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टेटू तेरे चरणों में लेटू ? / या तुझे ही मेटू ( मिटा दूँ ) ???






Tattoo

‘यहाँ क्यों खड़े हो? भाईसाब!’

‘मैं सब्ज़ी लेनें जा रहा था, लाईन देखी, तो खड़ा रह गया।‘

‘क्या आप को पता भी है कि यह लाईन कहाँ जा रही है?’

‘नहीं’, ‘तो खड़े क्यों हो?’ ‘वो तो मेरी पत्नी ने कहा था कि, जहाँ लाईन दिखें, खड़ा हो जाने का... इसलिए...’

‘अरे, भले इन्सान! यह लाईन सुलभ शौचालय की ओर जा रही है,

क्या आप को फ्रेश होने के लिए जाना है?’

‘नहीं’

‘तो बाहर निकलो यहाँ से...’

 

सुना है कि हिटलर की सभा में तालियाँ बजाने वालों को बिठाया जाता था और हिटलर के भाषण में वे लोग बीच-बीच में तालियां बजाते रहते थे, बिना सोचे समझे ही...

 

और आश्चर्य इस बात का था कि, उनकी तालियाँ सुनते ही बाक़ी की जनता भी ताली बजाने लगती थी।

इसे कहते है, भेडचाल...

 

वर्तमान में एक एवरग्रीन फ़ैशन चल रही है, किसी भी फ़ैशन के अंधानुकरण की... टेटू बनाने की फ़ैशन के पीछे अच्छे - अच्छे लोग पागल बनकर लग गये है, इस भड़ेचाल में शामिल लोगों को देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा है।

 

मैं विहार करते हुए महाराष्ट्र के एक शहर में आ रहा था, तब साथ चल रहे एक विहार सेवक ने मुझे बताया कि, ‘साहेब! टेटू बनाने की हर जगह होड़ मची है, इसमें हमारा शहर भी बाकी नहीं है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि, हमारे शहर की जैन लड़किया टेटू बनवाने के लिए गोवा जा रही है।

मैंने पूछा, गोवा किसलिए? तो जवाब जो मिला, सुनकर मैं चौंक गया। गोवा – बैंगकोक इत्यादि टेटू के हब है।

लेकिन यह टेटू की शुरुआत कहाँ से हुई? अधिकांश रिसर्च में यह तथ्य ज्ञात हुआ कि टेटू इजिप्त संस्कृति से जुड़े हुए है।

 

इजिप्त के पिरामिड में रखें डेडबॉडी (ममीज़) में टेटू दिखते है। यानी टेटू का 5000 साल पुराना इतिहास है। अनेक रिसर्च से यह भी जानने को मिला कि, अपने शरीर पर टेटू बनवाने वाले कोई बहुत संस्कारी परिवारों के लोग नहीं थे। पूर्वकाल में टेटू बनवाने वाले हत्यारे और डकैत लोग थे। वे लोग जैसे - जैसे हत्या करते जाते, वैसे - वैसे हत्या की निशानी के रूप में टेटू बनवाते जाते थे। नागालेण्ड की हेड हंटर जाति में जो आदमी, जितने सिर काटता, उतना टेटू बनवाता था अपने शरीर पर।

 

कुछ देशों की सरकारें, अपने गुनहगारों पर टेटू बनवाती थी, ताकि अपने देश का क़ैदी कहीं इधर - उधर भाग जाये, तो उसे वापिस पकड़ने में आसानी रहे। जपान देश में तो पहली बार के अपराध में एक लाईन का टेटू भाल पर अंकित किया जाता, दूसरी बार के क्राइम पर दो लाईन का टेटू और तीसरी बार के अपराध में उस के भाल पर कुत्ता लिखवा दिया जाता था, टेटू के रूप में...

 

कुछ जगह पर गुप्तचरों के शरीर पर तो कुछ स्थान पर सैनिकों के ऊपर टेटू बनवाये जाते थे। भारत में छत्तीसगढ़ में दलित – महादलित लोगों को जब राममंदिर में प्रवेश नहीं मिला, तो उन्होंने अपने शरीर पर ‘राम नाम’ गुदवा दिया था।

 

बिहार में मुग़लों के अत्याचार से बचने बहन – बेटियों के मुंह पर टेटू बनाकर उनकी सुंदरता कम की जाती थी।

वर्तमान में टेटू अपनी भावना, अपना प्यार प्रदर्शित करने, सुंदर दिखने, कुछ अलग दिखनें के लिए, या सुपर नेचरल (भूत – प्रेत) का अनुभव करने के लिए, या किसी सिक्रेट सोसाइटी के प्रति अपनी वफ़ादारी प्रदर्शित करने के लिए, अलग - अलग डिज़ाईन के टेटू लोग अपनी बॉडी पर बनवा रहे हैं।

