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देव कौन और नारकी कौन?

Updated: Apr 7




एक पौराणिक कथा है;

एक बार नरक के जीवों ने ईश्वर से शिकायत की, “आप पक्षपात करते हैं। देवों को आनंद और सुख देते हैं, और हमें दुख, त्रास और पीड़ा देते हैं।”

ईश्वर ने कहा, “नहीं ! मैं कोई पक्षपात नहीं करता। सभी को अपनी योग्यता और कर्मों के अनुसार सुख- दुख मिलते हैं।” फिर भी नरक के जीव मानने को तैयार नहीं थे। तब ईश्वर ने कहा, “आप को अवसर आने पर यह समझाऊँगा।”

कुछ दिनों के बाद ईश्वर ने अपने जन्म-दिन पर देवों और नारकियों, दोनों को आमंत्रण दिया। दोनों के लिए अलग-अलग हॉल में भोजन रखा गया था। नरक के जीव डायनिंग टेबल पर आकर बैठ गये। सारे व्यंजन परोसे गये। पर तकलीफ यह थी कि किसी का भी हाथ कोहनी से मुड़ नहीं रहा था। इसलिए हाथ में लिया हुआ निवाला मुँह तक पहुँच ही नहीं रहा था। हाथ मोड़ने की कोशिश में बाजूवाले को थप्पड़ लगने लगी। फिर तो सब गुस्से से एक दूसरे को मारने लगे, मारामारी शुरू हो गई। इतने में ईश्वर वहाँ आ गये। तो नरक के जीवों ने उनसे शिकायत की, “भगवान! आपने हमें यहाँ बुलाकर हमारा अपमान किया है। व्यंजन तो परोसे गए, पर कोहनी नहीं मुड़ रही। इस वजह से हम में आपस में मारामारी हो गई।

ईश्वर ने कहा, “पहले मेरे साथ चलो।” नरक के सभी जीवों को लेकर भगवान देवों के हॉल के बाहर गए और कहा, “अंदर के दृश्य को देखो।” डायनींग टेबल पर बैठे हुए देवों के हाथ भी कोहनी से नहीं मुड़ रहे थे, फिर भी सभी टेस्ट लेकर मस्ती से अपने हाथ का निवाला बाजूवाले को खिला रहे थे, बाजूवाला उसके बाजूवाले को; इस तरह सभी लिज्जत और स्वाद से व्यंजन खा रहे थे। फिर ईश्वर ने नरक के जीवों से कहा, “देखो! जो केवल अपने ही सुख का विचार करता है, वह दुःखी ही रहता है। जो दूसरों के सुख का विचार करता है, वह सुखी और आनंदित ही रहता है। मैं किसी भी तरह का पक्षपात नहीं करता, किन्तु आपकी योग्यता ही ऐसी है कि आपको दुःख, त्रास और पीड़ा ही मिल रही है।”

इस कथा का सार यह है कि,

“जो दूसरों को थप्पड़ मारना चाहे, वह नरक का जीव है, और जो दूसरों के मुँह में मिठाई रखे, वह देव का जीव है।”

सुखी होने की, सफल होने की, लोकप्रिय बनने की कुछ सुंदर और मजेदार चाबियाँ हैं:

? दूसरे जीवों को ज्यादा से ज्यादा सुखी करो, शाता दो, सहायता करो।

? हमारी वाणी और वर्तन से किसी जीव को दुःख, पीड़ा, अशाता ना पहुँचे इस बात का ध्यान रखो।

? कार्य सफल हो जाये तो यश दूसरों को दो, और काम बिगड़ जाये, निष्फल हो जाये तो अपयश की टोपी अपने सर पर पहनो।

? छोटे लोगों को भी बड़ा मानो, आगे बढ़ाओ, यश दो।

? छोटे लोगों की, दुःखी लोगों की, वृद्ध और बुजुर्गों की बातों को, शिकायतों को शांति से सुनो।

? दूसरों पर उपकार करके, उसे भूल जाओ; उसे बार-बार याद मत दिलाओ।

? दूसरों की गलतियाँ मत निकालो। बार-बार दूसरों की गलतियाँ निकालने से अप्रिय बनने की संभावना रहती है।

एक बात याद रखिए,

“दूसरों की भूल, छोटी भूल होती है, पर दूसरों की भूल बताने की हमारी भूल – यह बड़ी भूल है।” “दूसरों की भूलों को सुधारना – यह फिर भी चलेगा, पर कोई आपके प्रति का सद्भाव गंवा दे, यह तो कभी भी नहीं चल सकता।”

चलिए, आज से संकल्प करते हैं कि:

रोज कम से कम एक व्यक्ति को तो सुखी करने का, शाता देने का प्रयत्न करूँगा, और रोज कम से कम एक व्यक्ति की भूलों को माफ करूँगा।

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