्टडी हुई थी, उन सब को इकट्ठा करके पढ़ा। टोटल 326 स्टडीज़ को पढ़ने के बाद जो निष्कर्ष निकला, उसमें 50% रिसर्च मोबाइल रेडिएशन को Harmfull (नुकसानदाई) और 50% रिसर्च रेडिएशन को Non Harmfull (नुकसान रहित) बता रही थीं।

फिर प्रो. हेन्री ने इस 326 स्टडीज़ को दो विभागों में बाँटा।

1) स्वतंत्र (Independent) वैज्ञानिकों (Scientists) के द्वारा की गई स्टडीज़, और

2) Wireless कंपनियों के द्वारा स्वयं की फंडिंग से करवाई गई स्टडीज़। 

सत्य अब उभरकर सामने आ गया। अब 70% रिसर्च इसे Harmfull बता रहे थे। मोबाइल रेडिएशन को जो 70% स्टडीज़ नुकसानदाई बता रहे थे, वो स्वतंत्र वैज्ञानिकों के द्वारा की गई रिसर्च थी। यानी वो किसी से पैसे लेकर रिसर्च नहीं कर रहे थे। और जो कंपनियों के द्वारा फंडिंग देकर करवाई गई थी, उन स्टडीज़ में भी 30% वैज्ञानिक ऐसे थे जो रेडिएशन को खतरनाक बता रहे थे। यानी उस रेडिएशन से इन्सानों के DNA डेमेज हो सकते थे ऐसा स्पष्ट रूप से कह रहे थे।

अब Harmfull का Ratio 100% का था (जिसमें 70% स्वतंत्र वैज्ञानिक एवं 30% कंपनी के द्वारा नियुक्त वैज्ञानिक थे।) और नुकसानदेह नहीं मानने वालों में 70% कंपनी द्वारा नियुक्त वैज्ञानिकों की स्टडी और 30% स्वतंत्र वैज्ञानिकों की स्टडी शामिल थी।

इस बात को जब अमेरिकन कैन्सर सोसायटी तक पहुँचाया गया, तो उन्होंने पहले तो कोई जवाब ही नहीं दिया। और बाद में बेवकूफी से भरा स्टेटमेंट दिया कि, मोबाइल की RF (रेडियो फ्रिकवेंसी) में इतनी ताकत ही नहीं है कि वो इन्सान को नुकसान पहुँचा पाये। (हकीकत में वह सोसाइटी भी उन मोबाइल कंपनियों से मिली हुई है, जो मोबाइल बनाती है। भविष्य में हम ACS (अमेरिकन कैन्सर सोसायटी) का भी चिट्ठा खोलेंगे, जिसे पढ़कर आप हिल जायेंगे।) CTIA (Wireless Asso.) ने भी प्रो. हेन्री के अध्ययन के सामने मौन धारण कर लिया था। क्योंकि वायरलेस इन्डस्ट्री आखिर 1.4 ट्रिलीयन डॉलर की जो बन चुकी थी।

रेडिएशन नुकसानकर्ता है, इतना सिद्ध होने के पश्चात् अब 5G के रेडिएशन क्या नुकसान करते हैं,  उन्हें तथ्यों के आधार पर देखेंगे। कुछ लोगों ने मुझे प्रश्न किया था कि 1G, 2G, 3G, 4G आया तब तो आपने विरोध नहीं किया था तो 5G का विरोध क्यों ?

उन्हें मेरा जवाब है कि, तब इस बारे में मेरा कुछ भी अध्ययन ही नहीं था। बिना अध्ययन विरोध करने का या समर्थन करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात ये है कि, 1G, 2G, 3G और 4G की फ्रीक्वेंसी 1 से लेकर 6 GHz (गीगाहर्टज़) है, लेकिन 5G की फ्रीक्वेंसी 24 से लेकर 90  GHz (गीगाहर्टज़) है। 

कहाँ 6 गीगाहर्टज़ और कहाँ 90, कितना बड़ा अंतर है दोनों के बीच में। जितनी फ्रिकवेंसी High होती जाती है, उतनी ही वो डेन्जरस (खतरनाक) होती जाती है।

इस बारे में डेविड आर्ईकी एक बहुत बड़े संशोधक एवं खोजी पत्रकार हैं और वह कईं सारे वैज्ञानिकों से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि, 5G से अपने शरीर के DNA डीफोर्म (डिस्टर्ब) हो सकते हैं, एवं अपनी चमड़ी भी जल सकती है। और बाकायदा इसके प्रयोग अमेरिकन आर्मी भी कर चुकी है।

इन्सान का शरीर एक एन्टेना है। हमारे माइन्ड के अंदर एक रीसेप्टर होता है, जिसमें इलेक्ट्रोनिक इम्पल्स होते हैं, जो संदेश को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने का कार्य करते रहते हैं। जब हम भाग-दौड़ वाली शहरी जीवन शैली से दूर जाकर कोई रिसोर्ट या हिल स्टेशन में आराम करने पहुँचते हैं, तो दिमाग के अंदर पड़े इन इलेक्ट्रॉनिक इम्पल्स और रिसेप्टर्स को शांति मिलती है। मोबाइल टावर और रेडिएशन से मुक्त हवा में वो चैन की साँस लेते है। मगर अब आपकी इस चैन की सांस पर भी खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि 5G टेक्नोलोजी के समर्थक 20,000 सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़ने जा रहे हैं, और हर 100 मीटर्स के दायरे में 5G टॉवर्स लगाने जा रहे है। ताकि केबल और वायरिंग की परवशता ना रहे, सभी की निगरानी की जा सके, और जब चाहे तब दुश्मन को निपटाया जा सके। उनके दुश्मन वो ही

 नहीं, जो उनको नुकसान पहुँचाना चाहते हैं, बल्कि उनके दुश्मन वो भी हैं, जो कोई भी नुकसान किये बिना शांति से अपना जीवन जी रहे हैं, मगर उनके किसी काम के नहीं हैं।

‘Pain without Injury’ 5G की मुख्य शक्ति है। हमारे इमोशन्स (संवेदनाएँ) जैसे रोना, हँसना, आश्चर्यचकित होना इत्यादि की भी एक फ्रिक्वेंसी होती है, जिसकी अलग-अलग रेंज होती है। U.S Army के द्वारा मोबाइल रेडिएशन का एक सफल प्रयोग किया गया था, जिसमें दो अलग-अलग कमरों में, दो अलग-अलग ग्रुप्स (लोगों के समुदायों) को रखा गया और उस पर रेडिएशन छोड़ा गया था। जिस पर हाई फ्रिक्वेंसी के रेडिएशन को छोड़ा गया, वे लोग थोड़ी ही देर में विविध शारीरिक समस्याओं के शिकार होने के साथ-साथ आपस में लड़ाई करने लगे थे। उनमें चिड़चिड़ापन आ गया था, जब कि लो लेवल की फ्रीक्वेंसी में छोड़े गये रेडिएशन वाले लोगों में शांति थी और समस्याएँ भी ना के बराबर थी।

चुनाव आपको ही करना है कि आपको सुविधा चाहिए या शांति ?

स्पीड चाहिए या स्वास्थ्य ?

सफलता चाहिए या समाधि !

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