 

सिर्फ़ अमेरिका में ही साढ़े चार करोड़ से ज़्यादा लोग टेटू बनवा चुके है, और भी कई लोग इस भेड़चाल में क़तारें लगाकर खड़े हो गये है, टेटू के क्या नुक़सान हो सकते है, आईये देखते है।टेटू के कारण स्कीन के ऊपर लालिमा सूजन, मवाद आने के साथ दर्द होना, त्वचा का संक्रमण आदि हो सकते है।

 

जीवाणुओं का संक्रमण होने का भी डर रहता है। टेटू बनवाने में त्वचा पर एलर्जी जैसी समस्या भी हो सकती है। टेटू बनाने से पहले त्वचा को अल्कोहोल और आयोडीन से साफ़ किया जाता है। टेटू डिजाइन त्वचा पर डायरेक्ट बनाया जाता है। अधिकांश व्यवसायिक (प्रोफेशनल) टेटू डिज़ाइनर हाथों में पकड़ी जाने वाली विद्युतसंचालित मशीनों से इंक लगाकर टेटू बनाते है। नीडलबार में कई सूईयाँ  लगी रहती है। जो ऊपर - नीचे होती रहती है, प्रति मिनट 50 से 3000 बार तक यही सूईयाँ त्वचा में पिग्मेंट को पहूंचाती है। त्वचा में किए गये छेद की गहराई एक से चार मिलीमीटर होती है। छेद के कारण चमड़ी के सेल्स मर जाते हैं।

 

टेटू दिखने में तो बहुत आकर्षक दिखते होगें, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी बहुत है। टेटू से सिर्फ़ इंफ़ेक्शन, स्किन एलर्जी ही नहीं, बल्कि दूरगामी प्रभाव भी देखने को मिल सकते है।

 

पूर्वकाल में अस्पतालों में जिस मरीज़ को जो इंजेक्शन दिया जाता, उस की सूई वापिस उपयोग में लेने से पहले उसे गर्म पानी में उबाल कर स्टरीलाईज़ किया जाता था, लेकिन इंफ़ेक्शन की समस्या आने से फिर डिस्पोज़ल यूज़ करना शुरू कर दिया गया यानी One Time Use Only...

 

टेटू आर्टिस्ट भी यदि इसी तरह वो ही की वो ही सूईयाँ उपयोग में ले रहे हो, जो सूईयाँ  किसी इन्सान के शरीर में उपयोग में लाई जा चूकी है, तो इंफ़ेक्शन का ख़तरा शत प्रतिशत बना रहेगा। टेटू बनाने जा रहे लोगों में चर्मरोग, हेपेटाइटिस और एचआईवी जैसी संक्रामक बीमारियों के होने का ख़तरा है, टेटू बनवाने से त्वचा का कैंसर होने की भी संभावनाऐं है।

 

टेटू बनाते समय प्रयोग की जानेवाली स्याही में कई तरह के विषैले तत्व मौजूद होते है, जिनसे त्वचा कैंसर का ख़तरा बना रहता है।

 

इंक में नोनआर्गेनिक मेटेलिक सॉल्ट्स विभिन्न क़िस्म के आर्गेनिक मॉलेक्यूल्स, और आर्गेनिक डाय होती है।

 

टेटू बनाने वाले द्वारा प्रयुक्त नीले रंग की स्याही में कोबाल्ट और एल्यूमिनियम होता है, जब कि लाल रंग की स्याही में मरक्यूरियल सल्फ़ाइड और दूसरे रंगों की स्याहियों में शीशा, कैडमियम, क्रोमियम, निकल, टाइटेनियम और कई तरह की दूसरी धातुएँ मिली होती है। इन तत्वों से त्वचा पर एलर्जी उत्पन्न होने का ख़तरा रहता है। स्याही में मौजूद विषैले सूक्ष्मतत्व (Micro Toxic Particles) त्वचा के माध्यम से बॉडी के दूसरे हिस्सों तक पहुंच सकते है। इसका असर तत्काल ना भी दिखें, लम्बे समय में देखने को मिल सकता है।

 

