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‘गंभीर रोग ‘अगंभीरता’ का...’




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अभी सोशल मीडिया पर एक कहानी वायरल हो रही है और साथ में एक खबर भी चर्चा में है। चलो पहले खबर सुना देते है। सोनाक्षी सिंहा (शत्रुध्न सिंहा की बेटी) ने मुस्लिम एक्टर ज़हीर ख़ान से शादी कर ली। सब लोग इसका मक्सद जानते ही होंगे, फिर भी बता देता हूँ, एक संदेश आम जनता को देना था कि, प्यार में जात-पात-धर्म-समाज के भेद बीच में नहीं लाने चाहिए। धर्मनिरपेक्षता का पाठ जो पढ़ाई के माध्यम से सीखाया जाता है, उसे प्यार में प्रेक्टीकल किया जाता है। लव जेहाद जैसी कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं है, फ़ालतू में लोग हो-हल्ला मचा रहे हैं। सभी इंसान एक जैसे नहीं होते हैं। सभी कौम में बूरे लोग मिल जाते है, वैसे ही अच्छे भी मिल जाते है इत्यादि संदेश... दिये गये।

 

आज की पढ़ाई बच्चों को चालाक तो बना सकती है, समझदार नहीं। पढ़ाई में संस्कार एवं समझदारी का पाठ नहीं पढ़ाये जाने के कारण ऐसी घटनाएँ अब आम होने लगी हैं। बच्चों की बात कहाँ करे, अभिभावक ही समझदार नहीं है, तो और किस पर भरोसा करे? जिन बच्चों के बचपन की बागडोर ही अगंभीर लोगों के हाथों में हो, अनाड़ी जिस का रखवाला हो, उनसे उम्मीद भी किस बात की?

 

तीतर का मांस बेचने वाला एक शिकारी था। उसने एक तीतर को पाल रखा था। बड़ा चालक था वह शिकारी... अपने पालतू तीतर को उसने ट्रेनिंग दे रखी थी। जहां पर जाल बिछा कर दाने डाले गये हो, वहां पर जाकर वह पालतू तीतर दाने चुगने लगता और दूसरे तीतरों को भी दाने खाने के लिए आवाज लगा-लगा कर बुलाता। भोले भाले तीतर उन पालतू तीतर पर भरोसा करके दौड़े चले आते, जाल में सब के सब फँस जाते। बाकी के तीतरों की सब्जी बन जाती, वो पालतू तीतर पुरस्कार पाता और फिर से दूसरी जगह पर शिकार को फँसाने के लिए छोड़ा जाता। पालतू तीतर का बाल भी बांका नहीं होता था, वो तो शिकारी का चहेता था, लेकिन समझदार तीतर ना के बराबर थे, जो लगातार इस षड्यंत्र में फँसते रहते थे।

 

लव जेहाद में फँसने वाली बेटी सिर्फ़ यातना ही पाती हो ऐसा भी नहीं है, पालतू तीतर जैसी सोनाक्षी सिंहा का बाल भी बांका ना हो, ऐसा भी हो सकता है, लेकिन इनके चक्कर में भोली -भाली अनेक लड़कियाँ शिकार होती है, इसका क्या? आज की पढ़ाई ने क्या सिखाया? दुनिया को कैसे उल्लू बनाना।

 

एक गंभीर विषय पर आज चर्चा करनी है, गंभीर विषय है अगंभीरता का... हमें एक रोग लगा है और वह रोग बड़ा गंभीर है, जिस का नाम है ‘अगंभीरता’...

 

हम हर चीज को हल्केपन में ले लेते है जो हक़ीक़त में बहुत ही गंभीर है।

 

दक्षिण भारत के एक राज्य के एक सुप्रसिद्ध शहर की यह सत्यघटना है। एक प्रतिष्ठित परिवार में घटित यह सत्यघटना हैं।

चतुर्दशी का दिन था, तेले का तीसरा उपवास था, फिर भी तपस्वी परोपकारप्रेमी भाई ने उस प्रतिष्ठित परिवार के मुखिये का फ़ोन लगाकर (दोपहर के वक्त) कहा कि, ‘आज शाम को सात बजे के आसपास आपकी बेटी को लेने के लिए, इस नंबर की बाइक से इस कलर की बाइक लेकर एक मुस्लिम लडका आयेगा। मुस्लिम लड़के का नाम यह है, इत्यादि...

