top of page
The Faithbook Blog


प्रभु की शुद्ध चेतना……
माता से अलग होना अगर भौतिक जन्म है, तो शरीर से अलग होना आध्यात्मिक जन्म है। अलग हुए बिना जन्म नहीं होता, प्रभु गर्भ में थे तो माता के साथ...
-
May 18, 20212 min read


प्रयोजनशून्यता ही पूर्णता है।
प्रभु गर्भ में भी पूर्णजागृत थे। गर्भ सृजन का स्थान है, सृजन शरीर का होता है। प्रभु सृजन से परे हैं। जो नजदीक है, इतना पास कि आप उसे पास...
-
Apr 10, 20212 min read


सर्वस्वीकार की साधना
माता त्रिशला के हृदय की संवेदना इतनी गहरी थी, उनका पुत्र-राग इतना था, कि पुत्र-वियोग आयुष्य को उपक्रांत कर सकता था…। प्रभु खुद को...
-
Apr 10, 20212 min read


प्रभु की अंतर्लीन और औचित्यपूर्ण अवस्था
त्रिशला रानी शंकित हो गये, क्योंकि गर्भ का स्पंदन अब बंद हो गया है। जीवन की कल्पना स्पंदन से होती है, जीवन का अनुभव तो निःस्पंद से मिलता...
-
Nov 2, 20202 min read


देहनिर्माण में दृष्टा भाव
त्रिशला रानी के गर्भ में जो भी घटित हो रहा था, उसे अघटित होकर देख रहे थे प्रभु। विश्व के सर्वश्रेष्ठ परमाणुओं के गठन से शरीर का संपादन...
-
Sep 25, 20202 min read


स्वाधिष्ठान चक्र ध्यान
( मूलाधार चक्र ध्यान की प्रक्रिया में से 1 से 6 क्रमांक तक ध्यान करने के पश्चात ) 7. फिर विचार कीजिए कि दूर क्षितिज से केशरी रंग की कोई...
-
Jul 27, 20205 min read


मूलाधार चक्र ध्यान
सबसे पहले शान्त चित्त होकर पद्मासन या सुखासन में बैठें। फिर तीन मिनिट तक अनुलोम-विलोम करें। इसमें दाहिने हाथ के अँगूठे से दाहिनी नासिका...
-
Jun 21, 20206 min read
From the significance of daily rituals to the profound teachings of Jainism,
our blogs offer a treasure trove of knowledge
Languages:
Top Posts






Categories:
bottom of page