Journal Scientific Reports में जर्मनी और फ़्रांस के वैज्ञानिकों ने बताया कि, रिसर्च के दौरान लोगों के टेटू को उन्होंने एक्स–रे फ्लोरोसेन्स के ज़रिये देखा तो उन्हें टाइटेनियम डायोक्साईड के (कि जो कैंसर कारक द्रव्य है) सूक्ष्मकण दिखाई दिए। टाइटेनियम डायोक्साईड सादे और रंगीन दोनों टेटू में पाया जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि, टेटू हटवाएँगे तो भी त्वचा पर मौजूद स्याही के कण को ही इकट्ठा किया जाएगा, ऐसे में शरीर में जा चुके सूक्ष्मतत्व के प्रभावों का ख़तरा बना रहता है।

 

टेटू में प्रयोग की जानेवाली स्याही के ये कण 100 नैनोमीटर से भी सूक्ष्म होते है, जिसके चलते कैंसर की भी संभावना बनती है।

 

कुछ डिज़ाइनों में टेटू उकेरने वाली सूईयों को शरीर में इतना गहरा चुभाया जाता है, कि जिस से मांसपेशियों तक को नुक़सान पहुंचता है। विशेषज्ञ कहते है कि, शरीर पर तिल वाले स्थान पर टेटू नहीं बनवाना चाहिए।

 

त्वचा पर स्थानीय दुष्प्रभावों में टेटू से सार्कोईडोसिस टाइप, स्कलेराडर्मा टाइप, केलोइड फार्मेशन या घाव का निशान रह जाने की आशंका होती है, महेंदी से बनने वाले अस्थायी टेटू सुरक्षित होते है।

 

टेटू करा चुके लोग MRI के दौरान जलन महसूस करते है, क्यों की टेटू के लिए मेटेलिक इंक इस्तेमाल होती है। कुछ टेटू इंक में केडमियम और कोबाल्ट होता है जो कैंसर कारक है।

 

यदि आप शुगर पेशेंट हो, आप की इम्युनीटी कमजोर है, आप स्टेरॉयड्स ले रहे हो या आप का कोई अंग (ऑर्गन – किडनी जैसा अंग) ट्रान्सप्लांट किया गया है तो आप टेटू न करवाये, उसी में आप की भलाई है। केलोइड फार्मेशन का पिछला रिकोईस भी चैक करना जरुरी है, क्योंकि टेटू में केलोइडस बन सकते है।

 

सोरायसीस, लिकेन प्लेनस, विटिलीगो (कुष्ठ रोग जैसे सफ़ेद दाग जिस में होते है उसे विटिलीगो कहते है) और डिसकोयड ल्यूपस जैसी त्वचा की बिमारियों से ग्रस्त को तो टेटू को दूरसे ही राम–राम कर देना चाहिए।

 

क्यों कुछ लड़किया टेटू बनवाने के लिए गोवा जा रही है? कारण भयावह है। टेटू के प्रोफेशनल आर्टिस्टों में 99.99 प्रतिशत आर्टिस्ट पुरुष ही होते है। पुरुषों में भी कई सारे तो मुसलमान एवं रजपूत कौम के भी होते है। अपनी जैन बेटी या बहू यदि लोकल सेंटर्स में टेटू बनवाने के लिए जाये तो खुला होने में शर्म महसूस करती है।

 

कुछ संस्कार और कभी समाज बीच में आता है, इसलिए वे बाहर के शहरों में (गोवा इत्यादि में) जाकर शरीर के अंदर के हिस्सों में टेटू बनवा रही है।

 

शरीर के ऐसे - ऐसे स्थानों पर आज टेटू बनवाने का क्रेज़ बढ़ा है कि, यहाँ पर लिखना उचित नहीं लग रहा है। कई घंटों तक परपुरुष के नज़दीक में बैठकर (या सो कर), उन्हें अपनी ही बॉडी के खुले पार्ट्स पर टेटू बनवाने के लिए तन सौंपनेवाली महिलाओं को कुलीन या ख़ानदान कैसे कहना, यह बड़ा प्रश्न है?

 

शरीर सौंदर्य को सर्वोपरि मानने वाली वर्तमान की कुछ महिलाएं शरीर सौंदर्य बढ़ाने के नाम पर आत्मसौंदर्य, धर्म सौंदर्य, संस्कृति सौंदर्य, शील सौंदर्य और शरीर स्वास्थ्य को भी आज दाव पर लगाने जा रही है, तब इसे सुशिक्षित / समझदार मानना या और कुछ? गोवा - बैंगकोक जैसे शहरों में आये सेंटरों पर तो टेटू करवाने वालों को दर्द महसूस ना हो इसलिए बियर पीने की भी सुविधा की जाती है, और कई सारे घराक बियर पीकर टेटू करवाते हैं।

पू. पाद जिनप्रेम वि.जी म.सा. की लिखित एक किताब अभी पढ़ने में आई थी उनकी वेदना पढ़कर वंदना हो गई।