परोपकारप्रेमी आराधक जैन भाई की बात को परिवार के मुख्य व्यक्ति ने मजाक समझ लिया। शाम के वक्त लड़की सब को खाना परोस रही है, चहरे पर झलकती मासूमियत देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि, कुछ ही घण्टों में परिवार में क्या होनेवाला है?

 

लड़की घर के कामों में मम्मी का हाथ बँटा रही है, सहायता कर रही है, खुद शाम को जल्दी भोजन करके रात्रि भोजनत्याग का पच्चक्ख़ाण भी ले रही है, तब किसको शक होगा?

 

घर-परिवार के सभी सदस्य शाम को प्रतिक्रमण (एक धार्मिक विधि) करने चले गये, घर में बची अकेली लड़की....

7 बजे के आसपास, ठीक समय पर एक मुस्लिम लड़का जो बताई थी वो ही नंबर की बाईक पर बैठकर, लड़की को लेने के लिए आ पहुँचा और लड़की ख़ुशी-ख़ुशी से उसके साथ चली गई। जब प्रतिक्रमण कर के घर के बाकी के सदस्य घर आये तो पता चला कि, पंछी उड़ चुका है। चिड़िया ने अब पुराना पिंजरा छोड़ दिया है।

 

जिसने पहले सूचना दी थी, उसी भाई को फ़ोन करके पछतावा करते हुए कहा कि, हमने आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया, जिसके चलते हमारी बेटी का अपहरण हो गया है। हम आप से विनंती करते है, हमारी बेटी को वापिस लाने का कोई उपाय हो तो बताईये और आपको यह जानकारी कहाँ से मिली वो भी बताईये।

 

परोपकारी भाई ने बता दिया मुझे आपके प्रश्नों में कोई दिलचस्पी नहीं है, और ना तो जवाब देने का समय मेरे पास है, आप सुनना चाहते हो तो सुन लो आपके पास यह अंतिम मौका है, आपकी बेटी अपनी स्वेच्छा से गई है, उसका अपहरण नहीं हुआ है, फिर भी आप बेटी को घर वापस लाना चाहते हो तो आपके घर से सवासौ डेढ़सौ किलोमीटर दूरी पर रहे इस शहर के पास हाईवे पर रही ‘होटल सावन’ की पहली मंजिल पर आप पहुँचो, अभी रात के साढ़े नव बजे है, डेढ़ बजे तक यदि आप होटल सावन के 105 नंबर के कमरे तक पहुंच जाते हो तो बेटी बच जायेगी। यदि आपने देरी कर दी तो लड़की हाथ में से चली जायेगी।

 

परिवार ने वापस प्रश्न किया ‘आपको यह बात कैसे पता चली?’ परोपकारी भाई ने सीधा ही जवाब दिया ’फालतू प्रश्नों के जवाब देने का मेरे पास टाइम नहीं है, आप भी ऐसे फालतू बातों में वक्त मत गँवाओ, काम पे लग जाओ।‘ कहकर फोन कट कर दिया।

 

परिवार में अपने आप को समर्थ-दबंग मानने वाला एक भाई डींगें हाँकने लगा ‘मेरी इस पुलिस से पहचान है और उस पुलिस से पहचान है, मैं थोड़ी ही देर में लड़की को हाजिर करता हूँ।’

 

पुलिस को जानकारी देकर गाड़ी तैयार करके ले जाने में रात को साढ़े-ग्यारह से ज्यादा बज गए थे। वे लोग जब सावन होटल के 105 नंबर के कमरे तक (पहली मंजिल पर) पहूँचे तब तक रात के दो बज चुके थे और पंछी वहाँ से भी उड़ चुका था। खोज करने पर पता चला कि, लड़की अपने यार के साथ गोवा चली गई थी। गोवा पहूँचे तब पता चला कि, बेटी तो अब दुबई चली गई है और वो प्रतिष्ठित परिवार इतने सालों के बाद भी अपनी बेटी की घरवापसी नहीं करवा पाया हैं, बेटी अब दुबई में ही है, ऐसे समाचार है।