 

किताब एक ही विषय पर थी ‘हेयर कटिंग...’ आजकल बहनें जो Unisex Saloon में पुरुषों के हाथों से बाल कटवाने, बाल धुलवाने जाती है इसे सुनकर पूज्यश्री ने किताब लिखी है।

 

आने वाले भविष्य में New World Order से पूरे विश्व का कंट्रोल किए जाने की जो योजना बनी है। उस योजना का प्रथम शिकार ही महिलाएं है। महिलाओं को सशक्त बनाने के नाम पर चलने वाले महिला सशक्तिकरण के कुछ कार्यक्रम हकीकत में महिलाविकृतिकरण की दिशा में जा रहे है। यदि भारत की सज्जन, सुशील, संस्कारी महिलाओं को ही भ्रष्ट कर दिया जाए तो संपूर्ण भारत को ही नियंत्रित कर सकते हैं।

 

शीलगुप्तिकुलक में लिखा है कि

नह – दंत – अलय – सीमंत – केस – रोमाण तह य परिकम्मं।

अच्चंत मुच्च धम्मिल्ल बंधणं वेणि करणं च ।।

अर्थ :- कभी भी नारी को परपुरुष के सामने नाखून नहीं काटना चाहिए, दांत साफ नहीं करने चाहिए, मेक-अप नहीं करना चाहिए, बाल नहीं बनाने चाहिए, कोई परिकर्म, शरीर संस्कार परपुरुष के सामने नहीं करना चाहिए (यानी टेटू भी नहीं बनवाना चाहिए) परपुरुष के सामने हाथ ऊपर करके चोटी या जूड़ा बनाना नहीं चाहिए।

 

टेटू का कल्चर इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है? जिसका मुख्य कारण हीरो – हीरोईन (एक्टर एक्ट्रेस) सेलीब्रीटी, स्पोर्ट्स पर्सन की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी जीवनशैली का अंधानुकरण। वे लोग टेटू को बना रहे हैं, तो सभी बनाने लगे हैं। इल्युमिनाटी जैसे संस्था को ज्वाइन करने वाले पर भी दबाव बना रहता है, उनके सिम्बोल्स अपने हाथ-पैरों में या अन्य हिस्सों में बनवाने का... यह बात हॉलीवुड एक्ट्रेस एंजेलीना जोली ने भी स्वीकार की थी।

 

भविष्य में इल्युमिनाटी जैसे संस्थानों के एलिट लोग 666 का टेटू सभी के सिर पर या बाये हाथ पर लगाने की प्लानिंग में है और इस बात की पुष्टि बाईबल में भी की है, जिसे Mark of the Beast बताया गया है। जो लोग ऐसा टेटू बनाने का इनकार करेंगे, उन्हें परेशान भी किया जायेगा, ऐसा भी लिखा है। क्रिशचन धर्म में टेटू बनवाना पाप बताया है। जैन धर्म में भी इसे अनावश्यक बताया गया है, अतः पाप स्वरूप है।

 

टेटू क्यों नहीं करवाना है इसके यह मुख्य कारण है।

 

1- अक्षर या शब्दों से बनाया गया टेटू ज्ञान की विराधना का कारण बनता है, अतः नहीं बनवाना चाहिए। शब्दों पर पसीना जाता है जो ज्ञान की आशातना है।

2- मम्मी - पापा - गुरु या प्रभु जैसे उपकारी, गुणवान, महान लोगों के नाम - फोटो यदि टेटू के रूप में बनवाये तो महापुरुषों ने इसे पाप कहा है, योग ग्रंथों में लिखा है, उपकारी पूज्य का नाम भी अशुचि स्थान में लेना नहीं है, तो टेटू को कैसे ले जा सकते हैं?

3- शरीर में रोग हुआ तो डॉक्टर के सामने शरीर खुला करना पड़े वह मजबूरी हो सकती है, लेकिन अपने शरीर को शृंगारित करने के लिए परपुरुष के सामने शरीर को खुला करने की क्या मजबूरी है? शील की विराधना का स्थान है। कोई महिला यदि ऐसा कहे कि मैं तो सिर्फ हाथों पर ही टेटू करवाती हूँ, ‘तो मेरा प्रश्न है परपुरुष को हाथ भी कैसे दे सकते हैं? पाणिग्रहण तो एक के साथ ही होता है ना? (परपुरुषों के पास महेंदी करवाने वाले सावधान!)

4- शरीर सुंदर है, दर्शनीय है, शृंगार करने लायक है, ऐसी भ्रान्ति को बढ़ावा देने का कार्य टेटू करता है इसलिए टेटू बनाकर आनेवाले के शरीर पर सबसे पहले ध्यान जाता है। भगवान ने कहा है, शरीर अशुचिमय (गंदा) है। दर्शनीय परमात्मा या आत्मा का शुद्धस्वरूप है। शृंगार करना ही हो तो सद्गुणों से करना चाहिए, ये सारी बातें भूलाने का कार्य टेटू का है।

5- पुरुष यदि पुरुष के पास ही टेटू करा रहा हो तो भी कामराग की वृद्धि हो सकती है। ज्यादा नजदीकी सजातीय की भी उचित नहीं है।

6- रोगों में वृद्धि हो सकती है, कई लोगों के अनुभव सुने हैं कि, टेटू करवाने के बाद उसे बहुत संभालना पड़ता है एंटीबायोटिक क्रीम उस हिस्से में लगाना पड़ता है (प्रतिदिन)... मेकिंग सरल है, टेटू का मेंटेनेंस भारी पड़ सकता है।

7- संपत्ति का फालतू में वेस्टेज है। एक इंच टेटू बनवाने के 800/1000 रुपये आम बात है, और टेटू निकलवाने में और ज्यादा, वो तो दो से तीन गुना कम से कम महंगा हो जाता है। टेटू हटाना इतना आसान नहीं है, इसे हटाना एक बुरा अनुभव और वक्त खा जानेवाला कार्य है। लेजर थेरेपी की मदद से हटा सकते हैं, इस में कई सेशंस होते है, फिर भी टेटू पूरी तरह से हटने की कोई गारंटी नहीं होती है। पहले क्रोयो सर्जरी, थर्मल कोटरी या सर्जिकल रिसेक्शन को आजमाया जा चुका है, इन सभी में घाव का कोई न कोई निशान या पिगमेंट रह जाता है। वैसे भी शादी से ज्यादा महंगा डीवोर्स होता है। टेटू लगवाना सरल, मेंटेनेन्स कठिन, हटवाना असंभव प्राय:।

8-  देशरक्षा या संसार त्याग के भाव जिस के दिलों में हो, उसे टेटू से दूर ही रहना अच्छा है, क्योंकि आर्मी में कुछ टेटू को छोड़कर अधिकांश लोगों को टेटू के कारण रिजेक्ट किया जा चुका है। साधु जीवन में भी सभी गहनों का त्याग हो जाता है, टेटू परमानेंट गहना है, इसलिए साधु जीवन लेने वालों को टेटू अच्छा नहीं लगता है।

9-  स्कीन एलर्जी, स्कीन डीसीज़ आम बात है, अभी एक भाई मिले थे, जो विहार में थे, उनके हाथों पर रहा टेटू, उसे परेशानी में डाल रहा था, प्रतिवर्ष चतुर्मास, बारिश के दिनों में उस पर सूजन आ जाती और कुछ खट्टा खाने से भी सूजन बढ़ जाती थी।

10-  परमात्मा ने विवेक पूर्वक शरीर को कष्ट देना बताया है, वर्तमान में टेटू बनवाने वाले जिनाज्ञा विरुद्ध, आसक्ति की वृद्धि करने हेतु, विवेकहीन बनकर, भोगाधीन बनकर टेटू बनाते हो तो ऐसी करणी करने से उन्हें कर्मनिर्जरा का लाभ नहीं मिलता है, अपितु  कर्मबंध की ही सजा मिलती है।

 

पूर्व में बेलों पर अंकन, चिह्न होता था, हम कोई पशु नहीं है कि निशानी बनवानी पड़े, भगवान ने हमें जो मनुष्य देह दिया है, वो वैसा का वैसा ही रखने में हमारा कल्याण है।

 

कुछ लोग तो अपनी प्रेमिका या प्रेमी का नाम अपने शरीर पर गुदवा देते है। अपना प्रेम प्रदर्शित करने के चक्कर में, उनका यह पागलपन उन्हें तब भारी पड़ता है, जब ब्रेक-अप हो जाता है, रिश्तें टूट जाते है। रिश्ते तो छूट जाते है, पर टेटू का रंग नहीं छूटता...

 

लगातार बदलती फैशन में, लगातार बदलती ज़िंदगी में, लगातार बदलते मन के भावों के चलते, कोई ऐसा कदम हम ना उठा ले कि कदम की निशानी बनी रहे और कदम उठाने वाले पैर ही ग़ायब हो जाये।

 

एंड्रोयड सिस्टम जैसी हो चली है ज़िंदगी,

जरा समझने की कोशिश में व्यक्ति क्या गुजरा?

पूरा फीचर ही बदल जाता है।

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