 

अगंभीर मनस्थिति के कारण, गंभीर परिस्थिति को न समझ पाने के परिणाम कितने गंभीर आ सकते है, इसका एक छोटा सा उदाहरण मैंने यहाँ प्रस्तुत किया है।

 

मैं हमेशा एक बात अपने प्रवचनों में कहता आया हूँ, आपकी Maturity (परिपक्वता) का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि आप Priority (प्राथमिकता) किसे देते हो?

 

बच्चे को ₹500 की नोट दिखाई जाये और साथ में चॉकलेट दिखाई जाए, हाथों में दोनों चीज रखकर यदि बच्चे को पूछा जाये कि तू क्या लेना पसंद करेगा? तो अन्मेच्योर (अपरिपक्व) बच्चा चॉकलेट ही पसंद कर लेता है।

 

बेचारे को इतनी अक्ल नहीं है कि एक 500₹ की नोट में ढेर सारी चॉकलेट आ सकती है। ठीक उसी प्रकार आज-कल अधिकांश लोगों में इस बात का विवेक ही नहीं है कि, गौण को छोड़कर महत्वपूर्ण को चुना जाये।

प्राथमिकता किसे देनी, इस बात की परिपक्वता का अभाव आज अच्छ-खासे लोगों में दिखाई दे रहा है।

हमारे जैन धर्म के महापुरुषों ने सिर्फ दीक्षा लेने की ही बात नहीं बताई है, शादी किस से करनी है, इस बात का विवेक भी अपने शास्त्रों में बताया है।

 

हम अभी-अभी हुबली में थे। 8 मई से 28 मई तक इस साल (सन्-2024) हुबली में थे, तब ‘नेहा हीरेमठ’ का बहुतचर्चित केस हमने सुना था। जिसके पिताजी ‘निरंजन हीरेमठ’ कांग्रेस के पार्षद है, उसकी बेटी को एक सिरफिरा मुस्लिम युवा सरेआम सबके बीच में, दिनदहाड़े कॉलेज कैंपस में मार देता है। सात-सात बार चाकुओं के वार से खत्म कर देता है।

 

फिर भी उसी हुबली में 26 मई को एक जैन लड़की मुस्लिम लड़के के साथ लव मैरिज करती है। उस लड़की का सगा भाई स्वयं यह शादी करवाता है। जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि उस जैन लड़के ने 25 Lakh₹ मुस्लिमों से पाये थे, धंधे में कर्जा हो गया था तो 25 Lakh₹ मुस्लिम समाज से लेकर अपनी बहन की शादी मुस्लिम लड़के से खुशी-खुशी से करवा दी।

 

उसी हुबली में 6 जून-2024 को वर्षा नाम की डॉक्टर (M.B.B.S. + M.D + डर्मेटोलोजीस्ट)  लड़की की शादी आफताब नाम के मुस्लिम लड़के के साथ हुई। लड़की डॉक्टर है और साथ में M.D. है, लेकिन आफताब कुली के व्यवसाय में है। कहाँ कुली और कहाँ डॉक्टर क्या सचमुच प्यार अंधा होता है?

 

उसी हुबली में 15 मई को और एक लड़की की हत्या उस लड़की के घर में घुसकर उसीके BF (Boy Friend) ने कर दी सुबह साढ़े पाँच बजे... जैसे ही किसी की घर खटखटाने की आवाज सुनी, घर खोलनेवाली लड़की अंजलि अंबीगेरा की हत्या, विश्वा (गिरीश सावंत) ने गला रेतकर कर दी।

 

मुझे आश्चर्य इस बात का है कि, क्या माँ-बाप अपनी संतानों को इतने संस्कार या समझदारी भी नहीं सीखा पाते हैं कि, किस से रिश्ता बनाना चाहिए? और किस से नहीं?

किस के प्यार में आगे बढ़ना चाहिए? और कहाँ रुक जाना है।

और एक खतरनाक दृष्टांत (सत्य प्रसंग) सुन लीजिए।

 

कर्णाटक की राजधानी का यह किस्सा शायद आपकी आँखें खोल देगा। हम जिसें छोटी बच्ची मान लेते हैं, अब वह छोटी नहीं होती है। साढ़े तेरह साल की एक बेटी को, साउथ अफ्रीका से पढ़ाई करने के लिए अपने शहर में आये एक मुस्लिम लड़के से अफेयर हो गया।

जो फेयर नहीं होता उसे अफेयर कहा जाता है।

 

जैन बेटी के अफेयर की बात उनके माँ-बाप को एक-दो साल के बाद में पता चल गई। साढ़े सत्रह साल की उम्र में आयी बेटी ने मम्मी-पापा को बोल दिया, अब मैं आपके घर में सिर्फ 6 महिने की मेहमान ही हूँ। अब मैं यहां नहीं रहने वाली... मैं जा रही हूँ अपने BF के साथ...

 

अब तक गहरी नींद में सोये अभिभावक, सटाक से जाग गये, बेटी को नहीं जाने देने के लिए इधर-उधर के कुछ हितचिंतक को पूरी हकीकत से अवगत कराया। हितचिंतक एक बहन ने किसी बुद्धिशाली भाई से संपर्क करके कहा कि, ‘हमारी रिश्तेदारी में एक बेटी ऐसी लवजेहाद के चक्कर में फँसी हुई है, उसे कैसे भी करके बाहर निकालना है, आप कृपा करके कुछ कीजिए।‘

 

प्रबुद्ध भाई ने बताया कि ‘मेरे कुछ कार्यक्रम आंध्र प्रदेश में एक शहर में तय हो चुके हैं, अतः एक सप्ताह तक मैं कुछ भी एक्शन नहीं ले पाऊंगा, लेकिन एक रास्ता है, आप उस लड़की के मम्मी-पापा को बोलो कि अपनी बेटी को यहां भेज दे, जहाँ मेरे प्रोग्राम्स चल रहे है। मैं अपने समय को आगे-पीछे करके 100/150 लड़कियों का एक सेशन रख दूंगा, जिस में लव जिहाद का चेप्टर ले लूंगा, ताकि वो लड़की को ऐसा ना लगें कि, मुझे टार्गेट करके ही बोल रहे हैं।

 

मीडीयेटर (हितचिंतक) बहन ने बोला कि ‘मैं आप के मैसेज को आगे फोरवर्ड कर देती हूँ, और जो रिप्लाई आता है। मैं तुरंत आपको सूचित करती हूँ।‘

 

थोड़े ही टाइम में उस परिवार से जवाब आया, वो चौकाने वाला था। परिवार के मुख्य व्यक्तियों ने (मम्मी-पापा ने) बताया कि, ‘हम अपनी बेटी को वहाँ नहीं भेज सकते, क्योंकि बेटी की अभी पढ़ाई चल रही है।‘

 

जैन बेटी चली जाये तो भले ही मुस्लिम लड़के के साथ चली जाये, यह चलता है लेकिन पढ़ाई नहीं छूटनी चाहिए!!!

क्या भूत सिर पर चढ़ा है। पढ़ाई का भूत !!!

 

लेख के प्रारंभ में जो दृष्टांत दिया है, पालतू तीतर का। फिर से एकबार पढ़िए... अपनी बहन- बेटियों को सिर्फ मुस्लिमों से ही, अब खतरा नहीं रहा है, यदि मेरी बात गंभीरता से समझेंगे  तो अच्छा रहेगा। आज का सोशल मीडिया, आज का माहौल इतना खतरनाक है कि, सगे भाई से भी बहन को खतरा है। पढ़ाई से भी ज्यादा संस्कार की पढ़ाई पर फोकस करने की जरूरत हैं। महत्वपूर्ण को वो गौण करता है जो गौण को ही महत्वपूर्ण मान लेता है

 

[आने वाले पार्ट में बहुत सारी गंभीर बातों का उजागर किया जाएगा। जुड़े रहिए हमारे साथ]

 

(क्रमशः)

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